जिस परमात्मा का हमें कोई भी पता नहीं है, उसका स्मरण बड़ी कठिन और असंभव बात है अगर हम यह जिद करें कि पता होगा तभी स्मरण करेंगे, तो भी बड़ी कठिनाई है है क्योंकि पता हो जाने पर स all'avore जो जानता हैं, उन्हें प्रभु का नाम लेने की भी कोई जरूरत नहीं है है A causa di ciò che è successo, prima di tutto. और जिन्हें पता नहीं है, वे कैसे प्रार्थना करें ! वे कैसे पुकारे उसे ! वे कैसे स्मरण करें! जिन्हें उसकी कोई खबर ही नहीं, उसकी तरफ़ वे हाथ भी कैसे जोडे़ और सिर भी कैसे झुकायें।
बूंद को सागर का कोई भी पता नहीं, लेकिन फिर भी बूंद जब तक सागर न हो जाये तब तक तृप्त नहीं हो सकती और अंधेरी रात में जलते हुये एक छोटे से को क्या पता होगा कि सूरज के बिना वह न जल सकेगा। लेकिन सूर्य कितना ही दूर हो, वह जो से अंधेरे में जलने वाला दीया है, उसकी रोशनी भी सूरbbiamo की ही रोशनी है है और आपके गांव में आपके घर के पास छोटा सा जो झरना बहता है, उसे क्या पता होगा कि दूर के सागरों से जुड़ा है! और सागर सूख जायें तो यह झरना भी तत all'avore झरने को देखकर आपको भी ख्याल नहीं आता कि सागरों से उसका संबंध है है
आदमी भी ठीक ऐसी ही स्थिति में है। वह भी एक छोटा सा चेतना का झरना है और उसमें अगर चेतना प्रकट हो सकी है तो सिर्फ इसीलिये कि कहीं चेतना का कोई महासागर निकट में है- जुड़ा हुआ, संयुक्त है, चाहे ज्ञात हो, चाहे ज्ञात न हो। ऋषि एक यात्र पर निकले थे इस सूत्र के साथ। लेकिन यह सूत्र बहुत अदभुत है और बहुत अजीब, क्योकि जिसकी खोज पर जा रहा है, उसी प्राथना कर रहा है। जिसका पता नही है अभी, उसी के चरणों में सिर रख रहा । यहकैसे संभव हो पायेगा? इससे समझ लें, क्योंकि जिसे भी साधना के जगत प प्रवेश करना है उसे इस असंभव को संभव करना पड़ता है
एक बात तय है कि बूंद को सागर का कोई भी पता नही है, लेकिन दूसरी बात भी इतनी ही तय है कि सागर होना चाहती है है है जो हम चाहते है, उसके समक्ष ही हमें प्रणाम करना होगा- हमें, वे जो हम हैं हैं A causa di ciò che è successo, è stato un errore. जैसे बीज उस संभावित फूल के सामने प्राथना करें, जो वह हो सकत है है इस प्रारscoथना से परमात्मा को कुछ लाभ हो जाता हो, ऐसा नहीं है लेकिन इस प्रार्थना से हमारे पैरों में बड़ा बज आ आ ा A causa di ciò che è successo, è successo. परमात्मा के प्रति नहीं है, अपने ही लिये हैं।
अगर बूंद ठीक से प्रारscoथना कर पाये सागर की, तो प प्राणों में कहीं सागर से संपर्क होना शुरू हो जाता है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है हैens और बूंद जब सागर को पुकारती है, तो किसी अज्ञात मार्ग से सागर होने की क्षमता और पात्रता पैदा होती है और जब बूंद कहती है सागर से कि मेरी सहायता करो ताकि मैं तुम तक पहुंच सकूं, तो आधी मंजिल पूरी हो जाती है। क्योंकि जिस बूंद ने श्रद्धा, आस all'avore a
प्रार nello थन के क्षण में प्राथना करने वाला वही नहीं रह जाता, जो प्रtarsi जैसे कोई द्वार खुल जाता है, जो बंद था। एक नया आयाम, एक य यात्र और एक नये आकाश का दर्शन होना शुरू हो जाता है नहीं यह कि आप आकाश तक पहुँच जाते हैं, बल्कि अपने घर के भीतर ही खडे़ होते हैं जह जहां थे आप कुछ दूसरे नहीं हो गये होते हैं.
