उस श्लोक में बताया गया है कि मनुष्य अपने एक अधूरा और अपostra धन है तो प्रतिष्ठा नहीं है प्रतिष्ठा है तो पुत्र नहीं है, पुत्र है तो सौभाग्य नहीं, सौभाग्य है तो रोग रहित नहीं है।।।।।।।।।।।।।।।।।।। tivamente उसके शरीर में भी कोई विशेषता नहीं है उसमें म मांस निकलेगा, हड्डियां निकलेंगी, रूधिर निकलेगा। इसके अलावा इस शरीर में कोई ऐसी चीज नहीं है जिससे हम श शरीर पर गर्व कर सके। हम किस बात पर गर्व करें? इस शरीर में क्या है जिस पर गर्व करें। हमारे लिये कोई ऐसी युक्ति भी नहीं है कि इस शरीर में कुछ ऐसा प्रभाव कुछ ऐसी आभा पैदा कर सके जिसके माध्यम से हमाराrigere शरीर हमा चेहरा दैदीपायम बन।।। हम जो भोजन करते हैं, जो शुद्ध अन्न है, वह आगे जाकर मल बन ज जाता है और ऐसा मल जिसका कोई नहीं होता।
हलवा खाये तो भी उसका अंत मल ही है, घी खांये तो भी उसका अंत मल ही है और चाहे रोटी खांये तो भी उसका अंत मल ही है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है शरीर में ऐसी क्रिया ही नहीं जो शरीर को दिव्यता और चेतना युक्त बना सके क all'avore एक चलती फिरती देह है और उस देह उच उच कोटि का ज्ञान, उच्च कोटि की चेतना, उच्च कोटि का चिंतन समाहित नहीं हो सकता क्योंकि इस शरीर में कुछ है ही ही ही ही
इस शरीर के भीतर झांक कर भी देखा, इस शरीर को चीर फाड़कर भी देखा, इन आंखों को देखा, हाथ को देखा, टांग को देखा और ऑपरेशन करके भी देखा, उसमें कोई विशेषता मिली ही नहीं और यदि हम कुछ भी लें या खाये पीये तो उसके बाद भी शरीर में किसी प all'avore a क्यों नहीं बन सकती?
फिर मनुष्य शरीर हमने धारण क्यों किया? इसलिये ब्रह्मा पहले श्लोक की आधी पंक्ति में कहते हैं मनुष्य शरीर अपने आपमें एक ऐसा व्यर्थ शरीर है कि उसको हम किसी को चढ़ा भी नहीं सकते अर्पण भी नहीं कर सकते। न गुरू के चरणों में चढ़ा सकते हैं, न देवताओं के चरणों में चढ़ चढ़ सकते हैं अपवित्र चीज नहीं चढ़ा सकते। एक हिसाब से सड़ा हुआ पुष्प है, या फूल है उसे भगवान के चरणों में नहीं चढ़ चढ़ सकते सकते यदि हम अपने शरीर को भगवान के चरणों में चढ़ाये कि भगवान मैं आपके चरणों में समर्पित हूँ तो शरीर तो खुद अपवित्र है जिसमें मल और मूतर मूत› के अलावा कुछ है ही ही ही ही है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है ऐसे गंदे शरीर को भगवान के शरीर में कैसे चढ़ा सकते औ और ऐसे शरीर को अपने गुरू के चरणों में कैसे चढ़ा सकते?
उस श्लोक की दूसरी पंक्ति में कहा है जीवन का सारभूत और देवताओं का सारभूत तथ्य अगर किसी है तो गु गुरू रूप में है है।।।।। है है है है है है है है है है है है है tivamente क्योंकि गुरू प्राणमय कोष में होता है, आत्ममय कोष में होता है और सप्त कोटि में होता है उसको गुरू कहते हैं। वह केवल देह रूप में नहीं होता उसमें ज्ञान होता है, चेतना होती है, उसकी कुण्डलिनी जाग्रत होती है, सहस्रार जाग्रत होता है, एक उच्च जीवन का चिंतन होता है और वह बिना खाये पिये, बिना मल मूत्र विसर्जित किये भी वह सैकड़ों वर्ष व्यतीत कर सकता है।
न उसे भूख लगती है न प्यास लगती है न उसे मूत्र त्याग करने की जरूरत होती है और न मल विसर्जित करने की जरूरत होती है जब भूख प्यास नहीं लगेगी, जब वह कुछ खायेगा पीयेगा ही नहीं तो उसे मल मूत्र विसर्जन की भी जरूरत नहीं होती । इसलिये उच्च कोटि के साधक न भोजन करते हैं, न पानी पीते हैं और न मल मूत्र विसर्जन करते हैं और जमीन से चार फूट पांच फूट ऊपर आसन लगाकर बैठते हैं और साधना करते हैं तो ब्रह्मा ने कहा वे भी मनुष्य ही है जो इस प्रकार की क्रिया कर करते हैं और बाकी लोग भी मनुष्य ही हैं जो इस प्रकार की क all'avore तो इस जगह से उस जगह छलांग लगाने की कौन सी क्रिहा क्रिहा त? कैसे हम उच्च कोटि का जीवन प्राप्त कर सकते हैं? अगर हम इस जीवन में साधारण मनुष्य ही रहें तो फिर हमारे जीवन में वह स स कब कब आयेगी जब जमीन से पांच फुट ऊपर बैठकर हम साधना कर सकें सकें सकें सकें सकें जमीन से ऊपर उठकर साधना करने की क्या आवश्यकता है?
