क्रिया योग को लाहिड़ी महाशय ने समझ समझाने का प all'avore a इसको समझाने के लिये अपने-आप को समुद्रवत् बनाना ही पड़ता है है मैंने यह समझाया, कि व्यक्ति किस प्रकार से अपने में में धारणा को स्थान दे और धारणा के बाद प प्रक करण करण करिया करते हुये वह ध ध परवेश आप एक दिन गुंजरण करेंगे, तभी आपको एहसास होगा, कि इससे मानसिक तृप्ति भी अनुभव होती है है एक ऐसा एहसास होता है, कि कुछ जो हमारे जीवन में स all'avore
इसलिये कि उसे सुख मिले और उस सुख और आनन्द की प all'avore a
संतान पैदा करना अपने आप में सुख कµ वह कोई आसान काम नहीं है, बहुत सी परेशानियां, कष्ट है इसमें— और इसके बाद भी संतान से सुख मिले, कोई जरूरी नहीं है और यदि सुख मिल भी जाय, तो भी वह सुख अपने-आप में आनन्द नहीं दे सकता।
सुख दूसरी चीज है और आनन्द दूसरी चीज है। पंखा चल रहा है, यह मुझे सुख तो दे सकता है, मगर आनन्द नहीं दे दे सकता। यदि कोई मानसिक तनाव में, तो बेशक ए-सी- लगा हुआ हो, नौकर चाकर हों- सब कुछ बेकार है यदि व्यक्ति बीमार है, अशक्त है, हार्ट का मरीज है, तो उसको धन और मकान कहाँ से सुख? ये सब उसे आनन्द नहीं दे सकते। आनन्द की जो प्रवृत्ति है, जीवन का जो सच all'avore a
आप आसानी से गुंजरण क all'avore ध्यान जहां अपने आपको अपना ज्ञान हे रहे, हम थॉटलैस माइण्ड बना सकें, अपने आप ह रह सके और पूरी तरह से अपने आप में ही डूब डूब जायें। लेकिन हमने गुंजरण करना छोड़ दिया। हमारे शास्त्र, हमारे गुरूओं, राम, कृष्ण और पैगम्बर सभी ने एक ही बात कही है कि आप जितने ही अपने-आप से बात करने की कला सीख लेंगे, अपने-आप में डूब जायेंगे, उतना ही जीवन में आनन्द प्राप्त कर सकेंगे।
मैं tiva सुख के व्यूह में फंस कर तो आपको उन तृष्णाओं की ओर से भागना ही पड़ेगा। ऐसे जीवन का तो कोई अन्त है ही, क्योंकि जो सुख दिखाई दे रहा है वह सुख नहीं है है यदि यही सब सुख होता तो जीवन में इतनी विसंगतियां, इतनी बाधायें, परेशानियां नहीं आती आती
जीवन में आनन्द की प्राप्ति का पहला पड़ाव ध all'avo आनन्द तो बाद में है पहले हम अपने जीवन सत सत्यमय बना सकें, उसके बाद ही अपने चित् तक पहुँच सकते हैं, उस चित नियंत नियंत्रित कर सकते हैं और तभी आनन आनन की प प प प प प सकती है।। यदि हम देखें, तो अपने जीवन-आनन्द की प्राप्ति के लिये भटक हे रहे हैं, इसके लिये प प्रयत्न नहीं कर रहे हैं। आप प्रयत्न कर रहे हैं- सुख की प्राप्ति के लिये,— और सुख अपने आप में संतोष, आनन्द, धैर्य, मधुरता, प्रेम नहीं दे सकता, क्योंकि हमने उन कलाओं को भुला दिया है, उस ध्यान की प्रक्रिया को भुला दिया है।
ध्यान के बाद तीसरी स्टेज होती है, 'समाधि'। समाधि के बारे में या amici
चित्तं प्रदेव वदतां परिपूर्ण रूपं चित्तं कृपान्त परिमे वहितं सदैवं सदैवं सदैवं सदैवं सदैवं सदैवं वहितं
आत्मं परां परमतां परमेव सिन्धु, सिद्धाश्रमोद वरितं प्रथमे समाधि ।।
समाधि वह होती है, जब हम स्वयं को सुखों बिल बिल अलग क करके, परम आनन्द में लीन हो, क्योंकि सुख आप में भोगवादी प्रवृत की परिचायक है सुख से भोग पैदा होता है, भोग से रोग पैदा होत है और रोग से मृत्यु पैदा होती— और वह रास्ता अपने आप मृत मृत्यु की ओर जाने का है है मृत्यु को परे हटाकर हम प्रकृति से बातचीत करना से पुष्प को तोड़ कर कोट की जेब में डालने की जरूरत नहीं है, इसकी अपेक्षा उस पुष्प से बात करने की कला सीखें सीखें प्रकृति के बीच में यदि बैठ जायें- तो घंटे घंटे अपने आपको भुला सकें और उसके साथ ही कोशिश करें उस चित चित पकड़ने की, जो गुंजरण क्रिया के माध से जागरत होत।।
जब वह हृदय कमल अपने आप में प्रस्फुटित होने लग जाता है, तब व वर्षा होने लगती है नाभि में अमृत कुंड है, जिसके माध्यम से पूरा जीवन संचालित होता है है चित् ज्यों ही अपने आप में जाग्रत अवस्था में पहुँचता है, आनन्ददायक अमृत की बूंदें विस्तृत होकर पूरे शरीर को और चित् को परितृप्त कर देती हैं और ज्यों-ज्यों हम ध्यान में अन्दर जाते रहते हैं, त्यों-त्यों हम चित् के निकट पहुँचते जाते हैं ।
