गणेश उपनिषद् का यह एक महत्वपूर्ण श्लोक है। सभी साधकों के लिए इस श्लोक में उन प QIश को उठ उठाया है, जो प्रश्न हृदय में उठ सकते हैं इन श्लोक में उन प्रश्नों के उत्तर दिए हैं, जो आपके लिये जरूरी हैं हैं
प्रश्न है- हमारे जीवन में किन कारणों से तनावमय, दुःखमय, चिंतामय nessuna इग्लैण्ड और अमेरिका में, जहां देवताओं ने जन्म लिया ही नहीं, वहां लोग सुखी क्यों हैं? क्या कारण है, कि हम है और वे सुखी हैं, उनके पास धन है, इसका मूल कारण क्या है?
यह आप लोगों की एक शंका है, कि वे ज्याद Schose यह प्रश्न उठना स्वाभाविक ही है कि इतने दरिद्र, हम इतने परेशान क्यों हैं? यदि यहां गणपति हैं, यहां शिव, लक्ष्मी हैं, साधनायें हैं, मंत्रजप हैं, गुरू हैं तो ये सब होते भी क्यों हमारी दरिदरता नहीं ज ज है?
हमारी परेशानियां क्यों नहीं हैं और हमारे जीवन में अभाव क क है?, यह आप लोगों का ही सोचना है कि आप दुःखी हैं, इसलिये की आप ने ने वहां का जीवन देख देख ही नहीं है है है। है है है है दुःखी दुःखी हैं हैं हैं हैं इसलिये की की ने ने नेens वे सब यहां आते है तो बहुत अच्छे कपड़े कर आते हैं, चाहे आपके भाई हों या मित्र हों, यहां रहकर आप उनकी परेशानियों को नहीं समझ सकते सकते हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं tivamente
24 घण्टे वे काम में लगे रहते हैं, चाहे पति हो, चाहे पत्नी हो, चाहे बेटा हो या बेटी हो, सात दिनों में वे एक दूसरे से मिल ही नहीं पाते। यहां जो पारिवारिक वातावरण आपको मिलता है, उनको नहीं मिलता। मैं उनके घर में रहा हूं और कई बार रहा हूं, एक बार नहीं बीस बार। मैंने देखा है उनको तनाव में, दुःख में। जितना दुःख उनको है, आपको नहीं। वहीं पर आत्महत्या की दर 22 प्रतिशत हैं। हमारे यहां केवल 6 प्रतिशत है। ऐसा क्यों हो रहा है? इसलिये कि उनके जीवन में धर्म का और गुरू का कोई स all'avore आपके जीवन में जितना धन है, उतना ही वहां है। यह केवल आपकी कल्पना है, कि वे वहां पर सुखी हैं। जब वे यहां आते हैं तो अच्छे कपड़े पहने होते, अच्छी घड़ी होती है, अच्छा बैग होता है, लेकिन उनके बैग से उनके जीवन को नही नही आंक सकते सकते सकते सकते उनके उनके मूल्य को आंक आंक सकते सकते सकते सकते आंक आंक आंक आंक आंक आंक आंक आंक आंक आंक ° वे आपसे ज्यादा परेशान, दुःखी और संतप्त हैं। सुबह उठते हैं तो पति अपनी चाय बन Schose रात को ग्यारह बजे आते हैं तो में ख खाकर आते हैं और लेट ज जाते हैं हैं हमारी केवल कल्पना है कि वे सुखी हैं। जब हम अपने जीवन में ईश्वर को स्थान नहीं दे पाते, तो हमाrdit इसका मतलब यह नहीं है कि हम परेशान नहीं— मगर उसका समाधान है है
समाधान तभी होगा जब आस्था हो, विश्वास हो। जब विश्वास डगमगा जाता है, तब जीवन में धर्म नहीं रह पाता, आस्था नहीं रह पाती, पुण्य नहीं रह पाता, जीवन में प्रगति नहीं हो पाती और इस श्लोक में यही बताया गया है कि जीवन में पूर्ण रूप से समृद्ध हो सकते हैं और वह भी कुछ ही समय में। ऐसा नहीं है कि मंत्र जप आज करें और बीस साल बाद फल मिले, उस फल की कोई महत्ता नहीं है दुःख आपको आज हैं, धन की परेशानी आज औ औ मैं तुम्हें मंत्र दूं और पांच साल बाद लाभ मिले मंत्र का कोई फायदा नहीं है है है। है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है tivamente
आप ट्यूब लाइट या बल्ब लगायें और स्विच दबायें और दो साल बाद लाइट आये तो उस लाइट की उपयोगित उपयोगित नहीं है है है है नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं बटन दबाते ही लाइट होनी चाहिये तो वह लाइट सही है। मंत्र को करते ही आपको लाभ होना ही चाहिये। यदि ऐसा है, तो गुरू सही हैं अन्यथा गुरू फ्रॉड हैं, फिर छल है, झूठ, वह गुरू बनने के काबिल नहीं है मगर आवश्यकता इस बात की है कि ट्यूब लाइट सही होनी लाइट सही होनी लाइट सही होची मगर मैं यहां बटन दबाता रहूं और ट्यूब आपकी फ्रयूज है, तो मैं उसे जला नहीं सकता। यदि आपमें आस्था है ही नहीं, न गणपति में है, न गुरू में आस्था है, न देवताओं में आस्था है तो मैं कितने ही बटन दबाऊं, आपको लाभ नहीं हो सकता और लाभ नहीं हो सकता तो फिर आप कहेंगे बिजली बेकार है, मैंने ट्यूब लाइट लगाई है पर जलती नहीं— तो लाइट जल ही सकती तीस स साल तक बटन दबाते रहें तो भी लाइट नहीं सकती सकती सकती आवश्यकता इस बात की है कि आप इस बात को समझें और आपको अनुकूलता प्राप्त हो हो
हमारे मन में विश्वास नहीं रहा देवताओं के प्रति, अपने आप पर भी विश्वास नहीं रहा। मेरे कहने के बावजूद भी विश्वास नहीं रहेगा। मैं कहता हूं, तुम्हें मंत्र जप करना है, तुम्हें सफलता मिलेगी तो अनमने मन से से आप मंत्र जप भले ही करेंगे परन्तु एक जो गहराई होनी चाहिये, वह आप में नहीं हैं हैं ऊपर से आप मुझे गुरू भले ही, मगर मन में अटैचमैंट बनन बनना चाहिये वह नहीं बन प पाता और अटैचमैंट नहीं प प पात तो ज ज अपनी अपनी तपस्या का अंश अंश अंश tiva