आवश्यकता इसलिये है कि जमीन का कोई ऐसा भाग नहीं है जहाँ पर रूधिर नहीं बहा हो हो सैकडों लोग कटे होंगे, मरे होंगे, सैकड़ों शव बिखरे होंगे, सैकड़ों सभ्यताये नष्ट हो गई होंगी होंगी हडप्पा बना, मोहनजोदड़ों बना नष्ट हुए, सैकड़ों बार प all'avore a अपवित्र जमीन है, अपवित्र भूमि है और उस प पर बैठकर साधना कैसे हो सकती है? और वहां बैठकर साधनाओं में सिद्धि कैसे प्राप्त हो सकती है?
दो कमियां हमारे जीवन में आई। एक कमी तो यह कि पृथ्वी खून से रंगी हुई— अगर दिल्ली को ही देखें तो सैकड़ों उस पर अत्याचार हुये। पृथ्वी की कोई जगह नहीं जहां पर खून नहीं बहा हो या जो पूर्णतः पवित्र हो हो कहीं पर मल विसर्जन हुआ होगा, कहीं पर मूत्र विसर्जन हुआ होगा। पवित्र कहीं पर भी धरती है ही नहीं। और बिना पवित्रता के इतनी उच्च कोटि स साधनाये सम्पन्न हो ही नहीं सकती और अगostra फिर तो सिर्फ एक मल मूत्र युक्त जीवन है। ऐसा जीवन क्या काम का है? इस जीवन के माध्यम से हम सिद्धाश्रम कैसेपहुँच हम? उसके माध्यम से हजारों वर्षों की प प्राप्त योगियों के दर्शन कैसे कर सकते हैं? और अगर ऐसा नहीं कर पायेंगे तो इस जीवन का अर्थ त्य? फिर जीवन का मतलब क्या? Cosa fare? ऐसे ही जीवन बर्बाद हो जाना है?
ऐसे तो कई पीढि़यों के जीवन बर्बाद हो चुके औ और आज जीवन जीवन का नामो निशान भी नहीं है है आपको अपने दादा परदादा तक का तो नाम शायद य Schose केवल जीवन घसीटते हुए उन्होंने बिता दिया।
अगर आप भी ऐसा ही जीवन व्यतीत करना चाहते हैं तो फिर आपको जीवन में गुरू की जरूरत है ही, फिर जीवन का मतलब ही नहीं है है।। है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है शरीर पर साबुन लगाने से जीवन स्वच्छ नहीं बन सकता, यदि आप चार दिन स्नान नहीं करे तो शरीर से बदबू लग ज जायेगी। कोई पास खड़ा होगा तो कहेगा क्या बात है तुम all'avore a यह शरीर कितना अपवित्र है कि चार दिन ब बाहर के वातावरण को झेल नहीं सकता और हम कल all'avore सुगंध तब प्रवाहित होती थी जब गंध या दुर्गंह थीटतईीटतईीटत राम के शरीर से सुगंध प्रवाहित होती थी, उच्च कोटि के योगीयों के शरीर से अष्टगंध प्रवाहित होती तो हममे क्या कमी है कि कि हमारे शरीर से अष अष प प होती? पास में से निकले और दूसरे अहसास करे कि यह पास में से कौन निकल निकला यह सुगंध कहां से आई ऐसी सुगंध जो कस्तूरी की नहीं, केसर की नहीं औ और किसी चीज की नहीं है, हिना की नहीं, इत्र की नहीं, गुलाब की नहीं है है है है है है है है है है है है है नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं यह गंध क्या है, यह चीज क्या है, इस व्यक्तित्व में क्यों हैं? अगर ऐसा जीवन नहीं बना तो जीवन का मूल्य, मतलब, अर्थ और चिंतन क्या है?
