संस्कार, आस्था एवं परम्पराओं से नारी का अटूई हिश नारी चाहे कितनी ही क्यों ना पढ़-लिख जाये, ऊँचे प पर कारscoयरत रहे, आधुनिक बन जाये, लेकिन उसका मन संस्कारों से हमेशा जुड़ा रहता है है है है है है है है है पाश्चात्य संस्कृति से प all'avore a अन्तर्मन में ममता, स्नेह, त all'avore a फिर भी वह मुस्कुराकर हर कठिनाईयों में जूझती अपने परिवार की सुख-समृद्धि, खुशहाली की कामना करती है।
नारी के दिन की शुरूआत ही पूजा-पाठ, सूर्य देव को अर्घ्य देने में एवं तुलसी के पौधे में जल चढ़ाने से होती है है है है है है है है है है है है है होती होती होती होती पर्व, व्रत, उपव Schose नारियों को त्योहार, उत्सव, पर्व का बेसब all'avore a आज भी महिलायें व्रत-उपवास कर अपनी आस्था-श्रद्धा और परम्पराओं का निर्वाह करती है।
करवा चौथ सुहागिनों का सबसे प्रिय व्रत है। जब वे अपने पति के स्वास्थ्य, दीर्घायु जीवन की कामना करती हैं हैं करवा चौथ का व all'avore आर्य संस्कृति में पति को परमेश्वर का स्वरूप कहा ही नहीं अपितु उसकी पूजा भी परमेश्वर स्वरूप में होती है है है है है है है है है है है है है पौराणिक कथाओं के अनुसार पत्नी का संसार पति की सेवा में अनुरक्त रहना है इसी को पतिव्रता पत्नी कहा गया है।
नारद ने जब यह कहा कि सत्यवान की बस एक वर्ष की है तो स सावित्री ने निष all'avo हृदय तो बस एक ही बार चढ़ाया जाता है। जो हृदय निर्मल हो चुका उसे लौटाया कैसे जाये? सती बस एक ही बार अपना हृदय अपने प्राणधन के चरणों में चढ़ाती है है
वह दिन आ पहुँचा जिस सत्यवान् के प्राण प all'avore a सावित्री ने कहा मै भी साथ चलूंगी। वह साथ जाती है। सत्यवान् लकड़ी काटने ऊपर चढ़ता है, सिर में चक्कर आने लगता है और कुल्हाड़ी नीचे फेंककर वृक्ष से उतरता है है सावित्री पति का सिर अपनी गोद में रखकर पृथ्यी ठ४र ठईर
तभी यमराज ने करूणाभर शब्दों में कहा- तुम पतिव all'avore सत्यवान की आयु पूर्ण हो गयी है अत मैं उसे मृत मृत में ले जाता हूँ यमराज सत्यवान को ज जाता है है पतिव्रता सावित्री भी उसी दिशा को जाने लगती है। यमराज ने मना किया परन्तु सावित्री बोली जहां मेरे पति स्वयं जा रहे हैं या दूसरा कोई उन्हें ले जा रहा हो- वहीं मैं भी भी ज यही सन सन सन धiché ध ध है है यम मना करते रहें और सावित्री पीछे-पीछे चलती गयी। उनकी इस दृढ़ निष्ठा और अटल पतिव्रता ने यम को पिघला दिया और यमराज ने एक-एक करके वर रूप में सावित्री के अन्धे ससुर को आँख दे दी, धन दिया, साम्राज्य दिया, उसके पिता को सौ पुत्र दिये और सावित्री को लौट जाने के लिये कहा। सावित्री ने अन्तिम वर के रूप में सत्यवान से पुत पुत्र मांगे और अन्त में सत्यवान जीवित हो जाये यह वर भी उसने प्राप्त कर लिया।। और कहा- मैं पति के बिना सुख नहीं चाहती, बिना पति के स all'avore उन्होंने सत्यवान के सूक all'avore
यमराज को जीतकर पति के मृत देह को कर लौटा लाना, भारतीय पतिव all'avore इन tiva अपने पतिव्रत धर्म से ब all'avore
सदियों पुरानी इसी परम्परा को आज भ भारतीय नारी सौभाग्य चतुर्थी के दिन करवा चौथ का व्रत, साधना, आराधना, पूजा कर बड़े हर Quali करवा चौथ पर महिलायें हाथों में मेंहदी रचाती हैं नृत्य, गायन, श्रृंगार के साथ सबसे महत all'avore
समय के अनुरूप आज की नारी में भी परिवर्तन हुआ है। आज की भारतीय नारी पढ़ी-लिखी तो है ही, पर फिर भी उसके संस्कार ऐसे हैं कि वो अपने परिवार की श्रेष्ठता के लिये, घर-परिवार की समृद्धि, प्रगति, खुशहाली के लिये धनोपार्जन करने में भी अधिकांश नारियां समर्थ हैं। सामाजिक, बौद्धिक, पारिवारिक जिम all'avore यही वह tiva एक-दूसरे के लिये त्याग, प्रेम, श्रेष्ठ विचार, वाणी, संयम से ही गृहस गृहस गृहस जीवन की मजबूत खी रखी जा सकती है है अन्यथा आज जिस प्रकार पति-पत्नी के मध्य मतभेद, तनाव, शंकाओं, आरोप-पebयायrigere का दौर चल रहा है है वह तो बहुत घृणित, पाप-दोषों से युक्त, पशु तुल्य ही कहा जा सकता है ये किसी भी दृष्टि से भारतीय संस्कृति काभाग नहीई आर्य संस्कृति में इसका कहीं भी वर्णन नहीं मिाेग
सहानुभूति गृहस्थ के लिये आवश्यक भी है और सहज भी। पति-पत्नी एक-दूसरे के सुख, दुःख के सहज संगी है। सहनशीलता भी गृहस्थ के लिये आवश्यक है। यदि किसी ने कुछ अपशब्द कह दिया या विरूद्ध कारrnoय कर दिया तो उससे तुनककर, रूष nello उस समय उसको सह लेना ही श्रेयस्कर है। बाद में अनुकूल अवसर पाकर शांति से समझा देना चाहिये कि अपशब्द यµi सौहारuloदपूर्वक यदि एक-दूसरे को क करते चलेंगे तो दिन घ घर के सभी सदस्य स्नेह शीलता का अनुभव करने लगेंगे। सहनशीलता में अहिंसा, अक्रोध, शांति, धृति तथा क्षमा की भाव की सम सम्मिलित है है धैर्य पूर्वक शांति का वातावरण बनाये रखना ही गृहस्थी का मूल मंत्र है
गृहस्थ को स्वर्ग बनाना है उप उपरrnoयुक पथों पर गतिशील होना पड़ेगा। आसुरी पथ तो यहां अधिकाधिक मात्र में हैं। उनसे जीवन को सुरक्षित और संयमित कर उन all'avore वहीं पर श्रेष्ठता, दिव्यता, प all'avore
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