लेने और देने में, दोनों में एक समरूपता होनी चाहिताहित जहां मैं खड़ा हूं वहाँ आपको खड़ा होना पड़ेगा, तब मैं दे पाऊंगा और आप ले पाएंगे। फिर मंत्र जप करने से कुछ हो पाएगा, मंत्र देने से भी कुछ नहीं हो पाएगा, आवश्यकता है कि दूं और आप पूरे शरीर में उसे ध धारण कर सकें सकें सकें मैं जो दूं उसे आप कानों से ही नहीं सुनें, बल्कि पूरे शरीर में वे मंत्र समा जाने चाहिये।
भोजन मैं आपको दूं और आप भोजन करें तो पूरा खून बनना चाहिये और पूरे शरीर में घूमना चाहिये। मैं भोजन दूं, और आप उसे पचा नहीं पाएं उसका खून नहीं बन सकता, ताकत नहीं मिल सकती सकती ताकत मिलने के लिए जरूरी है कि इंतजार करें कि खून न कि खून न इधर आपने खाना खाया और उधर खून बन जाये, यह संभव नह। एक मिनट में खून नहीं बन सकता। दो दिन तक आपको वेट करना ही पड़ेगा।
इतना विश्वास करना ही पड़ेगा, कि जो किय किया है उसका खून बनेगा ही, इतना विश्वास करना पड़ेगा कि भोजन किया है, उसका लाभ मिलेगा ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही हीume मंत्र की स्थिति यही है। मैं आपको मंत्र दूं तो उसके प्रति आस्था बननी चाहिये आपकी, आध्यात्म चेतना बननी चाहिये, चाहे वह एक में बने या दो दिन दिन में में में में में में में में में में में में दिन दिन दिन दिन दिन दिन दिन दिन मंत्र दिया है, तो चेतना बनेगी ही बनेगी। यह हो ही नहीं सकता कि मैं मंत्र दूं और आपको सफलता नहीं मिले मिले यह हो सकता है कि आपसे कम मिल पाऊं, हो सकता है कि केवल एक मिनट मिनट मिलें मिलें इससे आपके विश्वास में अन्तर नहीं आना चाहिये। जिसको एक बार शिष्य कहा, वह मेरा शिष्य है ही। मगर आवश्यकता इस बात की है कि शिष्य बुलाये और गुरबुलाये और गुररू बिना बुलाये तो न गुरू आ सकता है, न गुरू का चिंतन बन सकता है, न गुरू में आस all'avore संसार में सभी लोगों के जीवन में तनाव है। दूसरों के जीवन में लगता है कि उसमें कम तनाव है, परन्तु यदि हम उसको अंद अंदर से कुरेदेंगे तो पता लगेगा लगेग उनकी जिन जिन खोलक देखें तो म मालूम पड़ेगा कि वे ज ज जादा परेश प हैं हैं हैं है तो तो म म मा कि कि वे ज ज जादादादादा परेश हैं हैं हैं हैं है। तो तो म मालूम कि कि वे ज ज ज जादादादा परेश हैं हैं हैं हैं है। तो तो म मens —और श्लोक में यही बताया गयµi तुम्हारे, पति-पत्नी के बीच विश्वास नहीं होगा, तो भी आप बीस स साल एक छत नीचे हेंगे रहेंगे तो भी न पत पत का लाभ उठा सकते हैं औ और न पतर पतानी आपकाभ ल सकती है। लाभ उठा सकते हैं हैं औ’umere तनाव में जीवन कट जायेगा, पूरे बीस साल कट जाएंगे। यह नहीं कि आप मर जाएंगे, मगर जो क का आनन्द होना चाहिये वह नहीं होग होगा।
आप बीस साल मेरे साथ रहें और अगर विश all'avore दीक्षा के बाद, केवल यह नहीं है कि मंत्र आपको दे दा ऐसी दीक्षा मैं आपको देना भी नहीं चाहता और ऐसी दीक्षा से लाभ भी नहीं है है तुम्हारा पैसा भी मुझे नहीं चाहिये, नारियल हाथ में रखने से और तिलक करने से कुछ नहीं हो पाएगा। मैं चाहता हूं कि मैं दूं और आप पूरी तरह से ग्रहण सेण ककैं आपने दो पैसे खर्च किये, तो आपको लाभ होना ही चाहिये यदि मैं आपको दीक्षा दूं तो उनका मंत all'avore मन में एक शांति मिली है और आपके हृदय एक ऐसा विश all'avore
—और ऐसा होगा, तो जो मैंने मंत्र दिया है, वह भी सार्है, वक भी सार्तर्है वह चाहे गुरू का मंत्र हो, लक all'avore हरिद्वार में तो कम से कम डेढ़ लाख लोग रहते हैं। हम जाते हैं और गंगा में स्नान करते हैं बहुत श शांति अनुभव करते हैं कि आज गंगµ उनकी आस्था ही नहीं है हरिद्वार में। उनको गंगा में आस्था है ही नहीं। उनके लिए वह सिर्फ नदी है और हम जाते हैं तो पवित्रता अनुभव होती है है ऐसा क्यों है? इसलिये कि हमारे मन में गंगा के प्रति अटैचमैंट, एक भावना है, उनके मन में भावना है ही नहीं जो बहुत आसानी से प्राप्त हो जाता है उसके प्रति भावना रहती ही नहीं नहीं यदि गुरू आसानी से मिल जाएंगे तो प प्रति वैसा भाव रहेगा ही नहीं
तुम्हारे, मेरे मन में भावना है गंगा के प्रति, तो शीतलता अनुभव होगी ही ही यह तो आत्म विश्वास की बात है, आत्मचिन्ईन की बात हह इसलिये जब आप स्नान करते हैं तो पवित्रता अनुभव करते है, सिर्फ महसूस नहीं करते, मिलती ही पवित पवित्रता। आत्मा को आनन्द मिलता है, जीवन पूर्णता मिलती है, जीवन को चेतना मिलती है और जीवन में जो कुछ हम चाहते हैं, वह ही ज जाता है है। है —और जब मैं दीक्षा देता हूं आपको, तो उस दीक्षा के माध्यम से उतनी ही चेतना पैदा होनी चाहिये, मंत्र को धारण करने की शक्ति पैदा होनी चाहिये। दीक्षा का तात्पर्य है कि आपको मंत्र दूं और धारण हो ज जµi
गुरू ने अगर दिया है मंत्र, तो लाभ होगा ही उससे, गुरू ने अगर उपाय किया है तो ठीक होगा ही, दीक्षा दी तो आपके पूरे शरीर ने मंत मंत को गरहण किया। आप केवल कान से मंत्र ग्रहण करते हैं। कान से मंत्र ग all'avore a और वह कान बन जाता है दीक्षा के माध्यम से। मैं आपको tiva