ब्रह्मा कह रहें कि यह आने वाली पीढि़यां नहीं समझ सकेंगी और अगर ऐसा जीवन नहीं हुआ तो हमे ऐसे ही घिसटते हुए जो पशु या बैल उठता है और एक घाणी के बैल की तरह गोल गोल घूमता रहता है ऐसे ही मनुष्य नौकरी या व्यापार में घूमता रहेगा और एक दिन मर जायेगा। जो यह tiva वे येन केन प्रकारेण मनुष all'avore राम के रूप में जन्म लेते हैं, कृष्ण के रूप में जन्म लेते हैं, बुद्ध के रूप में जन्म लेते हैं, महावीर के रूप में जन्म लेते हैं, ईसा मसीह के रूप में जन्म लेते हैं, पैगम्बर के रूप में जन्म लेते हैं और मनुष्य के रूप इसलिये धारण करते हैं कि शरीर से कुछ ऐसा हो जो अपने आपमें अद अद्वितीय है
हमें मनुष्य शरीर मिला है और हम उसका उपयोग नहीं कर सकते, हम इस शरीर को जमीन से ऊपर नहीं उठा सकते, शून्य में आसन नहीं लगा सकते इस शरीर को ब्रह्म में लीन नहीं कर सकते इस शरीर को अष्टगंध से युक्त नहीं बना सकते। ऐसी कृष्ण में क्या विशेषता थी राम में क्या विशेषता? और हममें क्या न्यूनता?
ब्रह्मा के दूसरे श्लोक का अर्थ यह है और इस शरीर को पवित्र बनाने के लिये यह आवश्यक है कि हम देह तत्व से प्राण तत्व में जाये, जब प्राण तत्व में जायेंगे तो देह तत्व का भान रहेगा ही नहीं। फिर भी हम जीवन के सारे क all'avore फिर भूख प्यास नहीं, फिर भोजन और पानी की जरूरत नहीं रहेगी, फिर शूनč में हम आसन लग लगा सकेंगे, फिर शरीर से सुगंध प्रवाहित हो हो सकेगी सकेगी फि फिर अहसर अहस हो हो की हैं हैं। से सुगंध प पrigव हो हो सकेगी सकेगी फि tiva फिर अंदर एक चेतना पैदा हो सकेगी अंदर एक क्रियमाण पैदµi
आप कितना पढ़ पायेंगे, कितना य Schose इस जीवन को अद्वितीय कैसे बना सकेंगे? और फिर अद्वितीय भी नहीं बनाया तो फिर जीवन का अर्थ भी क्या रहा?
फिर तो जैसा जीवन है वैसा जीवन व्यतीत करके चले जायेंगे और फिर तो जैसे दूस दूसरे लोग हैं वैसे ही आप आप, जैसे च चाचा हैं वैसे ही आप हैं, जैसे आपके आपके आपके पित हैं हैं हैं वैसे वैसे ही ही जैसे म आप आप आप वैसे वैसे आप आप ही आप आप हैं हैं हैं जैसे आपके आपके आपके आपके आपके हैं हैं हैं हैं वैसे वैसे वैसे ही जैसे आपके आप आप आप आप आप आप ही आप आप हैं हैं हैं जैसे जैसे आपके आपके आपके आपके आपके आपके हैं हैं हैं हैं वैसे वैसे वैसे ही जैसे आपके tiva हैं। फिर आपमें और उनमें अंतर क्या है? और फिर अंतर नहीं है तो मेरा या गुरू का उपयोग क्हा? फिर मैं गुरू बना ही क्यों? फिर मेरे जीवन का अर्थ क्या, चिंतन क्या अगर मैं शिष्यों को चेतना और ज्ञान नहीं दे?