चित् के निकट पहुँचने पर आप उस समाधि में लीन होंगे, जहां, आपको तीन अवस्थाये प्राप्त होंगी पहली अवस्था में हम गुंजरण क्रिया करें, शंख और सोऽहं मंत all'avore बत्तीस मिनट की गुंजरण क्रिया पूर्ण कहलाती है। उच्चकोटि का योगी बत्तीस मिनट तक सांस को नहीं टूटने देता। प्रारम्भ में व्यक्ति एक य या दो मिनट गुंजरण क्रिया कर सकता है पर बाद में यह धी धीरे-धीरे बढ़ती रहेगी। इस क्रिया को करने के लिये किसी पाठशाला में बैठने की जरूरत नहीं है, मात्र 'सोऽहं' के गुंजरण के सहारे इस सारे शरीर को चारज किया जा सकत है है।।
इस क्रिया के माध्यम से योगी शून्य में आसन लगा लेते हैं, जमीन के ऊपर उठकर साधना कर लेते हैं हैं जब भर्तृहरि ने सोऽहं साधना करनी चाही तो गुरू ने कहा- ऐसी जगह साधना करना, जो अपने आप अत अत्यन पवित्र स्थ थ हो औ उसने उसने पूiché पूरी पृथरी मिल uire पूरी पृथ्वी पर हजारों बार आबादियां बनी और नी्ट हननी और नी्य जमीन का कोई भी हिस्सा ऐसा नहीं है, जिस पर थूक, लार, रक्त नहीं गिरा हो, कौन सा स्थान पवित all'avore
भर्तृहरि ने कहा- मुझे तो पृथ्वी पर ऐसा कोई भी स्थान दिखाई नहीं दे रहा है, जहां पर किसी प्रकार की असंगति नहीं ही रही हो।।।।। हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो tivamente गुरू ने बताया- केवल एक ही स्थान है जमीन ऊप ऊपर उठकर ही यह साधना सम्पन्न हो सकती है गुंजरण क्रिया के माध्यम से शरीर के अन all'avore a
अभ्यास तो आपके हाथ में है, क्योंकि यह तो क्रॿऋया गया A me piace, a me piace, a me, a
फिर मैं आपके प्रति जिम्मेदार हूँ, मगर आप करेंगे ही औ और खड़े होकर आलोचना कर देंगे तो फिर आलोचना करना कोई बड़ी बह बहादुरी और विशेषतर विशेषता की ब ब नहीं नहीं नहीं है है है है है ब ब।। बह ।री औरी और विशेषता की ब ब ब नहीं नहीं नहीं है है है है है ब rusta हमने इसे एक फैशन सा बना रखा है।
A causa di ciò che è stato fatto, ho avuto la possibilità di farlo. उस गुंजरण क्रिया को इतनी तेजी के साथ करें, जिससे अन all'avore a कर दिया जाय, हीट निकलने का रास्ता बना दिया जाय, तो क्या वायुयान ऊपर उठ सकता है?
आपने अपने जीवन में किसी मरते हुये आदमी को देखा नहीं, वह भी अपने आप में एक एक अनुभव है जब आदमी मरता है, तो उसके अन्दर जो प्राण है, वे दस में से किसी भी द्वार से बाहर निकल जाते हैं औ उसकी मृत मृत हो हो जाती है— है दस दस गुद एक एक मुंह नथुने नथुने नथुने न न न न न न न न न न न न न न न न न न न न न न न न न न न न न न न न न न न न न न न न न न न न न न न न न न न न न न न न न न न न न न न न न न न न न न न न न न tiva एक लिंग, एक नाभि और दो कान। इन दसों द्वारों से अंदर की विद्युत बाहर निकलतै यह विद्युत का प्रवाह है, जिसके द्वारा मैं तुम्हें देख रहा हूँ आंखो के माध nello अन्दर से बाहर निकलने की क्रिया विद्युत का विपरीतीकरण है है
मगर मैंने कहा- उस चार्ज को एकत्र करें और विद्युत बाहर नहीं निकले निकले निकले निकले निकले निकले निकले निकले निकले निकले साधारण रूप से तो बाहर निकलेगी, क्योंकि भगवान ने ढक्कन तो दिये नहीं नहीं इसलिये जब सामान्य गुंजरण का आठ मिनट का अभ्यास हो जाये तो उसके बाद उन दसों द्वारों को बन्द करके गुंजरण क्रिया का अभ्यास किया जाना चाहिये- यह इसकी दूसरी अवस्था है और जब दसों द्वार बन्द करके गुंजरण करेंगे, तो फिर वह हीट बाहर निकल नहीं सकती , वह अन्दर ही रहेगी। उस गुंजरण के माध्यम से उत्पन्न हुई विद्युत ऊर्जा को अन्दर रोकने की क्रिया अपने आप में चैतन्य क्रिया कहलाती है, यह सम समाधि अवस्था का पारम Quali
चैतन्य क्रिया कैसे हो जाती?