इस श्लोक में एक अत्यंत तेजस्वी ऋषि विश्वामित्र ने उच्चकोटि की बात कही और विश्वामित्र, जो ऋषि ऋषि, वे अपने जीवन में आपसे भी ज्यादा दरिदरहे रहे हे विश्वामित्र ने ही राम और लक्ष्मण को धनुर्विद्या की दीक्षा दी दी वे ही विश्वामित्र, जो रघुकुल के गुरू थे, वे ही विश all'avore a । —जरूर उन मंत्रें में और तंत्र में एक तµi यद्यपि रघुकुल के गुरू तो वशिष्ठ थे, मगर दशरथ ने राम-लकebष को स स विश्वामित्र के हाथों में हुए कहा कि आप जैसा उचाचकोटि का तंत्र जाता कोई है है। इस प्रकार का अद्भुत तेजस्वी व all'avore
इसीलिये मैं अपने दोनों पुत्रें को तंत्र शास्तर ज all'avore इसलिए कि ये जीवन में अद्वितीय व्यक्तित notte तुलसीदास तो बहुत बाद में पैदµi
वाल्मीकि रामायण में आता है कि दशरथ ने कहा, मैं अपने दोनों पुत्रें को अद्वितीय बनाना चाहता हूं, ऐसा बनाना चाहता हूं कि फिर पृथ्वी पर उनके समान दूसरा हो ही नहीं, मंत्र में, तंत्र में, योग में, साधना में, दर्शन में, शास्त्र में, राज्य में, वैभव में और सम्मान में। तब विश्वामित्र एक ही पंक्ति में उत्तर देते हैं दश दशरथ- योगीय मेव भवता वरेण्यं दीक्षां वदेम्यं भवतां वरिथं।
मैं तुम्हारे पुत all'avore a केवल मुझे ही गुरू मानें तो। इतना की मुझसे सम्बन्ध जुड़ जाये इनका। ये मुझे अपने आप में पूर्णता के साथ में ग्रहण कर लें तो मैं अपनी समस समस्त सिद्धियां इन्हें दे सकत हूं हूं मैं इनको tiva मुझे पूर्ण रूप से स all'avore चौथाई मंत्र स all'avore
मंत्र में, तीर्थ में, देवताओं में, ब्राह्मण में और गुरू में आपकी भावना जितनी जुड़ेगी उतना ही फल मिलेगा। गंगा के प्रति आपकी भावना जितनी ज all'avore गुरू के प्रति जितनी भावना होगी, उतना ही आप लाभ उठा पाएंगे। यदि आप दूर से ही प्रणाम करेंगे और गुरू में कोई अटैचमैंट नहीं होगा तो गुरू देगा भी आशीर्वाद, तो यों ही लौट ज जायेंगा।
दो स्थितियां बनती हैं जीवन में। एक श्रद्धा होती है, एक बुद्धि होती है। आदमी दो तरीकों में जीवन व्यतीत करता है, श्रद्धा के माध्यम से और बुद्धि के माध्यम से। जो बुद्धि के माध्यम से प्राप्त करते हैं जीवन को, वे जीवन में सुख प्राप्त नहीं कर सकते, आनन्द प्राप्त नहीं कर सकते सकते।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। सकते सकते सकते सकते सकते सकते सकते सकते सकते सकते सकते सकते सकते सकते सकते सकतेunt वे हर समय तनाव में रहते हैं। वे समझते हैं, हम बहुत चालाक हैं, बहुत होशियार हैं, हमने जीवन में इसको धोख धोखा दे दिया, इसको मूर्ख बना दिया, इसको भी क कर औा और हम ज्यादा सफलता पा पर कर सकते हैं वे सकतेर। uire हर क्षण उनके जीवन में तनाव होता है और जीवन में आनन्द क्या होतµere बुद्धि तो कहेगी कि यह शिवलिंग है ही नहीं, एक पत्थर है, और पत्थर के माध्यम से तुम्हें सफलता नहीं मिल सकती सकती सकती सकती सकती सकती सकती सकती बुद्धि तो यह भी कहती है कि पत्नी है क क्या हुआ, मैं शादी कर के लाया हूं, इसकी ड्यूटी है सेवा करे, मैं इसको रोटियां दे रहा हूं हूं वह पति अपनी पत्नी को सुख नहीं दे सकता।
तुम्हारी tiva देवताओं के प्रति, मंत all'avore यह आपके हाथ में है कि आप बुद्धि से जुड़ते, कि श्रद्धा से जुड़ते हैं हैं अगर मेरे प्रति श all'avore यदि आपका मुझ पर प all'avore विश्वास तो करना पड़ेगा ऐसी कौन सी चीज है जीवन में, कि आपने कहा, और हुआ हुआ ये तो आपके जीवन के भोग हैं, और आपके जीवन में केवल तनाव है, आपके जीवन में झूठ है, आपके जीवन में छल है, कपट है, आपने जीवन के इतने साल छल और कपट में व्यतीत किये और आप चाहते हैं कि गुरू जी सब ठीक कर लें,— तो ऐसा गुरूजी नहीं कर सकते। दो मिनट में भी ठीक हो सकता है, यदि पूर्ण रूप से समर्पित हों हों
एक पूर्ण अनजान लड़की, 19 साल की लड़की अभी जीवन देख देखा ही नहीं उससे हम शादी करते हैं मैं अगर करोड़पति हूं और उस लड़की को देखµi पति अपनी तिजोरी की चाबी दे देता है कि तिजोरी की चाबी है यह ले इसमें हीरे हैं, जवाहरात हैं इस लड़की पर एकदम से कितना विश्वास हो जाता है! यह विश्वास हो जाता है कि यह लड़की मुझे धोखा नह०ं मुझे धोखा नह०ं मुझे यह मुझसे जुड़ी रहेगी। यह एक अनजान व्यक्ति से किस प्रकार से एकदम पांच मिनट में विश्वास कायम हो सकतर यदि आपका विश्वास गणपति पर या लक्ष्मी पर होगा, तो ही फल मिल मिल सकतµi इसलिये विश्वास आपके अन्दर आवश्यक है।— तो विश्वास कैसे बने? विश्वास तो करना ही पड़ेगा।
