हम दुःखों और तनावों की दुरbbiamo में इतने अधिक रच-बस गये है, कि हमें दिव्य सुगन्ध का परिचय ही नहीं रहा। हम समाज की उस दुर्गन emetti और तनावों की दुर्गन्ध में रम जाते हैं, क्योंकि यही हमारी नियति बन गई है है
मैं पिछले कई जन्मों से तुम्हारे साथ हूँ, मैं तुम्हारा गुरू हूँ औ औ तुम मेरे शिष्य हो, तुम शरीर हो तो उसकी उसकी धड़कती हुई आत आत्मा हूँ हूँ हूँ हूँ हूँ हूँ हूँ हूँ हूँ हूँ हूँ हूँ हूँ हूँ हूँ हूँ हूँ हूँ हूँ हूँ हूँ हूँ हूँ हूँ हूँ हूँ हूँ tiva बिना प्राणों के शरीर को जल्दी से जल्दी उठा कर श्मशान में ले जाने को आतुर हो जाते है और बिना गुरू स्पन्दन के तुम्हारा शरीर भी एक खोखला, प्राण रहित, मात्र रक्त मज्जा का शरीर रह गया है ऐसा शरीर चलता-फिरता तो है, पर जिसमें आनन्द नहीं है, ऐसा शरीर जो परिवार से उपेक्षित है, न बेटे को ज जरूरत है, न सगे-सम सम इसकी अनिव अनिवार Quali घसीटते-घसीटते श्मशान तक ले जाने के तुम प्रयत्नशील हो और तुम्हारे चारों तरफ का समाज तुम्हें ऐसे क कारscoय में सहायता करहा रह है है
इसीलिये तो कहता हूँ, कि तुम्हारी इस मृत देह को प्राणों का स्पन्दन चाहिए और यह तभी हो सकता है, जब मेरे प्राणों से अपने प्राण जोड़ सको, मेरे हृदय से अपने हृदय को एकाकार कर सको, मेरे अन्दर अपने आप को समाहित कर सको, शायद तुमको प्राण शब्द का अर्थ ही नहीं पता होगा, तुमको प्राण वायु कµ । शरीर कोई हाड़ मांस का पिंड भर नहीं होता! वह प्राणों का एक समुच्चय होता है, भावनाओं का और संवेदनाओं का घनीभूत tiva क्या तुम्हारे
इकट्ठा किये हुए चांदी के ठीकरों से य अपने उन रिश्ते नातेदारों से जिनसे तुम्हारा सम all'avore एक सामाजिक समायोजन शास्त्री भर ही तो होता है परिवार, यही तो कहते है तुम्हारे समाजशास्त्री भी व्यर्थ है उनसे उम्मीद करना कि वे तुम्हारे प्राण स्वरूप हो और गुरू को तुम भले ही भौतिक रूप में देखो और पहचानो, लेकिन वही होता है प्राणों का घनीभूत स्वरूप , जहां से होता है तुम्हारा नवीन सृजन, तुमको द्विज बनाने की घटन घटना, इसी से तो गुरू को मातृ स्वरूप और पितृ स्वरूप दोनों कहा गया है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है abbiamo इसीलिये तो कहता हूँ कि मैं मात्र देखने की वस्तु नहीं हूं, इसीलिये तो कहता हूं, कि म मात्र स all'avore ऐसा तो तुम कई-कई वर्षो से कर रहे हो, शायद चार छः जन्मों से ऐसा ही कर रहे हो, पर ऐसा करने से इस मृत शरीर में आनन्द की चेतना नहीं आ सकती, इसके लिये यह जरूरी है, कि तुम मेरे प्राणों से निकलने वाली सुगन्ध को पहचानने की क्षमता प all'avore
जब तुम अपने आप को शक्तिहीन अनुभव करो, जब तुम अपने आप को मृत तुल्य अनुभव करो, तब तुम मेरे साथ प्रकृति की तरह एकाकार हो जाओ और अपने आप को स्फूर्तिवान, तरोताजा बनाकर वापिस अपनी दुनिया में लौट जाओ। लौट जाओं मुझसे नया जन्म प्राप्त करके, मैं तुम्हारा परिवार, तुम्हारा परिवेश छीनना नहीं चाहता, तुम्हें उसी में सुरक्षा अनुभव होती है तो मैं उसमें बाधा नहीं बनूंगा, मैं ऐसा चाहूंगा ही नहीं कि तुम्हारे मन में कोई घुटन रह जाये, पर इतना अवश्य चाहूंगा कि तुम जिस तरह से मेरे पास आये उस तरह से वापस न जाओ और यह तो खुद तुम जानते हो तुम जब मेरे पास आये थे तो तो कैसे? मैं तुम्हें तुम्हारी कटु स्मृतियों में नहीं ले जाना चाहता, मैं तो यह चाहता हूँ कि तुम मेरे पास रहो तो मधुर स्मृतियां लेकर जाओ और तुम्हारी वह दुनिया वैसी ही है, जैसी तुम छोड़ कर आये हो, वहां पर वैसे ही कटघरे है, छोटी- छोटी बातों पर लड़ने-झगड़ने की वैसी ही प्रवृतियां है, उनकी आँखों में वैसा ही संदेह, वैसा ही चौकन्नापन है, वे जरा सा भी नहीं बदले है और वे बदल भी नहीं सकते सकते