चैतन्य का मतलब है- अन्दर के चित्त को, अन all'avore कुण्डलिनी जागरण के लिये यह आवश्यक नहीं, कि एक-एक चक्र को क्रम से जाग्रत करें। एक साथ ही पूरे चक्र जाग्रत किये जा सकते हैं। कुण्डलिनी जागरण का अर्थ है- पहले आप भस्त्रिका करें, मूलाधार करें, फिर आप स्वाधिष्ठान चक्र को जाग्रत करें, इस प्रकार बारी-बारी से चक्रों को जाग्रत करें, पर इसमें कई बार गड़बड़ भी हो जाती है। कुण्डलिनी जागरण की क all'avore मगर इस क्रिया के माध्यम से एक-एक चक्र नहीं, अन्दर के सारे चक्र एक साथ जाग्रत हो जाते हैं, जिसको 'पूर्ण कुण्डलिनी' जागरण कहते हैं या सहस्त्रार जागरण कहा जाता है और यह इस चैतन्य क्रिया के माध्यम से ही संभव है।
Vuoi sapere cosa fare?
मैं प्रैक्टिकल विधि समझा रहा हूं। इन दसों द्वारों को बंद करने के लिए बायें पैर की एड़ी को गुदा पर रख दें उसके ऊपर बैठ जायें और दाहिने पैर को लिंग स्थंर पर पर यह सीधी क्रिया है और इस क्रिया में व all'avore हाथ के दोनों अंगूठों से दोनों कान के परदे बं० कर कर दोनों तर्जनी उंगलियों के माध्यम से दोनों आंखों बंद क कर दें। मध्यमा के माध्यम से दोनों और अनामिका व कनिष्ठिका के माध्यम से होठों बंद क कर दें अब उसके बाद गुंजरण क्रिया प्रारम्भ करें। यह एक मिनट का अभ्यास करके देखें, पांच मिनट के अभ्यास के बाद आसन के नीचे स स्पेस बनेगा, यह गारण्टी की ब ब है, आप क करके देखें देखें आप करेंगे तो आपका शरीर ऊपर उठने की ओर अग्रसर होतप
दसों द्वारों को बंद करके आठ के गुंजरण की क्रिया द्वारा प all'avore इस अवस्था में पूर्ण समाधि लग जाती है, उसमें शरीर को पूर्ण शून all'avore समाधि क्रिया में आवश्यक है, अन्दर के सारे चक्र जाग्रत हों हों हम अन्दर के सारे चक all'avore a
अब आप प्रश्न करेंगे- अगर यह समाधि है, तो फिर हमा रा शरीर ऊपर उठता ही रहेगा?
ऐसा नहीं है, क्योंकि साधक जमीन से से अधिक चार फिट ऊपर उठने से शून शून्य-आसन लगा सकता है और जहाँ आदमी चार फीट ऊपर उठ सकत है है है है है वह वह वह वह फीट फीट सब सब सब है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है tiva की तीव्रता पर निर्भर है और फिर जितना ही गुंजरण कम करेंगे, उतना ही वापिस नीचे आ जायेंगे।
अब आप कहेंगे कि क्या समाधि में पूरा ज्ञान रहता है क्या आभास रहता है, कि अब गुंजरण कम करूं या ज्यादा करूं?
Samadhi significa- अन्दर की सारी चेतना जाग्रत रहना। बाहर से आप कट आफ होते है और अन्दर एक प all'avore a भगवान राम और श all'avore वह प्रकाश की रेखा अगर उन लोगों मुख पर बन सकती है, तो आप लोगों के भी बन सकती है, क्योंकि आप स्वयं ब्रह हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं अन्दर का जो आनन्द है, वह शरीर के ऊपर से जब बाहर बिखरने लग जाता है, तो सामने वाल subito इतना तेजस्वी चेहरा, इतनी दिप दिप करती आंखें, क्या चेहरा है, क्या प्रकाश है, जरूर कोई बहुत बड़ा आदमी है, क्या आनन्द का प्रस है!