देवताओं ने आपको जन्म दिया है, शरीर दिया है, भारतवर्ष दिया है, शरीर में एक जीवन है, जो कुछ दिया है, कम से कम उसके उसके प्रति तो कृतज कृतज बनें हम हर समय कोसते रहते हैं देवताओं को और अपने आपको तो उससे जीवन में पूर्णता नहीं मिल सकती सकती अगर मैं अपने जीवन में श्रद्धा के माध्यम से कुछ प प्राप्त कर सकता हूं तो आपको भी उपदेश दे सकता हूं हूं अगर मैं 19 साल हिमालय में रह सकता हूं तो मैं आपको भी बता सकता हूं कि यह मंत्र सही है मैं कोई बिना पढ़ा लिखा मनुष्य नहीं हूं। मैंने भी पढ़ाई, लिखाई की है। एम-ए- किया है, पी-एच-डी- की है यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर रहा हूं, फिर भी पूरा जीवन हिमालय में व्यतीत किया है और तुमसे ज्यादा दुगुनी उम्र लिये हूं, अधिक अनुभव लिये हूं और इसीलिये तुमसे कह रहा हूं कि मंत्रें में ताकत है, क्षमता है और उनके माध्यम से, मैं एक अकिंचन ब्राह¨ मैंने अपना ही उदाहरण लिया।
यह एक बीज था, छोटा सा बीज एक बीज की कोई हिम्मत नऀ॥नऀीनऀीत इतना सा अगर बीज है, हम मुट्ठी में क करें तो मुट्ठी में बंद हो ज जायेगा। मगर वह बीज जब जमीन में गाड़ते हैं और उसे खाद पानी देते हैं तो चार पांच साल में विशाल पेड़ ज जाता है बड का पेड़ बन जाता है और उसके 5 सौ व्यक्ति बैठ सकते सकते हैं उस बीज में इतनी ताकत थी, कि एक पेड़ बन जाये। मैं भी एक बीज था, जमीन में गड़ा, खाद पानी मिला, तकलीफ आई, मगर मैं अपनी क्षमता के साथ उस से जुड़ा रहा। आज मैं वह वृक्ष बना और मेरे सैकड़ों हजारों साधु संन all'avore मैं बीज से पेड़ बना, तो आप भी बन सकते हैं।
मैं अपने अनुभव के आधार पर कह सकता हूं अगर एक व्यक्ति इस रास्ते पर चलकर सफलता प्राप्त कर सकता है तो तुम भी कर सकते हो हो।। हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो tivamente मगर मुझे विश्वास था उस खाद पर, पानी पर, जमीन पर कि ये खाद, पानी, हवा, मुझे पेड़ बनाएंगे। अगर मैंने संन्यासी-जीवन लिया है तो पूर्ण सफलता प्राप्त की है है है है है है मैं हिला ही नहीं, विचलित नहीं हुआ, डगमगाया नहीं। मैं भी नौकरी में था, प all'avore आज से पच्चीस तीस साल पहले, दस हजार की बहुत कीमत होकीमत हो मगर मैंने ठोकर मारी उसको कि यह जिन्दगी नहीं हो सकसकऀ ऐसे प्रोफेसर तो पूरे भारत में एक लाख होंगे। इससे जिन्दगी पार नहीं हो सकती। मुझे कुछ हट कर करना पड़ेगा या तो मिट जाऊंगा या कराकर
यदि मैं ऐसा बन सकता हूं, तो तुम्हें सलाह देने का हक रखता हूं हूं यदि मैं नहीं बनता, मैं यों ही बैठा रहता तो तुम्हें कहने का हक नहीं रख सकता था। इस रास्ते पर चलकर यह हक प्राप्त कर सकता हूँ, यदि मैं सिद सिद के माध¨ मेरा विश्वास है, आपको विश all'avore यदि गुरू मुझे कह दें कि सब छोड़ कर चले आओ तो मैं पत्नी से मिलूंगा ही नहीं सीधा यहीं से रवाना हो जाऊंगा, क्योंकि मेरी आस्थई
मैंने जिस समय संन्यास लिया, उस समय शादी हुये बस 5 महीने हुए थे थे पांच महीनों में मैं छोड़ कर चला गया। पत्नी की क्या हालत हुई होगी, आप कल्पना कर सकते होा मगर मैंने कहा, ऐसे तो जिन्दगी नहीं चलेगी। ठोकर तो लगानी पड़ेगी या तो उस पार जाऊंगा या डूब जाऊंगा या मामूली ब्राह्मण बन कर रह जाऊंगा। हिमालय में जाऊंगा तो या तो समाप्त हो जाऊंगा या कुछ प all'avore
आप, पंडित, पुरोहित और ब्राह्मण_ पोथी में पढ़कर उपदेश देते हैं हैं मैंने जो कुछ जीवन में सीखा है, वह दे रहा हूँ, मैं आँखों देखी बात कर रहा हूँ, पोथियों की देखी बात नहीं कर रहा हूँ हूँ पोथियों में सही लिखा है या गलत लिखा है, वह अलग बात ईह। हो सकता है उनमें गलत भी लिखा हो, हो सकता है खाही लही ऋऋही मगर मैं देखना चाहता था छानकर, कि यह सब क्या है? मैं केवल सत्य तुम्हारे सामने रखना चाहता हूँ,, क्योंकि तुम मेरे शिष्य हो और मैं तुम्हें शिष्य बना रहा हूँ और दीक्षा दे रहा हूँ और दीक्षा देने के बाद भी मेरा अधिकार समाप्त नहीं हो जाता कि दीक्षा दी और आप अपने घर, मैं अपने घर । तुम्हारी डयूटी है कि तुम मुझसे जुड़ोगे। तुम्हारी शिकायत आती है कि गुरू जी, मैं जोधपुर आया, पांच दिन रहा, आप मुझसे मिले ही नहीं कोई जरूरी नहीं कि पांच दिनों में मिल जाऊं आपको, ऐसा कोई ठेका नहीं ले रखा है मैं आपको अभी कह रहा हूं, ऐसा नहीं है आप आये और मैं दरवाजा खोल कर, सब कुछ छोड़कर तुमसे गले लूं लूं लूं यह जरूरी नहीं है कि जो आये उससे मिलूं, मुझे अपने घर का कामकाज देखना पड़ेगा, घर में मेहमान आयेंगे भी देखना पड़ेगा।
ऐसा नहीं है कि आपके प्रति अश्रद्धा है। आपके प्रति प्रेम में कमी नहीं, मेरे हृदय के दरवाजे हमेशा खुले हैं हैं मगर आप आलोचना करने लग जाये कि गुरूजी पांच घंटे मिले ही नहीं, तो कोई जरूरी नहीं है कि मैं मिलूं आप कहें कि गुरू जी के पास गया, पांच रूपये भेंट किये मेरी लड़की की शादी हुई ही नहीं नहीं अब पांच nessuna यों लॉटरी लगती, तो ये बिरला और 25 फैक्टरी खोल लेते। हनुमान जी इसलिये नहीं बैठे कि तुमने पांच रूपये का सिन्दूर चढ़ाया और तुम्हारी पांच लाख की लॉटरी निकल, तुम्हारी लड़की की की शादी हो गई गई गई गई गई गई गई गई गई गई गई गई गई गई गई गई गई यह तुम्हारी गलतफहमी है कि हनुमान जी बैठे-बैठे यह करते रहेंगे हेंगे ऐसा संभव नहीं होता। तुम आये, तुमने गुरू जी के पांव दबाए और कहा, गुरूजी! मेरी लड़की की शादी नहीं हो रही है।