अंधेरे में खड़ा है एक आदमी अपने ही मकान में और पिफ़र अपने द्वार को खोल लेत लेत है है वही आदमी है, वही मकान है, वही जगह है। कहीं कोई परिवर्तन नहीं हो गया है, लेकिन अब दूर का आकाश दिखाई पड़ने लगता है और मार्ग अगर दूर तक दिखाई न पड़े तो चलना बहु् मुशकै और मंजिल हम जहां खड़े, अगर वहीं से दिखाई पड़नी न शुरू हो जाये तो यात्र असंभव है
दीये की ज्योति बुझ जाती है, मिट नही जाती। दीये की ज्योति खो जाती है, समाप्त नहीं हो जाती। हमारी तरपफ़ से जो खोना है, वह दूस दूसरे की तरपफ़ कहीं मिलन बन ज जाता है है वह ज्योति आई थी, किसी विराट से और पिफ़र विराट में लीन हो ज जाती है है असीम से आती है और फिर असीम में चली जाती है। सागर से ही आती हैं वे बूंदें, जो घर पर बरसती हैं और आपके खेत, बाग और बगीचे, और फिर सागर में हो हो जाती है।।।।।।। है है है है है है है है है है
यह भी tiva उद्गम और अंत सदा एक हैं। जहां से जन्म पाता है, वहीं समाप्त, वहीं लीन, वहीं विदा हो जाता है है आने के द्वार एक ही है। ज्योति खो जाती है वहीं, जहां से आती है। ज्योति के इस खो जाने को मैं कहता हूं दीये का निवत् किसी दिन जब अहंकार भी इसी तरह खो जाता है, महाविराट में, तब उसे मैं व्यक्ति का निर्वाण कहता हूं।
परमात्मा से प्रार्थना करनी हो, तो कुछ और कहना यिाय Vuoi sapere cosa vuoi fare? परमात्मा शांत है। लेकिन इसे कहा हैं, शांति पाठ। जानकर कहा है, बहुत सोच -समझकर। वह इसीलिये कहा है प प्राथना तो करते है परमात्मा से, करते अपने ही लिये हैं और हम अशांत हैं और अशांत रहते हुये यात्र तहीं तसो अशांत रहते हुये हम जहां भी जायेंगे वह परमात्मा से विपरीत होगा। अशांति का अर्थ है, परमात्मा की प all'avore
असल में जितना अशांत मन, उतना परमात्मा से दूर। अशांति ही डिस्टेंस है, दूरी है। जितने आप अशांत हैं, उतना ही पफ़ासला है। अगर पूरे शांत हैं तो कोई भी फासला नहीं हैं, देन देअर इज नो डिस डिस्टेंस। तब ऐसा भी कहना ठीक नहीं कि आप परमात्मा के पास हैं, क्योंकि पास होना भी एक फ़ासला है नहीं, तब आप परमात्मा में, परमात्मा ही हैं। शायद यह कहना भी ठीक नहीं, क्योंकि परमात्मा में होना भी एक फ़ासला है है तब कहना ठीक है कि आप परमात्मा हैं। Per quanto riguarda l'altro, e per il resto. फिर दो नहीं हैं, क्योंकि जहां तक हैं, वहां तक कोई तल पर फ़ासला कायम बना रहता है
ध्यान रहें जहां भी अर्थ होता है, वहां सीमा आ जातीै अर्थ ही होता है सीमा। A causa di ciò che è successo, di ciò che è successo. सभी शब्दों के विपरीत शब्द होते हैं। Qual è il tuo problema? जीवन है तो tiva Vuoi sapere cosa fare? अगर अर्थ हो तो विपरीत शब्द निर्मित हो जायेगा। लेकिन ओम में कोई अर्थ ही नहीं। यही उसकी महत्ता है।