समाधि में अन्दर तो सारा चैतन्य रहता ही है, यही नहीं उस चैतन्य अवस all'avore भूमिगत मेंढक ऑक्सीजन लेते ही नहीं। मेढ़क को यदि आप छः महीने तक बंद कर दें, तो बिन बिना ऑक्सीजन के भी जिंदा रह लेगा। मनुष्य को ऑक्सीजन बार-बार क्यों लेनी पड़ती है? क्योंकि बार-ार हाथ हिलाता है, पांव हिलाता है, देखता है, चलता है— और उसकी शक्ति समाप्त होती जाती है, इसीलिये आपको ब बार-बाola जब शक्ति खत्म होगी ही नहीं, तो अन्दर जो ऑक्सीजन है, वह आपको जीवन्त बनाये रखने के लिये पर्याप्त होगी।
इसीलिये समाधि दो दिन की भी ली जा सकती है। और समाधि के आगे की क्रिया को अमृत्यु कहा गया है। समाधि तो कितने ही वर्षों की हो है और जितने वर्षों की आपकी समाधि है, उससे गुन गुना ज्यादा आपकी आयु हो सकती है शरीर को चैतन्य करने के, सारे चक्रों को जाग्रत करने के औ और अमृत तत्व को अपनी नाभि में एकत्र करने के लिये यही क क्रिय िय है है जिसको जिसको जिसको जिसको ियrigere कह गयrig क क के के लिये यही क क क Quali
इस क्रिया के माध्यम से अन्दर गुंजरण को निरन्तर प्रवाहित किया जा सकता है, जिसकी वजह से व्यक्ति शून्य समाधि लगा पाता है, जमीन से ऊपर उठकर समाधिस्थ हो सकता है और ऐसा होने पर उसके अन्दर, एक प्रकाश का उदय होगा, चेहरे से एक मस्ती झलकेगी। आपने भगवान कृष्ण की आंखों में कभी एक उदासी या खिन्नता नहीं देखी होगी होगी जब भी आँखों में देखते हैं, एक मस्ती दिखाई देती है, यह अन्दर का प्रभाव है है वही प्रभाव जीवन में प all'avore यह तो सीधी सादी सी एक्टिविटी है, जिसमें कहीं मंत मंत्र जप नहीं करना है
क्रिया तो आप ही करेंगे, यदि आपको में ऐसा आनन्द प all'avore a गुरू तो आपको केवल रास्ता दिखा सकते है। घोड़े को आप लगाम पकड़ करके तालाब के किनारे ले जµi आप गुरू की बात सुनकर हूं-हूं करते रहें और घर चले जायें, फिर चार -छः महीने बाद में, कि गुरूजी बहुत दुःखी हूँ हूँ हूँ हूँ हूँ हूँ दुःखी दुःखी दुःखी दुःखी दुःखी दुःखी दुःखी दुःखी दुःखी दुःखी दुःखी दुःखी दुःखी दुःखी दुःखी दुःखी दुःखी दुःखी दुःखी
Sì! गुरू जी ने तो चार घंटे गला फाड़-फाड़ कर क all'avore a अरे गुरू जी! वह तो सब ठीक है, मगर अब व्यापार चलाने के लिये मैं क्या करूं?
ये तो आपकी अधोगामी प्रवृत्तियां हैं, जिनका फल आप हे रहे है, इसमें गुरू तो कुछ कर नहीं सकते गुरू तो आपको ऊर्ध्वगामी प all'avore
यह सीधे सादे शब्दों में क्रिया योग है, यही अपने आप में क्रिया योग की पूर्णता, सिद्धाश्रम प्राप्ति का चरण है, इसी को सिद्धाश्रम साधना कहते हैं और यही जीवन की पूर्णता है। यदि आपने लाहिड़ी महाशय का ग all'avore a कितनी परेशानियाँ हुईं, किस-किस प्रकार से मेरी परीकogo मेरे गुरू ने मुझे कितना ठोक बजा कर देखा, तब उन्होंने मुझे दीक्षा के योग्य पात्र समझा और इसी परिश्रम की वजह से, श्यामाचरण का बेटे रहे या नहीं रहे, मगर श्यामाचरण का नाम मुझ को आज भी याद है। मां आनन्दमयी का नाम मुझको और आपको ज्ञात है। उत्तम कोटि के व्यक्ति वे होते, जो अपने नाम से दुनियां में छा जाते है है
आपके सामने कई रास्ते हैं। मान लीजिये की आप चालीस वर्ष की अवस्था में पहगच।।। चालीस वर्ष की अवस्था के बाद आप की अधोगµi लूनी गांव में एक व्यक्ति थे, उनकी उन्नीस संताने आज भी जिंदा हैं, चौबीस पैदा हुये, उनमें पांच मर गये और उन्नीस जिंदा हैं, आप तो उस स स पर भी नहीं पहुँच पहुँच सकते सकते सकते हैं सकते सकते पहुँच पहुँच पहुँच नहीं नहीं नहीं पहुँच पहुँच पहुँच पहुँच सकते सकते सकते सकते पहुँच पहुँच पहुँच पहुँच पहुँच पहुँच पहुँच पहुँच पहुँच पहुँच पहुँच पहुँच पहुँच भौतिकता के रास्तों पर तो असंख्य लोग चले हैं, परन्तु ये ऊर्ध्वगामी रास्ते बिलकुल अछूते हैं इन रास्तों पर बहुत ही कम लोग चल सके हैं। इन रास्तों पर चल करके आप पूरे देश न नाम कमा सकते हैं, हजारों लोगों का कल all'avore