अब मैं तो यही कहूंगा कि हो जाएगी, चिंता मत कर। मगर इसके बाद अनुभव करना होगा कि मैंने दिया क्हा ं? प्रश्न पैसे का नहीं है। तुम्हारी तरफ से मुझे प्रेम मिलना चाहिये, श all'avore a आप में धैर्य है ही नहीं और फिर तुम आलोचना करो! आलोचना करने से जीवन में पूर्णता नहीं प्राप्त हो आलोचना तो कोई भी, किसी की भी कर सकता है। मैं तुम्हारी आलोचना कर सकता हूं तुम तुम्हारी मूंछ अच्छी नहीं है, तुम्हारे बाल अच्छे नहीं, बस आलोचना हो गई गई गई गई गई गई हो हो ये ही आपके गुण भी हो सकते हैं, परंतु जिसे आलोचना करनी है, वह आलोचना ही करेगा।
मैं तुम्हारी आलोचना का जवाब दे रहा हूँ और इस बात की मुझे परवाह है ही नहीं जीवन में मैं तलवार की धार पर चला हूं और आगेभी चलॗ न मैं कभी झुका हूं और न कभी झुक सकता हूं। क्या तुम चाहते हो कि तुम्हारे गुरूजी बिल्कुल लुंज पुंज बेकार से, ढीले ढाले हों और हरेक के सामने झुकें! क्यों झुकें? यदि मैंने व्यर्थ में कोई काम किया है, व्यर्थ में कोई चापलूसी की है, व्यर्थ में कोई पैसा लिया है, तो मैं झुकूंगा। मैं अगर तेज धार पर रहता हूं, तो तुम्हें भी यही सलाह देता हूं कि शिष्य होकर अपनी मर्यादा में तेज धार में रहो। संसार में तुम्हारा कोई कुछ बिगाड़ ही सकत सकता, तुम्हें डर ही नहीं किसी क का।
मैं तुम्हें दीक्षा देता हूं तो इसका अर्थ यह नहीं कि तुम all'avore अगर तुम मेरे शिष्य हो, तो तुम्हें मजबूती के साथ खड़ा होना पड़ेगा समाज में में कायरता से और आलोचना से जिन्दगी नहीं जी जाती। तुम्हारा कोई कुछ बिगाड़ सकता ही नहीं, बिगाड़ेगा तो मैं तुम्हारे साथ में खड़ा हूं, कहीं कोई तकलीफ तो जिम जिम्मेदार हूं हूं आप एक बार मुझे परख करके देखें, टैस्ट तो करके देेट! आप आये यहां मेरे पास और टैस्ट तो करें, आप मुझसे मिलिये तो तो सही मैं आपसे नहीं मिलूं, आपका काम नहीं करूं, तो मेरी जिम्मेदारी है है
मगर तुम्हें विश्वास बनाना पड़ेगा, श्रद्धा रऀइनी शादी होने के दस साल ब Schose विश्वास टूटने से काम नहीं चल सकता। इसलिये देवताओं के प्रति एक बार विश्वास पैदा करें, एक बार मंत all'avore मैने आपको मंत्र दिया लक्ष्मी का और आप घर गये और मंत्र जप किया 5 दिन और कहने लगे कि सोने की वर्षा तो हुई ही नहीं, यह मंत्र तो झूठा है, गुरूजी ने कहा था पर हुई नहीं वर्षा, गुरूजी बेकार हैं।
ऐसा नहीं हो सकता। ऐसा हो भी सकता है, परन्तु श all'avore विश्वामित्र इतना तेजस्वी बालक था, उसके बावजूद भी उसके घर में लक्ष्मी थी ही, दरिद्र था, तुम ज्यादा दरिदogo, अनाथ।। उसके बाद उसने कहा कि मेरे मंत all'avore ऐसा हो ही नहीं सकता कि मैं मंत्र जप करूं और लक्ष्मी नहीं आये! एक अटूट विश्वास था। अपने आप पर विश्वास था।— और पहली क्लास का व all'avore मैं अगर किताब दे दूं एम-ए- की कीट्स की, मिल्टन की या शेक्स्पीयर की और तुम्हें कहूं कि, तो तुम्हें कुछ समझ में ही नहीं आयेगा। पहले आप पहली क्लास में, फिर दूसरी पढ़ेंगे, फिर तीसरी पढ़ेंगे, फिर मैट्रिक करेंगे, बी-ए- करेंगे, फिर एम-ए करेंगे तो फिर किताब समझ आयेगी आयेगी आयेगी आयेगी आयेगी आयेगी आयेगी आयेगी आयेगी आयेगी आयेगी आयेगी आयेगी अब साधना में तुम क्लास में औ और वह साधना एम-ए- लैवल की है है उसके लिए 16 साल मेहनत करनी पड़ेगी, तब समझोगे।
पहली क्लास का बच्चा ए, बी, सी, डी प प्ढ़ लेगा किन्तु उससे मिल्टन की किताब तो नहीं पढ़ी जायेगी। अगर 16 साल मेहनत करने से साधना सिद्ध होती है तो एक दिन में कहां से हो जायेगी? तुम कहोगे, लक्ष्मी ने आकर घुंघरू बजाये ही नहीं, पांच दिन हो गये लक्ष्मी आई ही नहीं नहीं गुरूजी ने कहा कि आयेगी, पता नहीं क्या हुआ? और फिर तुम कहोगे, गुरूजी झूठे और मंत्र झूठा, लक्ष्मी झूठी, तीनों झूठे हो गये और तुम सत्य हो गए गए एक बार आवाज दोगे, तो पत्नी भी नहीं आयेगी, - तो लक्ष्मी कहां से आएगी? मेरे कहने का तात्पर्य है कि धैर्य चाहिये। एक बार साधना करो, नहीं सफलता मिलेगी दूस दूसरी बार करो, पांच बार करो। कभी तो सफलता मिलेगी ही, क्योंकि मंत्र सही है। इस मंत्र के माध्यम से जब सफलत सफलता पाई है और शिष्यों ने सफलता पाई है तो तुम्हें भी सफलता मिलेगी ही ही
—पर एक विश्वास कायम रखना पड़ेगा और जीवन में इन मंत्रें से वह सब कुछ प्राप्त होता ही है, जो कुछ मैं कहता हूँ कि लक्ष्मी साधना के माध्यम से धन मिलेगा, कर्जा कटेगा, ऐसा होता ही है, बस तुम में धैर्य कम है। तुम चाहते हो एकदम से रेडिमेड फूड आया, खाया और रवाना हो गये गये ऐसा नहीं है। तुम बाजार में जाकर रेडिमेड फूड खाओ और पत्नी खाना बनाकर खिलाये, उसमें डिफरेंस होगा। दीक्षा का तात्पर्य है, मैं तुम्हें कह रहा हूं उस रास्ते के लिए, मैं तेजस्विता दे रहा हूं, अब स साधना कर सकते हो हो।।।। हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो tivamente तुम सफलता पाओगे, धैर्य के साथ करने पर विश all'avore a वे तुम्हें गलत गाइड करते हैं। तुम तो सही हो, पर वे कहते हैं- और तुम गए थे, क्या हुम?