लोग कहते है, मेरी वाणी मेरे मन में स्थिर हो जाये। कभी आपने सोचा, आप बहुत सी बातें कहते, जो आप कहना ही नहीं च चाहते थे वह बड़ी अजीब बात है। जो आपने कभी नहीं कहनी चाही थीं, वे भी आप कहते, आप खुद ही ही कहते हैं हैं और पीछे यह भी कहते सुने जाते हैं कि इन इन्हे कहना नहीं चाहता था। यह वाणी आपकी है! आप बोलते हैं वाणी से कि कुछ और बोलता है
सौ में से निन्यानवे मौकों पर दूसरे लोग बुलव बुलवा लेते हैं, आप बोलते नहीं नहीं पत्नी भली भांति जानती है कि वह घर पति से कौन सा प्रश्न पूछे तो कौन सा उत्तर निकलेगा। पति भी भली भांति जानता है कि क क्या कहे कि पत्नी क्या बोलेगी हमारे मन- मन का अर्थ है, हमारे मनन की, चिंतन की क्षमता का भी हमारी वाणी से कोई संबंध है, वाणी हमारी यांतरिक हो गई है A causa di ciò che è successo, di ciò che è successo. एक शब्द भी शायद ही आपने बोला हो जो मन से एक हो। कई बार तो ऐसा ही होता है कि मन ठीक विपरीत चलता होता है और वाणी में ठीक विपरीत होता है किसी से आप कह रहे होते हैं कि मुझे प प्रेम है आपसे, और भीतर उसी आदमी की जेब काटने का विचार कर रहे है या धोखा देने का। ।riguto जेब काटना मैंने कहा कि बहुत अतिशयोक्ति न हो जाये मन में घृणा चल रही होती, क्रोध चल रहा होता है और आप प्रेम की बात भी बताते रहते हैं। आप मित्रता की बातें भी चलाते रहते हैं और भीतर शत्रुता चलती रहती है है तो ऐसा आदमी अपने को भी कभी न जान पायेगा। ऐसा आदमी दूसरों को धोखा नहीं दे रहा है, अंततः को को धोखा दे रहा है
मन की वाणी में ठहरने का अर्थ यह है कि जब मैं बोलूं, तभी मेरे भीतर मन हो! और मैं जब न बोलूं तो मन भी न रह जाये। ठीक भी यही है। जब आप चलते हैं तभी आपके पास पैर होते हैं। Per quanto riguarda, नहीं जब नहीं चलते हैं तब भी पैर होते है लेकिन उनको पैर कहना सिर्फ कामचलाऊ है। पैर तो वही है जो चलता है। आंख तो वही है जो देखती है। कान तो वही है जो सुनता है। तो जब हम कहते हैं अंधी आंख, तो हम बड़ा गलत शब्द कहते, क्योंकि अंधी आंख क क कोई मतलब ही नहीं होता। अंधे का मतलब होता है, आंख नहीं। आंख का मतलब होता है आंख, अंधे का मतलब होता है आंहीी। लेकिन जब आप आंख बंद किये होते हैं तब भी आप क का उपयोग अगर न कर रहे हो तो आप बिलकुल अंधे होते है है
आंख का जब उपयोग होता है तभी आंख आंख है। A causa di ciò che è successo, ho avuto la possibilità di farlo. कहना नहीं चाहिये। पंखा हमें उसे तभी कहना चाहिये जब वह हवा करता हो। नहीं तो पंखा नहीं कहना चाहिये। तब वह सिर्फ बीज रूप में पंखा है। उसका मतलब यह है पंखा कहने का कि हम चाहे तो उसे हवा कर सकते हैं हैं बस इतना ही। अगर आप एक किताब से हवा करने लगे कित किताब पंखा हो जाती हैं हैं जब वाणी के लिये जरूरत हो बोलने, तभी मन को होना चाहिये, बाकी