मैंने जैसा कहा, कि चौबीस घंटों में केवल आधा घंटा भी ऐसा करेंगे, तो यह भी गुरू सेवा ही होगी इतना तो गुरू दक्षिणा लेना गुरू का हक है। गुरू tiva उत्तरारulareध की दीक्षा अपने आप ही अत अत्यन्त अद्वितीय है है जैसा कि मैंने बताया, कि क्रिया योग का पूरा तथ all'avore
इसलिये मैंने आपको समझाया, कि समाधि tiva सशरीर जाने की क्रिया कौन सी है, उसको समझाने पर ही उत्तरार्द्ध दीक्षा दी जाती है और यह दीक्षा प्रदान कर गुरू पूर्ण क्रिया योग का ज्ञान शिष्य की आत्मा में प्रविष्ट करा देता है।
Kundalini e Kriya Yoga
क्रिया योग जीवन का एक ऐसा सत्य है, जिसके माध्यम से हम स स्वयं एक्टिविटी करते हुये, स all'avore जीवन में और हृदय में आनन्द का एक स्त्रोत उजागर कर सकते है, अमृत कुंड स्थापित कर सकते हैं, जिसके माध से हम व व शरीर में में पूरे बरहरी हैं हो हो।।।। में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में tiva ऐसी क्रिया योग दीक्षा प्राप्त करके साधक निरन्तर क all'avore a मगर इसके साथ ही साथ कुण्डलिनी जागरण के बारे में भी मैंने पहले विवेचन किय किय है, लेकिन जब क all'avore वह तब तक तो बहुत जरूरी है, जब क क्रिया योग की तरफ बढ़े नहीं हो हो, जब क क्रिया योग देखा नहीं, समझा नहीं हो, सीखा नहीं हों हों हों हों हों हों हों हों हों हों हों हों हों हों हों हों हों हों हों हों हों हों हों हों हों हों हों हों हों हों हों हों हों हों हों हों हों हों हों हों हों हों हों हों हों हों हों हों हों हों हों हों हों हों हों हों हों हों हों हों हों हों हों हों हों हों हों हों हों हों हों हों हों हों हों हों हों हों हों हों हों हों हों हों हों हों हों हों हों tiva जाते हैं, तो tiva
हमारे शरीर में ऐसे कई चक्र हैं, जिनको नाडि़यों का गुच्छा कहते हैं और वे चक्र यदि स्पन्दनयुक्त हो जायें, जैसा कि मैंने प्रारम्भ में सहस्त्रर के बारे में कहा कि वह यदि जाग्रत हो जाता है, तो उसके माध्यम से जो क्रिया होनी होती है, वह हो जाती है, और वह क all'avore जिस प्रकार सहस्त्र ग्रंथि शरीर की अन्तिम अवस all'avore a मूलाधार से लगाकर सहस all'avore
कि इस जड़ शरीर को चेतना युक्त कैसे बनाया जा सकतईईई? हमारे शरीर में बहत्तर हजार नाडि़यां हैं और बहत all'avore तीनों नाडि़यों का प्रारम्भ रीढ़ की हड्डी जहां समाप्त होती है है, वहां से होता है और पूरे शरीर में ये नां वायाप है है
आज्ञा चक्र में केवल सुषुम्ना नाड़ी पहुँचती औ और इड़ा मसʻ nello इन तीनों का अलग-अलग स्थान है। हृदय पक्ष में समाप्त हो जाने वाली पिंगला है। जो केवल tiva जो हृदय पक्ष को लेकर चलते हैं, उनकी पिंगला नाड़ी ज्यादा प्रभावयुक्त है और जो भौतिकता का और आध्यात्मिकता का संगम करके आगे की ओर बढ़ते हैं, वे सुषुम्ना नाड़ी को लेकर ज्यादा चलते हैं। यदि हम किसी वैद्य के पास जायें, तो सारे शरीर में कहीं पर भी रोग हो, वह केवल इन तीन नाडि़यों पर हाथ रख करके, उंगलियों के माध्यम से, उनके स्पन्दन से एहसास कर सकता है कि पूरे शरीर में कहाँ पर रोग है, किस Cosa vuoi fare?