तुम कहोगे- लक्ष्मी का मंत्र लाया। तुम करोगे लक्ष्मी मंत्र पांच दिन और लक्ष्मी आयेगी नहीं, तो वो कहेंगे- ले, अब क्या हुआ? हम तो पहले ही कह रहे थे कि सब झूठ और तुम्हारा माइंड खराब हो जायेगा। तुम्हारा विश्वास खत्म हो जायेगा। किसी के घर का सत्यानाश करना हो तो मूल मंत मंतµmonta चलो जाने दो जाने दो, कुछ नहीं। अब उस पति के माइंड में घूमता रहेगा। वह पूछेगा पत्नी से, कहां गई और वह कहेगी कहीं नहीं गई थी थी बस वो कितना ही समझाये पति के दिमाग से कीड़ा निकलेगा ही नहीं नहीं वो कहीं भी जायेगी, वह पीछे-पीछे जायेगा। बस पूरा जीवन उनका तबाह हो जायेगा। बस किसी ने कह दिया इस मंत्र से क्या होगा? और तुम्हारा माइंड खराब हो गया। अब चार दिन तुम्हारा माइंड खराब रहेगा कि मंत्र बेकार है, गुरू जी बेकार है तुम खराब नहीं हो, वे आस-पास के खराब हैं वे न तो खुद कुछ करते हैं और न तुमको करने देंगे उनका काम ही यही है, आलोचना करना, चाहे तुम्हारे चाचा हों या ताऊ हों, या सम्बन्धी ही हों। जो जिन्दगी भर कुएं में रहे वे तुम्हें मानसरोवerv
तुम्हारे अपने अन्दर ताकत है, तो तुम सफलता पाओगे। मेरे साथ भी यही घटना घटी। मैंने सन्यास लिया तो मुझे सब ने कहा, क्यों जा रहा? क्या फायदा है? सब ने सलाह दी- यहीं रूको, क्यों दस हजार की नौकरी को ठोकर मा रहे हो, तुम्हारे जैसा मूर्ख दुनिया में नहीं होगा।
मैंने कहा, कोई बात नहीं, मूर्ख हूं तो मूर्ख ही सही भले ही समुद्र में डूब करके मर जायेंगे, लेकिन क कर तो देखेंगे देखेंगे पर पांव तुम्हारा मजबूत रहेगा तो तुम सफलता पाओगेतगे तुम्हारे पांव कमजोर हैं, तुम औरों की बातों पर विश्वास करके चलोगे तो तुम all'avore आप कमजोर हैं तो इस र रास्ते पर चलिये ही मत, यह आपका रास्ता है ही नहीं नहीं आप अपनी पैंट पहनिये और नौकरी पर जाइये, चुपचाप आँख नीची करके घर आइये, पत्नी थैला देकर कहे की सब्जी लेकर आइये, चुपचाप सब्जी लाकर घर में रखिये, पत्नी जब भी हल्ला करे तो चुपचाप रहिये और रात को सो जाइये। यह रास्ता सीधा है, इसमें खतरा कम है। —और मैं जो रास्ता बता रहा हूँ, उसमें खतरा बहुत है। यह बहुत तेज तलवार की धार की बात है, हिम्मत की बात है और उच्चता, श्रेष्ठता, सफलता की बात है है तुम्हारे जैसे लोग और नहीं होंगे। तुम अद्वितीय बनोगे। तुम अपना जीवन मुझे सौंपो, मैं तुम्हें अद्वितीय बना दूंगा, ऐसा पृथ्वी पर कोई नहीं होग होगा। विश्वामित्र ने ऐसा कहा दशरथ को, पर साथ ही यह भी कह दिय दिया कि जरूरी है कि राम, लक all'avore दशरथ तुमसे मिलने भी नहीं, न तुम मिलने जाओगे और दशरथ ने कहा- मैं इनसे मिलने नहीं आऊंगा और न कोई घर का, इन्हें मिलने आयेगा। ये मेरे घर तब तक वापस नहीं आयेंगे तक तुम पूरा संस्कार नहीं कर लोगे।— मगर आप इन्हें अद्वितीय बनाये और मैं इन इन मिलने नहीं नहीं आऊंगा, चाहे बहुत प र रम र हैं हैंriga प है है मिलने मिलने नहीं आऊंग आऊंगा, चाहे बहुत प पrig प ieri हैं हैं िय है है है मिलने नहीं नहीं आऊंगा, चाहे बहुत प पrig di और ऐसा ही दशरथ ने किया। मैं भी वही बात तुम्हें कह रहा हूं प परिवार की चिंता तुम मत करो औरों पर विश QIORE तुम्हारे मेरे बीच वचनबद्धता है। गारंटी के साथ बनाऊंगा, यह मेरा विश्वास है।
आप tiva राजा के महलों में nessuna दशरथ को विश्वास था कि यहां रहने पर तो केवल एक राजकुमार बनकर रह जायेगा, वहां जायेगा तो भगवान बन जाएगा।
भगवान तुम भी बन सकते, भगवान कोई पेट से पैद पैदा नहीं होते, अपने कार्यों से भगवान बनते हैं पैदा तो सब एक से ही होते हैं, चाहे आप या राम हों, या लक्ष्मण हों, या मैं, चाहे कृष्ण हों हों उसके बाद उन्होंने कितनी रिस्क ली, कितनी जिन्दगी में तकलीफ उठाई है, कितने खतरे उठाये हैं उससे वे भगवान बनते हैं अद्वितीय आप भी बन सकते हैं, मगर पैसों के माध्थम स पैसों के माध्यम से भगवान! - तो बिड़ल बिड़ला और टाटा भगवान हैं ही ही ऐसे भगवान नहीं बन सकते। भगवान बनने का रास nello जीवन के दो हेतु हैं, दो तरीके हैं और दोनों के ही माध्यम से जीवन को प पार किया जा सकता है चाहे आप हों या मैं हूं, चाहे साधु हों या संन्याहो कुछ लोग ऐसे होते हैं जो घिसी- पिटी जिन्दगी जी कर पूरा जीवन व्यर्थ कर देते हैं। ऐसे 60 प्रतिशत लोग हैं। उनमें हिम्मत, जोश होता ही नहीं।— और जो चैलेंज क का भाव नहीं होता और जो चैलेंज नहीं ले सकता वह जीवन में नहीं हो सकता, जीवन में सफलता के लिए आवश आवश आवश है है किसी किसी ब ब ब क चैलेंज चैलेंज लें लें लें लें हो हो सकत सकत जीवन में सफलत सफलत के लिए आवश आवश आवश है है, किसी किसी बens आप जिस भी क्षेत्र में जायें उच्च कोटि के बनें। साधक बनें तो ऐसा साधक बनें कि पूरा भारत आपको याद याद याद ज्योतिषी के क्षेत्र में हो तो आप नम QI वन ज ज हों हों, जो कुछ करें उच्च हो। हो। हो। हो। हो। हो। ऐस होने में िस रिस बहुत औ औ जो खत खतरों से जूझ नहीं सकत वह मनुष मनुष मनुष नहीं नहीं वह वह पशु है जो जो जो खतरों से जूझ नहीं नहीं वह मनुष मनुष मनुष मनुष नहीं नहीं वह वह पशु है जो जो जो खतरों से जूझ नहीं नहीं वह वह मनुष मनुष मनुष नहीं नहीं नहीं वह पशु है जो जो जो खतरों से जूझ नहीं नहीं वह वह मनुष मनुष मनुष नहीं नहीं नहीं वह पशु है है जो जो खत खतरों से जूझ नहीं नहीं वह मनुष मनुष मनुष मनुष नहीं नहीं नहीं वह पशु है l'hanno
