जीवन का सर्वाधिक मूल all'avore ज्ञान के उस प्रकाश के पहुँचते ही चित्त में परिवर्तन होना शुरू हो जाता हैं जो कलियां सुप्त थी वह खिलकर फूल बन जाती है। मनुष्य के भीतर जो प्राण शक्ति सुप्त थी, वह जाग उठती हैं और जिस दिन प्राण शक्ति पूर्णरूपेण जाग जाती हैं, उस दिन प्राणों में एक सम्बन्ध स्थापित हो जाता है। फिर मनुष्य विभिन्न हिस्सों में नहीं रह जाता है उसके भीतर फिर कोई द्वंद्, कोई कलह, कोई हलचल नहीं रहता। उसके भीतर एक शांति स्थापित हो जाती हैं। थोड़ा प्रकाश मौजूद है। यदि उतना भी प्रकाश मौजूद न होता तो फिर हम कुछ भी नहीं कर सकते थे थे लेकिन थोड़ा प्रकाश मौजूद है हमारे मन के किसी कोनो एक दीय दीया जला हुआ, वहाँ रोशनी हो रही है उसी रोशनी में आप सद्गुरूदेव जी की बात सुन रहे है उसी रोशनी में आप चल रहे है है A causa di ciò che ho fatto, ho avuto la possibilità di farlo. छोटी सी रोशनी में।
मनुष्य अनन्त संभावनाओं, अनन्त बीजों के के साथ पैदा होता है फिर जिस प पर श्रम करेगा वही फूल उसमें खिलेंगे हम स्वयं प्रतिपल अपने प्रत्येक विचार, चिंतन निर्माण कर रहे है इसलिये एक-एक कार्य को अत्यन्त धैर्य, निष्ठा, चिंतनशील होकर सम्पन्न करना चाहिये जिसने अपने भीतर के ज्ञान को जान लिया, दृष्टा को जान लिया उसकी सारी ग्रन्थियाँ कट गई, उसके जीवन में कोई गांठ न रही, उसका जीवन सापफ़ सुथरा हो गया। फिर वह जैसा भी जीता है उसमें स सरलता है, एक विनम्रता है, उसके जीवन में एक स सादगी है
यदि व्यक्ति में संतुष्टि का भाव जाग्रत हो जाये, तो उसके आत्मबल में वृद्धि होनी सुनिश्चित है और वह कठिन से कठिन कार्य को सरलता पूर्वक सम्पन्न कर सकता है और यदि अपनी योग्यता से निराश है, धनहीनता से दुखी हैं, बाधाओं से परेशान हैं, असफलता के कारण नकारात्मक विचारों से ग all'avore क्योंकि मानव जीवन है ही संघर्ष करने के और व all'avore a स्वयं को श्रेष्ठ बनाने का हर संभव प all'avore a यह जीवन का मूल्यवान सूत्र है। लेकिन तुम करते क्या हो, सिर्फ और सिपफऱ् दूसरों की बुराई और कमियाँ ढूंढते हो, यही करने में तुम all'avore यदि अपने स्वभाव में परिवर्तन नहीं लाये तो कुछ प्राप्त भी नहीं कर पाओंगे।
सद्गुरू तुम all'avore a प्रकाश को भीतर आत्मसात नहीं कर रहे हो, क्योंकि यदि भीतर प्रकाश प्रवेश कर गया तो तुम्हारी निंदा करने की प्रवृत्ति का सर्वनाश हो जायेगा, विश्वासघात, छल, झूठ, ईर्ष्या, वासना और तुम्हारे अहंकार की मृत्यु हो जायेगी। फिर अनुभव कर सकोगे कि वास्तव में तुम all'avore लेकिन प्रारम्भ में कष्टदायी होगा, स all'avore लेकिन यदि तुम ने ऐसा किया तो वास्तविक रूप से तुम शिष्य कहला सकोगे, सद्गुरूमय बन सकोगे
एक व्यक्ति ने विभिन्न विद्याओं का अध्ययन पूर।ििििा अब वह आत्मविद्या का ज्ञान प्राप्त करना चाहता थाा इसलिये वह एक प्रसिद्ध ऋषि के पास समिप्यता प्राप्त करने के लिये उनके आश्रम पहुँचा। ऋषि ने उसे आश्रम में रहने की आज्ञा दी। उसे वहाँ कई प्रकार के सेवा कार्य दिये गये। इस प्रकार सेवा में कई दिन बीत गये अध अध्ययन आरंभ ना हुआ हुआ उसके मन में शिक्षा को लेकर कई प all'avore a
एक दिन वह घड़ा लेकर पानी भरने तलाब पर पहुँचा, तो क all'avore उसने जोर से घड़ा रेत पर पटका और एक ओर बैठ गया। घड़े से आवाज आयी- बटुक, तुम इतना क्रोध और उतावलापन क्यों दिखाते हो? गुरू ने तुम्हें शरण दी है तो निश्चित ही तुम्हारी मनोकामना भी पूर्ण होगी होगी वह बोला- मैं यहाँ आत all'avore घड़े ने कहा- सुनो मित्र, मैं पहले मिट्टी था, तब कुम्हार ने मुझे कूट कूटा, गलाया और कई दिनों तक रौंदा, मुझे आकार दिया और भटर भटर में में तपाया। इन सबकी बदौलत मैं इस रूप में तुम्हारे सामने खड़ा हूँ यदि तुम भी आगे बढ़न बढ़ना चाहते हो, भट QI कठिनाइयों को देखकर भयभीत नहीं होना, सद्गुरू रूपी चेतना जीवन के प्रत्येक पथ पर तुम्हारे साथ है, बाधाओं से विचलित नहीं होना, न ही कभी निराश होना, धैर्य, साहस और अपनी पूरी क्षमता के साथ अपनी समस्याओं से संघर्ष करना मैं तुम्हें विश्वास दिलाता हूँ कि यदि तुमने ऐसा किया तो निश all'avore जिसकी संकल्प शक्ति प all'avore
शिष्य के जीवन का आधार तत्व ही गुरू कृपा है, जो निरन्तर-निरन्तर ब्रह्माण्डीय शक शक्वा पाहित व है भी भी भी भी भी व व व व वµ उसे प्रगति पथ पर गुरू कृपा ईश्वरीय कृपा की आवश्यकता होती ही है है लेकिन बिना कर्मशील हुये कृपा की पवित्रता को धारण नहीं किया जा सकता। याद रखना जीवन में श्रेष्ठता और सफलता वही प all'avore a अकर्मण्य व्यक्ति निराशा व असफलतµi कर्मयोग ही भौतिक और आध्यात्मिक जीवन की मूलूीूत ईईईई गुरू मारrnoग बताता है, गुरू पकड़क पकड़कर चलना सिखाता है, एक आत्मविश्वास जगाता है यह विश्वास ही जीवन का सम्बल और आधार बनता है जिसने भी इस आधार को धारण किया वह लक्ष्य तक अवश्य पहुँचा। गुरू की डाँट, फटकार सहने वाला ही आनन्द, पूर्णता प्राप्त करता है गुरू हमेशा शिष्य को सत all'avore
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