इसका मतलब यह हुआ कि हाथ की कलाई में न नाडि़यां हैं, उन नाडि़यों का पूरे शरीर से सम्बन्ध है। हृदय को, दिमाग को और पूरे शरीर की चेतना को एक साथ संगुम्फित करने में इन कुण कुण्डलिनी नाडि़यों का सहयोग है और इन न न के सहयोग को ही कुण कुण कुण कहते हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं
मगर उस समाप्त होने की क्रिया से पहले पू पूरे शरीerv जैसा कि मैंने बताया, पिंगला नाड़ी रीढ़ की हड्डी के नीचे से प्राbus और tiva
यदि आपने रीढ़ की हड्डी देखी, तो वह बिल्कुल खोखले बेलन की तरह है, जिसमें बत्तीस छल्ले हैं, बिल्कुल गोल इन छल्लों में से होती हुई ये नाडि़यां आगे ओर अग्रसर होती हैं, मगर ये तीनों ही नाडि़यां सुप्तावस्था में हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं यह तो मैंने पहले ही बताया था कि हमारा अट all'avore उसी जड़ tiva इसका मकसद है, पूरे शरीर को चेतनायुक्त बनाकर ऊरbbiamo
नृत्य करना किसी प्रकार का भोंडापन नहीं है, यह तो जीवन का एक उद्वेग है, अपने प प्रस्फुटित करने की क्रिया है है है है है है है है है है है है है यदि जीवन में नृत्य नहीं होता, तो कुंठायें व्याप्त हो जाती— और ऐसे व्यक्ति, जो नृत्य नहीं कर सकते, जो अपनी भावनाओं को व्यक्त नहीं कर सकते, वे चिड़चिड़े हो जाते हैं वे अपने आप में गुमसुम रहकर अपने जीवन को भार स्वरूप ढोने वाले हो जाते है।
हमारे पूर्वजों ने होली का एक त्योहार रखा। आज से चालीस साल पहले जैसा होली का त्योहार होता था, अब तो वैसा रहा ही नहीं मैंने चालीस साल पहले की होली भी देखी है और आज भी देख रहा हूँ, चालीस साल पहले वे जवान लड़के जिस प्रकार से गालियां बोलते थे, उनका तो आज अस्तित्व ही नहीं रहा और उन गालियों में दादा, बाप, पोता सभी शामिल होते थे। यह उच्च वर्ग की घटना है- कोई मजदूर या कृषक वर्ग की बात नहीं कर रहा हूँ
ऐसी प्रथा क्यों रखी पूर्वजों?
यदि आपने होली गीत सुने हों तो उसमें आपने देखा होगा कि व all'avore व्यक्ति की जो दमित इच्छायें होती हैं, उनके पूर्णरूप से प्रदर्शित करने के लिये एक जगह बना दी दी अगर वह जगह नहीं बनेगी, तो व्यक्ति अन्दर से दमित और कुंठाग्रस्त हो जायेगा, इसलिये ये दो-तीन दिन बन दिये कि व्यक अपनी अपनी बात को खुल खुल से से दे दे दे दे जो जो जो है बोल दे दे।।।।। अपनी अपनी ब ब ब को को खुल से से से से से दे जो जो जो है बोल बोल दे।।
नृत्य भी उन्हीं भावनाओं को प all'avore यह कोई भोंडा प्रदर्शन नहीं हैं यह जीवन की भावनाओं का उद्वेग है औ जीवन की भावनाओं का उद्वेग वही प्रप पक्त कर सकतर है है जिसकी जिसकी सुषुम सुषुम जिसकी जिसकी। हो हो।। हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो tiva जो हृदय से जाग्रतवान होते, वे ही अपने आप मुस मुस्करा सकते है है
आपने अट्टहास शब्द तो सुना ही होगा कि हमारे पूर्वज जोरों से अट्टहास लगाते थे आज यह शब्द हम केवल सुनते है। ऐसा देखते नहीं, आज अगर कोई व्यक्ति जोरों से हँसे, तो हम कहते हैं- यह तो असभ्यता है, बड़ा ही असभ्य है, गंवार की तरह हंस रहा है जोर-ieri से से से से घर की बेटी अगर जोर से हंसने लग जाय तो कहेंगे- तुझे शर्म नहीं आती, क्या घर की बहू-बेटियों के ये लक्षण हैं? रोती हुई लड़की या लड़का बड़ा अच्छा लगता है और हम कहते हैं- वह बहुत गंभी गंभीर है है व्यक्ति अट all'avore
होली का त्योहार नृत्य, कलाओं कµi हमारे शास्त्रों में वर्णित है कि सभी स all'avore a अब तो सब कुछ बदल गया है, क्लब में जाना, पत्ते खेलना, शराब पीना, सिगरेट के छल all'avore
इस कुण्डलिनी जागरण के माध्यम से जीवन कµi नृत्य करना है- आँखो के माध्यम से नृत्य करता है- शरीर के माध्यम से नृत्य करता है- चेतना के माध्यम से नृत्य करता है- बातों के माध्यम से, बात ऐसी सटीक करता है, कि सामने वाला एहसास करता है, कि कुछ उत्तर मिला । तुरन्त उत्तर दिया जाये और सटीक उत्तर दिया जाय, यह अपने आप में बहुत बड़ी कला होती है