क्योंकि उनके पास आनन्द का स्त्रोत है, जहां जाकर वे अपने आप को आनन आनन आनन आनन में डूबों सकें, उनके प प दिव सुगन सकें सकें लौटोगे लौटोगे लौटोगे लौटोगे लौटोगे लौटोगे नयी नयी नयी नयी नयी नयी नयी नयी नयी नयी नयी नयी नयी नयी नयी नयी नयी नयी नयी नयी नयी नयी नयी नयी नयी नयी नयी लौटोगे नयी नयी लौटोगे लौटोगे नयी नयी लौटोगे नयी नयी लौटोगे लौटोगे नयी लौटोगे लौटोगे लौटोगे नयी नयी लौटोगे लौटोगे लौटोगे नयी लौटोगे नयी नयी लौटोगे नयी लौटोगे लौटोगे लौटोगे नयी लौटोगे नयी नयी नयी लौटोगे लौटोगे लौटोगे tiva उमंग होगी, तुम्हारे चेहरे पर एक नया आभामण्डल होगा, तुम्हारे शरीर के रोम-रोम में एक अद अद्ध का प्रवाह होगा और इसीलिये तुम तुम तुम उन उन सबसे अपने अपने अपने को अनुभव अनुभव सकोगे पrig di वे एहसास करेंगे कि यह सब क्या हो गया है? वे आश्चर्यचकित होंगे, कि ऐसा कैसे हो गया है?
मैं कह रहा हूँ कि तुम्हें मृत नहीं होना है, इसीलिये मैं कह रहा हूँ कि तुम्हें अपनी जिन्दगी घसीटते हुए नहीं बिता देनी है, तुम्हें सुगन्ध से, ज्ञान की सुगन्ध से, चेतना की सुगन्ध से, प्राणों की सुगन्ध से तरोताजा होना है और अपने उसी समाज में लौट आना है, उन लोगों को भी इस ताजी हवा का एहसास कराना है उन लोगों को भी प्राणों का स्पन्दन प्रदान करना है, उन मरी हुई सड़ी-गली देह में एक चेतना, एक उमंग और साधना की एक नई शक्ति भरनी है और यह तुम कर सकते हो, क्योंकि तुम दैविक सुगन के भण्डार से जुड़े हो, साधनाओं के प्रति जो उनके रोग ग्रस चिन चिन है है है उसे सम सम समाप करना है है है औ आनन से है है है है है है उसे उसे सम समens
जब तुम अपने आप को अटका हुआ महसूस करो, तब तुम्हें बिना हिचकिचाहट के मेरे पास आ जानens की सुगन्ध से, मेरी चेतना के स्पन्दन से आप को भर लेना है, अपने जीवन को प्रफुल्लित और तरोताज बन है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है tiva तब तुम बहती हुई नदी के गायन को सुन, तब सम समाधि की चेतना में अपने प्राणों को आप्लावित कर सकोगे, तब तुम्हारे संदेह मिट सकेंगे सकेंगे सकेंगे सकेंगे सकेंगे सकेंगे सकेंगे सकेंगे सकेंगे सकेंगे सकेंगे सकेंगे सकेंगे सकेंगे सकेंगे सकेंगे सकेंगे सकेंगे सकेंगे सकेंगे सकेंगे
अब भी समय है, अब भी तुम जाग सकते हो, अब भी तुम मेरे साथ नाच सकते हो, अब भी तुम मेरे साथ झूम सकते हो, मेरे साथ प्रकृति का संगीत सुन सकते हो, मेरे शरीर के रोम-रोम से निकलती हुई संगीत की लहरियों को आत्मसात कर सकते हो, और जो शरीर मां-बाप के दैहिक सुख से उत्पन्न हुआ है, जो शरीर एक संयोग है, उसे स्वर्णिम बना सकते हो, इसके लिये जरूरत है, बिना कार्य के भी, बिना स्वार्थ के भी मेरे पास आने की, मेरे साथ बैठने की, मेरे साथ आनन्द प्राप्त करने की और मेरे प्राणों से अपने प्राणों को एकाकार करने की।।।।। की की की की की की की की की की की की की की की की की की की की की की की की की कीiato
और जब तुम ऐसा कर लोगे, तब तुम्हारे शरीर से एक प्रकाश फुटेगा, तब तुम्हारी आत्मा से ज्ञान का सूर्य उदय होगा, तब तुम्हारे रोम-रोम से आनन्द की लहरियां पूरे समाज में फैल सकेंगी, तब तुम बुद्ध बन सकोगे, तब तुम शंकराचार्य बन सकोगे, तब तुम जीवन्त व्यक्तित्व बन औ और तुम ऐसे सको सको, मेरा ऐसा ही आशीर्वाद प्रत्येक क्षण तुम्हारे साथ है है है है है है है है है है है है है है है है है है है
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