हमारे जीवन का सार एक आधार भोग है, एक मोक्ष है। एक रास्ता मोक all'avore अब इनमें से कितने साधु सही होते हैं, मैं नहीं सह ा भगवा कपड़े पहनने से कोई साधु नहीं होता, लंबी जटा बढ़ाने से कोई साधु नहीं होत होत। साधु तो वह होता है जिसमें आत्मबल हो, जूझने की शक्ति हो, जो देवताओं को अपनी मुठ्ठी में रखने की क्षमता रखता हो। साधयति सः साधु जो अपने शरीर को, मन स साध लेता है वह साधु है है
जो खुद ही हाथ जोड़कर कहे- तुम मुझे रूपये दे दो, तुम्हारा कल्याण हो जायेगा, वह साधु नहीं सकता। उन लोगों में है ही नहीं । आत्मबल आत्मबल एक अलग चीज, जो लाखों लोगों की भीड़ खड़े होक होकर चैलेंज ले सकत है है अगर मंत्र क nello में में हो तो कह सकता है कि संसार में कोई मेरे सामने आकर खड़ा हो, मैं स स्वीकार करता हूँ, ऐसी हिम्मत, ऐसी क क क ऐसी आँख में में में चिंग चिंग च होनी। हूँ हूँ ऐसी ऐसी हिम्मत, ऐसी क क क क ऐसी ऐसी आँख में में में में चिंग च च होनी। उसकी बोली में क्षमता होनी चाहिये। ऐसा व्यक्ति सही अर्थों में साधु भी हो सकता है और मोक्ष भी प्राप्त कर सकता है
मोक्ष प्राप्त करना इतना आसान नहीं और मोक्ष प्राप्त करने के लिए जंगल में जाने की जरूरत नहीं हैं, हिमालय में जाने की जरू नहीं नहीं है जो सभी बंधनों से मुक्त हो, वह मोक्ष है।— और आपके जीवन में कोई बंधन बंधन है है लड़की की शादी करनी है, बीमारी से छुटकारा पाना हैी घर में कलह है- ये सब बंधन है। उन बंधनों से मुक्त होना ही मोक्ष कहलाता है। मोक्ष का मतलब यह नहीं, कि मरने के बाद जन्म ले ही ननं हम तो कहते हैं, वापस जन्म लें, वापस लोगों की सेवा करें, चैलेंज स्वीकार करें और अद्वितीय बनें हम क्यों कहें कि हम वापस जीवन नहीं चाहते। हम हजार बार जन्म लेना चाहते हैं, हजार बार जीवन में चैलेंज लेना चाहते हैं और जीवन में सफल होना चाहते हैं हैं मोक्ष का अर्थ यह नहीं कि पुनर्जन्म हो ही नहीं। मोक्ष का अर्थ है, हम जीवन स सारे बंधनो से मुक्त हो जाये।— और ऐसा व्यक्ति गृहस्थ में रहते हुए स साधु हो सकता है, भगवान कपड़े पहने भी भी गृहस गृहस हो हो है है।। स हो हो सकत है, भगवान कपड़े पहने हुए भी भी भी गृहस गृहस हो है है साधु हो और उसकी आंख ठीक नहीं हो, गंदगी हो आंख में, उसमें लालच की वृत्ति हो तो वह गृहस्थ से भी गया बीता व्यक्ति है है कम से कम यह तो है ही हम गृहस्थ हैं, हमारी आंख गंदी हो सकती है, हम कु दृष्टि से देख सकते हैं हैं मगर वे साधु हैं, अगर वे ऐसे लालची होंगे तो साधुत्व ही समाप्त हो जायेगा। इसलिये साधुओं के प्रति हमारे जीवन में आस्था ईगऋ ईईऋ ईई๋ऋ इसलिये उनके प्रति सम्मान कम हो गया है।
या तो एक रास्ता है मोक्ष का और दूसरा रास्ता है भो रास्ता है भो भोग का मतलब है कि हम गृहस्थ बनें, हमारी पत्नी हो, पुत्र हों, बंधु हों, बांधव हों, यश हो, सम्मान हो, पद हो, प्रतिषा हो और हम अपने आप में में अद अद बनें बनें यदि ऐसा नहीं कर सकते तो फिर घिसा-पिटा जीवन जीने का मतलब ही नहीं नहीं है है आपके मन में कभी चेतना पैदा नहीं होती कि कुछ अद्वितीय करूं! इसलिये पैदा नहीं होती कि आपके जीवन में उत्साह समाप्त हो गया है, तुम all'avore जीवन जीने के लिये तो एक चुनौती का भाव होना चाहिये, एक आकाश में उड़ने की क्षमता होनी चाहिये। एक तोता है, पिंजरे में बंद है। चांदी की शलाकाये बनी हैं और बड़ा सुखी है, उसको तकलीफ है ही नहीं, खतरा है ही नहीं नहीं उसको अनार के दाने खाने को ह रहा है मालिक, बोल मिट्ठू राम -.... concuofere उसको बाहर निकालते हैं, नहलाते हैं, पंख पोंछते हैं और वापस पिंजरे में बंद कर देते हैं।— और एक तोता है, जो पचास साठ किलोमीटर उड़ता है, उसे अनार के दाने खाने को नहीं मिलते, उसके पैरों में घुंघरू नहीं बंधे, मगर वह जो उसे आजादी है, वह उस तोते को नहीं सकती जो च चांदी के पिंजरे में बंद है है वह आनन्द उस पिंजरे में बंद तोते को मिल सकता, और तुम भी वैसे ही पिंजरे में बंद तोते हो हो तुम्हारें मां-बाप, भाई-बहन तुम्हें पिंजरे का एक तोता बना दिया है और उसमें आप बहुत खुश हैं हैं आपको हरी मिर्च और अनार के दाने खाने को मिल रहे हैं और कभी आप उस तोते को पिंजरे के बाहर निकालिये, वह तुरन्त उस पिंजरे में व घुस घुस ज ज consumi वह बाहर खतरा महसूस करता है म मर जाऊंगा, कोई बिल्ली खा जाएगी।