मैंने सुख और आनन्द में अन्तर बताया। सुख तो हम पैसे से प्राप event आनन्द प्राप्त नहीं कर सकते, क्योंकि आनन्द प्राप्त करने के लिये तो अन्दर की सारी प्रवृत्तियां जाग्रत करनी पड़ती है और वे सारी वृत्तियां जिस प्रकार से जाग्रत होती हैं, उसको कुण्डलिनी जागरण कहा जाता है, यह उसका मूल आधार है।
कुण्डलिनी का मूल आधार मूलाधार चक्र है। उसके बाद स्वाधिष्ठान चक्र है। एक-एक करके चक्रों को जाग्रत करने की क्रिया का बेस क all'avore
शास्त्रों में बिल्कुल स all'avore आप सांस ले रहे हैं, मगर जैसा मैं पहले उल उल्लेख कर चूका हूँ हूँ आपको सांस लेना आता ही नहीं, क्योंकि सांस का सम्बन्ध सीधा नाभि से है है जब आप सांस लेते हैं, तो आपके नाभि प्रदेश में स्पन्दन होना चाहिये।
यदि आपको देखना है, तो केवल चार-छः महीने के बच्चे को देखें, कि वह सांस ले रहा है और उसकी नाभि थर-थर हिलती है, स्पन्दनयुक्त होती है, पूरी नाभि बराबर धड़कन युक्त बनी रहती है और जब आप सांस लेते हैं, तो केवल गले तक ही लेते हैं। सांस लेना आपको एक बच्चे से सीखना चाहिये और व all'avore a
मगर हमारे सारे शरीर में दुर्गन्धयुक्त वायु भरीीीर जहां कोई चीज नहीं होती, वहां वायु होती है। A causa di ciò che è successo, ho avuto la possibilità di farlo. कंठ के बाद में वह वायु नीचे उतरती ही नहीं। इसीलिये मैं कह ness. मूलाधार जाग्रत करने के लिये फोर्स तो लगाना ही पड़ेगा।
आपने सपेरे को देखा होगा, जब सांप कुण्डली मारकर बैठ जाता है तो सपेरा बीन बजाता है और यदि फिर भी नहीं उठता है, तो वह हाथ से छेड़ता है, तब सांप फन फैला करके खड़ा होता है है है है है है है है है है है है होत होत. इसी प्रकार वह कुण्डलिनी भी सुप all'avore आप सांस इतनी गहराई से लें कि नाभि में स्थित जो चक्र हैं, सीधा उस पर धक्का लगे और जब धक्का लगेगा तो वह अपने आप जागरत होगा ही ही
सबसे पहले कठिन क्रिया यही है, कि हम धक्का लगायेंगे, जोर से सांस लेने और छोड़ने की क्रिया से, इसको भस्त्रिका कहते हैं और पहली बार जब आप सांस जोरों से लेंगे, तो कंठ में से दुर्गन्ध युक्त वायु निकलेगी। यदि आप भस्त्रिका करते रहेंगे, तो महीने दो महीने बाद आप उस स्थान पर पहुँच जायेंगे कि वह पूरा प्रदेश खाली होगा और सांस लेंगे, वह सीधा नाभि तक पहुँचेगा और फिर सांस बाहर आयेगा, अतः आप जो सांस लें वह पूरे फोर्स के साथ लें और पूरे फोर्स के साथ बाहर निकालें। इसलिये हमारे पूर्वजों ने कहा है कि उठकर गहरी सांस लेनी चाहिये। गहरी सांस लेने का मतलब है, कि अन्दर तक सके, मगर पहुँच नहीं प पा रही है, पहुँच नहीं पा रही— इसीलिये प्रकार की बीमारियां हैं औरोग तो तो आप में में है है।।
यदि व्यक्ति को कुण्डलिनी जागरण का ज्ञान हो, सीधा नाभिस्थल तक पहुँचने का ज्ञान हो, तो फिर उसको मृत्यु ूपी रोग रोग का आभास नहीं हो सकता। इसलिये इतने फोर्स से सांस बाहर निकालें कि ऐसा लगे, जैसे सीना फट जायेगा और उतनी ही जोर से सांस को वापिस खींचें खींचें इन दोनों क्रियाओं को निरन्तर करने से एक स्टेज ऐसी आती है कि कुण कुण्डलिनी जाग्रत होकर खड़ी हो जाती है है यह कोई ऐसी विशेष कठिन क्रिया नहीं है। आवश्यकता इस बात की है कि हम अपने पेट को पूरा खाली इस भस्त्रिका से पूर्व पेट ख खाली करने के दो तरीके हैं, एक तरीका तो यह है कि व्यक्ति को कम करना चाहिये। यदि व्यक्ति अनाज खाना छोड़ दे व्यक्ति मर नहीं जायेगा, यह गारण्टी की बात है Per quanto riguarda, इसलिये मर जाता है। जो व्यक्ति केवल वनस्पति पर रहता है, वह जीवित हत रहता है है