समय नहीं होना चाहिये। पर हम तो ऐसे हैं कि कुर्सी पर बैठे रहते हैं तो टांगें हिलाते रहते हैं हैं कोई पूछे कि क्या कर रहे हैं आप, तो रूक जाते हैं। क्या करते थे आप? बैठे-बैठे चलने कि क कर रहे थे या टांगे आपकी पागल हो गई हैं? ठीक ऐसे ही हम बोलते रहते हैं। ठीक ऐसे ही, बाहर कोई जरूरत नहीं रहती है वाणी की तो वाणी भीतर चलती रहती है है बाहर नहीं बोलते तो भीतर बोलते हैं। दूसरे से नहीं बोलते, तो अपने से बोलते रहते हैं।
धैर्य का अर्थ है, अनंत प्रतीक्षा की क्षमता आज ही मिल जाये सत्य, अभी मिल जाये सत्य, ऐसी मन कि वासना हो तो कभी नहीं मिलता और मैं प्रतीक्षा करूंगा, कभी भी मिल जाये सत्य, मैं मार्ग देखता रहूंगा, राह देखता रहूंगा, कभी भी अनंत-अनंत जन्मों में, कभी भी उसकी कृप कृपा हो मिल जाये, तो अभी और यहीं भी मिल सकत सकत है है जितना बड़ा धैर्य, उतनी ही जल्दी होती घटन घटना, जितना छोटा धैर्य, उतनी ही देर लग जाती है
प्रभु की तरफ़ पहुंचने के लिये प्यास तो गहरी चाहिये, लेकिन अधैर्य नहीं नहीं अभीसिप्ता तो पूर्ण चाहिये, लेकिन जल्दबाजी नहींी जितनी बड़ी चीज को हम खोजने निकले हों, उतना ही मार्ग देखने की तैयारी चाहिये और कभी भी घटे घटना, जल्दी ही, क्योंकि जो मिलत मिलत है उसे समय से नहीं तौला जा सकता सकता सकत।। अनंत-अनंत जन्मों के बाद भी प्रभु का मिलन हो, तो बहुत जल्दी हो हो गय। कभी भी देर नहीं है। क्योंकि जो मिलता है, अगर उस पर ध all'avore जो मंजिल मिलती है, उस पर पहुंचने के लिये कितना भी भटकाव ना कुछ हैं हैं
सन्यासी के कंधे पर जो झोली टंगी होती, उसका नाम है कन्धा। वस्तुतः सन्यासी की जो झोली है, वह तो धैर्य है। और धीरज की इस गुदड़ी में बड़े हीरे आ जाते हैं। लेकिन धैर्य तो हमारे भीतर जरा सा भी नहीं होता और क्षुद्र के लिये तो हम प all'avore एक व्यक्ति साधारण सी शिक्षा पाने विश्वविद्यालय की यात्र पर निकलता है, तो कोई सोलह-सत्रह पता कुछ भी नहीं, कचरा लेकर घर लौट आता है।
लेकिन अगर कोई व्यक्ति ध all'avore a क्षुद्र के लिये हम कितनी प्रतीक्षा करने को तैयार हैं, विराट कि लिये कोई प्रतीक्षा नहीं! इससे एक ही बात पता चलता है कि शायद हमें ख्याल ही नहीं हैं कि विराट क्या है और शायद हमारी चाह इतनी कम हम प्रतीक्षा करने को तैयार नहीं नहीं क्षुद्र की हमारी च Schose एक आदमी थोड़े से रूपए कमाने कि जिंदगी द दांव पर लगा सकता है और परतीक्षा करता रहता है कि नहीं तो कल, कल नहीं तो परसों। चाह गहरी है धन को पाने की, इसलिये प्रतीक्षा कर तेे परमात्मा के लिये वह सोचता है कि एकाध बैठक में ही उपलब्ध हो जाये और वह बैठक में भी वह तब निकलता है उसके पास अतिरिक समय समय, जो धन की की खोज से बच बच बच त।। विदा का दिन हो, अवकाश का समय हो, और फिर वह चाहता है, बस जल्दी निपट जाये। वह जल्दी निपट जाने की बात ही बत बताती है कि कोई कोई चाह नहीं है कि हम पूरा जीवन दांव पर लगा दें दें