—और तुम भी एक दो मिनट निकाल कर गुरूजी के पास आते हो और फिर वापस अपने घर में घुस जाते हो गुरूजी ने जो कहा उसमें खतरा है, मंत्र जप सब गड़बडड़बड वापस अपने पिंजरे में घुसे- पत्नी भी खुश, आप भी खुश पत्नी को चिंता है कि चला जायेगा गुरूजी के पीछे, साधु बन जायेगा, कोई भरोसा नहीं है पत्नी कहती है, तुम्हें क्या तकलीफ है? चाचा भी कहते हैं, मामा भी कहता है, मां भी कहती है और आप वापस उस जीवन में घुस जाते हैं, जो पूरी जिन्दगी की गुल गुलामी है।।।। है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है गुल गुल गुल गुल गुल गुल गुल गुल गुल गुल गुल गुल गुल गुल गुल गुल गुल गुल गुल गुल गुल गुल गुल गुल गुल गुल गुल गुल गुल गुल गुलiato तुमने कभी आकाश को नापने की हिम्मत नहीं, इसलिये वह वह आनन्द नहीं उठ उठ सकते सकते उसके लिये तो तुम्हें चैलेंज उठाना पड़ेगा जीवन ं तुमने मानसरोवर में डुबकी लगाई नहीं, तो तुम्हें क्या पता लगेगा कि मानसरोवर की गहराई क all'avore मैं ऐसा नहीं कह रहा कि तुम गृहस्थ से अलग हट जाओ। गृहस्थ में रहो, मगर संन्यासी की तरह रहो। गृहस्थ में रह रहे हो तो इस भाव, कि मैं संसार में आया हूं और सब अपना खेल, खेल रहे हैं मैं देख रहा हूं और मुझे तटस्थ रहना है।
मेरे गृहस्थ शिष्य हैं, तो मुझे उन्हें बताना ही होगµ मैं उन्हें संन्यासी नहीं बना सकता। संन्यासी बनने के औ और साधना करने के लिए कोई हिमालय में जाने की जरूरत नहीं है हम गृहस्थ में रहते हुए भी उन साधनाओं को कर सकते हैं- र भोग का अर्थ है- धन, ऐश्वर्य, पूर्णता- ieri उसका आधार है लक्ष।। बिना लक्ष्मी के गृहस्थी नहीं चल सकती। यदि तुम्हारे घर में आटा नहीं है तो ध्यान लगाकर नहीं बैठ सकते सकते उसके लिए भी जरूरी है, तुम पहले ऐश्वर्यवान बनो। इतना धन हो कि तुम्हें याचना करने की जरूरत न पड़ेत इतना धन हो कि सारी समस्याओं से मोक्ष प्राप्त कर ं जब ऐसी स्थिति बनेगी तो तुम ध्यान भी कर सकोगे साधना भी कर सकोगे सकोगे मगर लक्ष्मी पहला आधार है और उसके बिना आपके जीवन में पूर्णता आ नहीं सकती सकती
जीवन में अद्वितीय बनने के लिए केवल छः महीने बहुत, पचास साल जरूरी नहीं है है अगर छः महीने पूरी क्षमता के साथ साधना करें तो हम पूर्णता प all'avore a उठाना चाहिये, जिससे आप लाभ उठा सकें और औरों को भी लाभ हो सके सके आपके मन में लोगों ने एक भय पैदा कर दिया है कि साधना करोगे तो बर्बाद हो जाओगे, साधु बन जाओगे, साधना में सफलता मिलेगी नहीं।—और तुम्हारे मन में जो भय है तो पांच सौ गुरू भी आ जाये तो वे इस भय को नहीं मिटा सकते। किसी पत्रकार ने मुझसे पूछा कि क्या पूर्व जन्म हो पूर्व जन्म हो मैंने कहा- होता है, आपका पिछला जीवन य याद है, बिना पिछले जन्म के सम्बन्ध के आप मुझे जान ही सकते थे थे यह संभव ही नहीं था। पिछले जीवन के सम्बन्ध ही इस जीवन में बनते हैं। मैं पिछले जीवन में भी आपका गुरू था और इसीलिये कहता हूं कि साधना का रास्ता ही आपका रास्ता हैं और चैलेंज के साथ साधना करोगे तो लक्ष्मी तो एक मामूली बात है, सम्पूर्ण देवता आपके सामने खड़े हो सकते हैं। जब राम और कृष्ण और बुद्ध के सामने खड़े हो सकते हैं तो आपके सामने भी खड़े हो सकते हैं हैं
और मैं भी वही कहता हूं, तुम खुद ब्रह्म हो। मगर तब, जब तुम्हें अपना पूरा ज्ञान हो। अगर हम जीवन में चैलेंज लेकर आगे बढ़ते हैं निश निश्चय ही हम सफलता प्राप्त करते हैं और ऐसे सैकड़ों उदाहरण मेरे सामने हैं कि उन शिष− शिष ने चैलेंज लिय लिया और वे सफल हुए सफल मेरे हृदय पटल में तो हजारों नाम हैं जिन्होंने धारणा को लेकर कार्य किया और सफलता प्राप्त की। आप किस प्रकार का जीवन जीना चाहते हैं वह तो प पर निर्भर है है मैं तो आपको सिर्फ समझा सकता हूं, मैं अहस अहसास करा सकता हूं कि जीवन का आनन्द क्या है? और साधना द्वारा हम उस स्थान पर पहुँच सकते हैं जहां विरह होता ही नहीं हम आँख बंद कर चिंतन करते हैं गु गुरू हमारी आँखों के सामने साक्षात् हो जाते हैं साधना के माध्यम से हम प्रभु के चरणों में पहुँच सँच सं आपके जीवन में ऐसा आनन्द हो, ऐसा संतोष हो, आपके जीवन में पूर्णता हो, आप भी ध्यान लगाने कि प्रक्रिया में संलग्न हो सकें, अपने इष्ट के दर्शन कर सकें और अपने आपको पूर्ण रूपेण गुरू चरणों में समर्पित करते हुए उस ज्ञान को प्राप्त कर सकें जो हमारे पूर्वजों की धरोहर थी, ऐसा ही मैं आप सबको हृदय से आशीर्वाद देता हूँ
परम् पूज्य सद्गुरूदेव
Signor Kailash Shrimali
È obbligatorio ottenere Guru Diksha dal riverito Gurudev prima di eseguire qualsiasi Sadhana o prendere qualsiasi altro Diksha. Si prega di contattare Kailash Siddhashram, Jodhpur attraverso E-mail , WhatsApp, Telefono or Invia richiesta per ottenere materiale Sadhana consacrato e mantra-santificato e ulteriore guida,