अब आप कहेंगे, आपने यह सलाह तो दे, पर भूख लग जाती है, उसका क्या करें? तो मैं कहता हूँ, कि आटा कम खाना चाहिये और भोजन करने से पहले पानी ज्यादा पी लें पानी ज्यादा पी, तो फिर भूख कम औ और आप कम रोटी खा सकेंगे इसलिये पेट में ज्यादा फालतू का सामान नहीं जाये और जो हो, पहले उसे पचा लें दूसरी जो क्रिया है, उसमें शवासन में लेटकर पांवों को छः इंच ऊपर उठा लें, तो आप देखेंगे, कि पैरों में खिंचाव महसूस हो रहा है है है है है है है है है है है है है है है है है केवल एक-दो मिनट में ही ऐसा लगेगा कि अन्दर का सारा प्रदेश फट रहा है। जितना भी पेट में स्टोरेज है उसके टूटने, विखंडन क क्रिया होगी और धीरे-धीरे जो चर्बी है, जिसको मांस पिंड कहा जाता है, वह अपने आप में गलेग गलेगा। शरीर को तो चाहिये ही, ऊर्जा अब या तो आप रोटी के द्वारा दे देंगे, नहीं तो जो जमा है, उससे शरीर प all'avore जब पेट अपने आप में दबेगा, तब आप जो सांस लेंगे वह सीधा ही नांभि तक तक पहुँचेग।
दूसरा आसन है कि आप सीधे बैठ कर के पेट बहुत अंदर खींचें, गहरी सांस छोड़ करके ऐसे कि जैसे पीठ से चिपक जाय, क्योंकि आपने अंदर से दीवरें बहुत की की हुई है है है है है है हुई हुई हुई हुई हुई हुई हुई हुई हुई हुई हुई हुई हुई हुई हुई हुई हुई हुई tivamente
इन तीनों क्रियाओं के माध्यम से मूलाधार जागरण की क्रिया प्रारम्भ होती है और कुण्डलिनी जागरण का विशेष मंत्र, भस्त्रिका के बाद में उच्चारण करने से भी अंदर की सारी गन्दगी, जो गैस, चर्बी है, जितना भी फालतू है, वह ऊर्जा के माध्यम से जल्दी से जल्दी पिघल करके साफ हो जाता है और फिर कुण all'avore ये दोनों का मूल भेद है, जिसके माध्यम से व्यक्ति कुण्डलिनी जागरण कर सकता है है
Mantra Siddhi - Raggiungimento della perfezione
मैंने आपको कुण्डलिनी जागरण के बहुत सरल, सामान्य से नियम बताये हैं, न मैं इसकी में में गया और न ही बताया, कि कुण्डलिनी क्या है? Vuoi sapere cosa fare? इससे तुम्हारा कोई मतलब नहीं है, क्योंकि जब उस स साधना को समझा है, जिसके माध्यम से पूरा शरीर अपने में चैतन चैतन किया जाता है, मैट मैट की प परीक प कोई आवश आवश है। ~
क्रिया योग के माध्यम से भी पूरी कुण्डलिनी जाग्रत होती है है, जिसकी कुण्डलिनी जाग्रत होती है, वह अपने में ही तीन कल से से ऊपर उठ उठ जrigur सोलह कलाओं तक पहुँचने के प प्रयत्न यह करना है, कि सबसे पहले एक योग योग्य गुरू की खोज करनी है
'चेतना सिद्धि', प्राणमय सिद्धि ', ब्रहरandoचस सिद सिद सिद सिद सिद और तांत्रोक गुरू सिद सिद ये चार कुण्डलिनी जाग और पूर पूर पूर Quali
चेतना सिद्धि का तात्पर्य है- पूरे शरीर को चैतन्य करने की क्रिया। यदि हमारा शरीर चैतन all'avore उन जड़ शरीर को चेतना युक्त बनाने के लिये 'चेतना सिद्धि यंतʻè' को स सामने रखकर नित्य एक माला मंत्र जप 'स्फटिक माला' से किया जा चाहिये च च चाहिये च यह मंत्रात्मक प्रयोग है, मंत all'avore चेतना मंत्र यहां स्पष्ट कर रहा हूँ-
इसका यदि आप निरन्तर एक माला मंत all'avore इसकी पहचान कैसे होगी? यदि आपकी स्मरण शक all'avore एकदम से आपको नई चेतना, नये विचार, नई भावनायें, नई कल्पनायें प all'avore
दूसरी प्राणमय सिद्धि, जब शरीर चैतन all'avore यद्यपि हमारे श cercando प्राणों का संचार करना एक अलग चीज, जीवन का संचार तो भगवान ने किया ही है A causa di ciò che è successo, è stato detto che è successo. इस 'प्राणमय यंत्र' को सामने रखकर इक्कीस बार प all'avore a
इन दोनों स्थितियों को प्राप्त करने से पहले दे ह और मन को साधते हुये जीवन को बहिर्मुखी बनाने के बजाय अर्न्तमुखी बनाने हेतु क्रियारत हो जाये क ्रिया में संलग्न हो जायेंगे तो निश्चय ही आपकी स ारी क्रियाये योग बनकर आपके जीवन में क्रिया योग सिद्धि प्रदान करेंगी।
मैं आपको पूर्ण आशीर्वाद देता हूँ कि अपने शिष्यत्व को उच्चता की ओर अग्रसर करते हुए पूर्णत nello आशीर्वाद आशीर्वाद आशीर्वाद
परम् पूज्य सद्गुरूदेव
Signor Kailash Shrimali
È obbligatorio ottenere Guru Diksha dal riverito Gurudev prima di eseguire qualsiasi Sadhana o prendere qualsiasi altro Diksha. Si prega di contattare Kailash Siddhashram, Jodhpur attraverso E-mail , WhatsApp, Telefono or Invia richiesta per ottenere materiale Sadhana consacrato e mantra-santificato e ulteriore guida,