और ध्यान रहे, विराट तब उपलब उपलब नही होत होता, जब तक कोई अपन अपन सब कुछ समर्पित करने को तैयार नहीं होता और सब कुछ समर्पित करना भी कोई सौद नहीं है है है नहीं तो कोई कहे कि मैंने सब कुछ समर्पित कर दिया, अभी तक नहीं मिल मिला। अगर इतना भी सौदा मन में है कि मैंने समर्पित कर दिया तो मुझे प्रभु, परमात्मा मिलना चाहिये, तो भी नहीं मिल सकेगा। Vuoi sapere cosa vuoi fare? क्या छोड़ेगे आप? Vuoi sapere cosa fare? आपका कुछ है ही नहीं, जिसे आप छोड़ दें। सभी कुछ उसी का है। उसी का उसी को देकर सौदा करेंगइ है क्या हमारे पास? शरीर हमारा है, जमीन हमारी है, क्या है हमारे पास? और हो सकता है, धन भी हमारा हो, जमीन हम हमारी हो, लेकिन एक ब बात पक्की है कि भीतर गहरे में जो हमारे भीतर छिपा है, वह हमारा बिलकुल नहीं है है है क्योंकि न तो हमने उसे बनाया है, न हमने उसे खोजा है, न हमने उसे प पाया है है वह है।
तो धन तो हो भी सकता है आपका, लेकिन आप अपने बिलकुल नहीं हैं। क्योंकि कह सकते हैं, धन मैंने कमाया। लेकिन यह जो भीतर दीया जल रहा है चेतना का, वह प परमात्मा का ही दिया हुआ है आपका इसमें कुछ भी नहीं है। इसलिये देंगे क्या? मारपा, तिब्बत का एक बहुत अद्भुत ऋषि जब गु गुरू के पास पहुंचा, तो उसके गुरू ने कहा, तू सब दान कर दे दे मारपा ने कहा, लेकिन मेरा अपना कुछ है कहां? Per quanto riguarda, तो तुम कम से कम अपने को समर्पित कर दोो तो मारपा ने कहा, मैं! मैं तो उसका ही हूं। समर्पण करने के, उसकी चीज उसी को लौटाकर, कौन सा गवऋर! A causa di ciò che è successo, di ciò che è successo, di ciò che è successo क्योंकि जो मैं तुझे दे सकता था, वह तो तुझे मिल गऀहहो वह तेरे पास है ही। मारपा ने कहा, मैं सिर्फ कोई जानने वाला पहचान ले, इसलिये आपके चरणों में आया हूं अनजान हूं जो मिल गया है, उसे भी पहचान नहीं पाता, क्योंकि पहले वह कभी मिला नहीं था। आपने कह दिया, मुहर लगा दी।
असल में गुरू की अंतिम जरूरत साधना के शुरू के चरणों में नही नही, अंतिम जरूरत तो उस दिन पड़ती जिस दिन घटना घटती है है है है है है है है है घटती घटती घटती घटती घटती घटती घटती घटती घटती घटती घटती घटती घटती घटती घटती घटती उस दिन को चाहिये, जो कह दे कि हां, हो गया। क्योंकि अपरिचित, अनजान, पहले तो ज जाना हुआ नही है, उस लोक में प्रवेश हो जाता है पहचान नहीं होती कि जो हो गया है, वह क्या है। तो गुरू की जरूरत पड़ती है प्राथमिक चरणों में, वह बहुत साधारण है है अंतिम क्षण में गुरू की जरूरत बहुत असाधारण है कि वह कह दे कि हां, हो गई वह बात जिसकी तलाश थी थी A causa di ciò che è successo, di ciò che è successo.
धैर्य का अर्थ है, हमारे पास न दांव पर लगाने को को है है, न परमात्मा को प्रत प देने देने के लिये कुछ है है है न न सौदा करने के लिये लिये लिये कुछ प।।।। के के लिये लिये है है है है न न सौदा करने के के के लिये लिये प प।।। के के लिये लिये है है है है न न सौदens और मांग हमारी है कि परमात्मा मिले। प्रतीक्षा तो करनी पडे़गी। धैर्य तो रखना पडे़गा और अनंत रखना पड़ेगा। ऐसा नहीं कि चूक जाये कि दो-चार दिन बाद फिर हम पूंछ२ॲ तो उसमें वैसा ही नुकसान होता है, जैसे बच बच्चे कभी आम की गुठली को बो देते हैं जमीन में और दिन में चार दफ़े उसे उखाड़कर देख लेते हैं कि अभी तक अंकू अंकूर नही निकला? अधैर्य, अंकुर कभी नहीं निकलेगा। यह चार दपफ़े उखाड़ने में अंकुर कभी नहीं निकलेगाााह अंकुर निकलने का मौका भी तो नहीं प पा रहा है, अवसर भी नहीं मिल पा रहा है है
जमीन में बीज को बोकर भूल जाना चाहिये, प्रतीक्षा करनी चाहिये। हां, पानी डालें जरूर, पर अब को उखाड़-उखाड़कर मत देखते रहें अभी तक बीज फूटा, नहीं फूटा! नहीं तो फिर कभी नहीं फूटेगा, बीज खराब हो जायेगा। तो ध्यान करके हर बार न पूछें कि अभी पहुंचे, कि नहीं पहुंचे पहुंचे बोते जायें, सींचते जायें। A causa di ciò che è successo, di ciò che è successo. जल्दी ना करें, बार-बार उखाड़कर मत देखें।
एक सन्यासी था, अपने गुरू के आश्रम में बारह वर्षों तक सेव सेव में था। बारह वर्षों तक उसने यह भी न पूछा कि मैं क्या करूंंं बारह वर्ष बाद एक दिन गुरू ने कहा, किसलिये आया है यहां, कुछ पूछता भी नहीं तो सन्यासी ने कहा, प all'avore
यह सन्यासी का लक्षण है। सांझ में आकर पैर दबा जाता है, सुबह कमरा साफ़ कर देता है, चुपचाप बैठ जाता है, दिनभर बैठा रहता है है रात जब गुरू कह देता है कि अब में ज जाता हूं, तो चला जाता है है बारह वर्ष बाद गुरू पूछते, बहुत दिन हो गये तुझे आये हुये, कुछ पुछता नहीं है! तो सन्यासी कहता है, जब मेरी पात्रता होगी, अब आप समझेंगे कि क क आ गया कुछ कहने का, तो आप कह कह देंगे मैं राह देखता हूं। और सन्यासी ने कहा कि जो मैं पूछता उससे मुझे जो मिलता, वह इस राह देखने में अनायास ही मिल गय। अब मैं बिल्कुल शांत हो गया हूं। A causa di ciò che è successo, बैठकर बस प्रतीक्षा कै तो मैं एकदम शांत हो गया हूं। भीतर कोई विचार नहीं रहे हैं।
उदासीनता अचुनाव है। उदासीनता का अर्थ है कि द्वंद्व में कोई भी चुनाव नहीं करते। मन का एक हिस्सा कहता है, क्रोध करों, मन का दूसरा हिस्सा कहता है, क्रोध जहर है न हम मन के पहले हिस्से की सुनते, न हम दूसरे हिस्से की सुनते हैं हैं हम दूर खड़े होकर दोनों हिस्सों को देखते हैं। न हम यह किनारा चुनते हैं, न वह किनारा चुनते हैं। हम कुछ चुनते ही नहीं। अचुनाव उदासीनता है। और प्रतिपल मन द all'avore मन एक से जीत नहीं सकता। मन दो होकर ही जीता है।
आपने मन में कभी कोई ऐसी लहर न पाई होगी विप विपरीत लहर मन तत्काल पैदा नहीं कर देता। जहां आकर्षण होता है, तत्काल विकर्षण वहीं पैदा हो मन का एक हिस्सा कहता है, बायें चलो, दूसरा तत्काल कहता है, दायें चलो चलो मन सदा ही द्वंद्व खडा करता है। मन का स्वभाव द all'avore वह प्रतीक्षा करेगा आपकी कि ठहरों, थोड़े दिन ऊब ज जाओंगे उस चुनाव से, फिर मुझे चुन लोगे यही तो हो रहा है पूरे वक्त।
मन द्वंद्व में जीता है। आप ऐसी कोई चीज चाह नहीं, जिसके प्रति एक दिन चाह पैदा न हो हो आप ऐसा कोई प्रेम नहीं कर सकते, जिसमें आपको किसी दिन घृणा न जन्म जाये। आप ऐसा कोई मित्र नहीं बना सकते, जो किसी शत शत्रु न हो ज जाये। जो भी चाह जागेगा, उसका भ all'avore इतनी मेहनत करके जो हम पाते हैं, आखिर में हम पाते हैं, अपनी ही फांसी बना ली ली हम जीते हैं ऐसे ही । सब जड़ हो जाता है, सब बंध ज जाता है, एक लीक हो जाती है, उस पर हम चलते हैं हैं बाहर की जिंदगी में ठीक भी है। काम करना मुश्किल होगा। लेकिन भीतर की जिंदगी में बहुत खतरनाक है, क्योंकि विचार कम होते चले ज जाते है इसीलिये बच्चे जितने विचारशील होते, बूढ़े विच विचारशील नहीं होते, यद्यपि बच्चों के पास विचार कम होते हैं और बूढ़ों के पास बहुत होते हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं होते होते होते होते होते होते होते होते होते होते होते होते होते होते
इसलिये फर्क को ख्याल में ले लें। बूढ़े के पास विचार तो बहुत होते, विचारशीलता कम होती हैं हैं क्योंकि सब विचार उसकी आदत बन गये होते हैं, अब विच विचार करना नहीं पड़ता। विचार आ जाते हैं, वे नियमित हो गये हैं। बच्चे के पास विचार तो बहुत कम होते, इसलिये विचारशीलता बहुत होती है है फिर धीरे-धीरे विचारों की पर्तें जमती जायेगी। वह भी कल बूढ़ा हो जायेगा, तब विचार करने की जरूरत न पड़ेगी पड़ेगी विचार रहेंगे उसके पास। जब जिस विचार की जरूरत होगी, वह अपनी स्मृति के खाने से निकालकर और सामने रख देगा।ध्यान रहे, बूढ़े प पास अनुभव होता है, विचार होते हैं लेकिन लेकिन विच विच conserta क्योंकि बहुत पत्ते झील पर जमा हो जाते है। बच्चे खाली झील की तरह है जिस पर पत्ते अभी नहीं ंै
अपने विचार के प्रति भी तटस्थता का नाम विचारशीलहहाा दूसरे के प्रति तो हम तटस्थ होते ही हैं। अपने विचार को भी पुनर्विचार करने की क्षमता का नाम विचारणा है। Per quanto riguarda, आदतवश नहीं, होशपूर्वक। क्योंकि कल का कोई विचार आज काम ंनहीं पड़ सकता तैीं सब बदल गया होता है, विचार स्थिर हो जाता है, जहड़ तऋ ााा वह पत्थर की तरह भीतर बैठ जाता है। और जिंदगी तो हर तरह से, वह ज जाती है, और हम कंकड़-पतebथर भीतर जमा करते चले जाते हैं
विचार भी पत्थरों की तरह भीतर जमा होते चले जाते हे हे जिंदगी बहुत तरल है, विचार बहुत ठोस हैं। फिर आखिर में हम उन्हीं कंकड़-पत्थरों को गिनकर जिंदगी का हिसाब रखते हैं हैं और जैसा राजकुमार के लड़के ने पत पत्थर डाल दिये, विचार सब आपके आपके होते, आपके तो थोडे़ ही होते हैं, बाकी तो दूसरे आप में डाल देते हैं।।।।।। हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं tivamente आखिर में आप के घड़े मे जो पत्थर निकलते, वे सब आपके भी नहीं होते होते हैं हैं सब डाल रहे है, पत्नी पति के घड़े पति पत पत्नी के घड़े में में में वे कंकड़-पत्थर जमा हो जायेंगे। उनका नाम विचार नहीं है। विचारों के संग्रह का ना होना विचार नहीं है।
विचार एक शक्ति है-सोचने की, देखने की, निष्पक्ष होने की, अपने ही विचार के प्रति तटस्थ होने की वह जो कल का विचार था, वह पराया हो गया, उसके प all'avore सोचकर चलने का अर्थ जड़ता नहीं है।
Param Pujya Sadgurudev
Signor Kailash Shrimali
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