ब्रह्मा कह रहें है कि फिर गुरू का जीवन में अर्थ है ही नहीं नहीं, ब्रह्मा को भी गुरू कहा गयाण को भी गुरू कहा गया।। कृष्णं वंदे जगद्गुरूं। कृष्ण को कृष्ण के रूप में याद नहीं किया, कृष्ण को जगद गुरू के रूप में याद किया गया। उनको गुरू क्यों कहा गया? इसलिये की उन्होंने उन साधनाओं को प्राप्त किया, उस चेतना को प all'avore उनके शरीर में चेतना प्रवाहित हुई और प all'avore यह जीवन का अर्थ है यह जीवन का धर्म है, यह जीवन की बहुत बड़ी तपस्या है है हजार साल के अध्ययन के बाद भी आप चीज को प्राप्त नहीं क क सकते, पुस्तकों से प्राप नहीं कर सकते, मंत्र जप से भी प पendere प Quali अगर गंगा में स्नान करने से उच उच्चता बनता है तो मछलियां तो ह समय स स्नान करती हैं, वे अपने आपमें कभी की उच्च बन ज जाती। उच्च बनने की तो दूसरी ही क्रिया है और ब्रह्मा कह रहें हैं कि आने वाली पीढि़यां इस चीज भूल ज जायेगी। इसलिये ब्रह्मा ने एक गुरू की स स्थापना की और स्वयं अपने आपको गुरूदेव के रूप में स्थापित किया। उसने कहा- मुझे ब्रह्मा नहीं कहा जाये मुझे गुरू कहा जाये ताकि मैं अपने अट all'avore
उन्होंने अपने अट्ठारह पुत all'avore a इसलिये ऐसा किया क्योंकि हिमालय में कहां से भोजान लन जो हिमालय में साधना करते हैं उन्हें भला भोजन और पानी कहा से मिलेगा। मगर फिर भी वे साधनाओं में उच्च कोटि के हैं। हम गृहस्थ में nessuna वे उच्च कोटि के हैं मगर जरूरी नहीं ऐसा दिखाई दे। कोई करोड़पति हैं तो जरूरी नहीं क ieri रूपये दिखाए— उसका चेहरा, उसकी बोली, उसकी ठसक, उसके बोलने की क्रिया अपने आप बता देती है कि वह क करोड़पति हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं क क क हैं हैं हैं हैं हैं शेर अपने मुंह से बोलता नहीं कि मैं शेर हूँ। वह तो उसकी चाल, उसकी ढाल, उसकी की क्षमता, उसका वक्ष स्थल, उसकी तेजस्विता, उसके बिखरे हुए बाल, उसकी दहाड़ एकदम बत देती देती है कि वह शेर हैं, वाघर है है मरी हुई चाल नहीं, एक रोती हुई चाल नहीं है, वह दहाड़ता है तो जंगल अपने आपमें दहल उठता है
आप जब बोलते हैं तो पास वाले व्यक्ति पर प all'avore आपका व्यक्तित्व तेजस्वी नहीं, इसलिये आपक आपका शरीर दुर्गंध युक्त है, इसलिये की शरीर में कुछ है नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं आपके शरीर में केवल मल मूत्र है और खून, हड्डियां और नाडि़यां हैं यह जीवन जिसका आप बहुत बखान कर रहे हैं, तारीफ कर रहें हैं यह जीवन तो बहुत तुच तुच और ओछा है इसमें कुछ है ही नहीं अच्छा जिसकी आप प्रशंसा कर सक यह ऐसा है जिसका कोई उपयोग ही नहीं हो सकता। गाय मरेगी तो उसकी चमड़े से जूती तो, आपकी चमड़ी तो तो जूता भी नहीं बन सकत सकता, आपकी हड्डियों से भी कोई चीज नहीं सकती सकती आपके शरीर को केवल राख बन जाना है।
मगर इसके साथ-साथ इस शरीर में यह विशेषता है कि यह शरीर अपने आपमें दैदीप्यमान बन सकता है, तेजस्विता युक्त बन सकता है है है वह नहीं बनेगा तो बाकी सारी साधनाये बेकार हैं व all'avore मैं आपको हीरे लाकर दे भी औ और आपको हीरों का ज्ञान ही नहीं है तो आप क कांच के टुकडे समझ कर एक तरफ रख देंगे क क आपको आपको उनका मूलाय मालूम नहीं नहीं नहीं मैं आपको मंत्र दूंगा, साधनाये भी दूंगर आप उन साधनाओं का मूल्य, अर्थ और महत्ता नहीं प प उस योग योग्य नहीं बन पायेंगे तो उन उन साओं काओं क कैसे क प प योगrigh जीवन में अद्वितीयता हो यह जीवन का धर्म है, हम औ और हम ही हैं औ और हमारे जैसा कोई नहीं है ऐसा हम बनें जीवन का महत्व है, तब आपका चेतना युका युका युक्त व्यक है।
ब्रह्मा कह रहें हैं कि ऐसा हो और ऐसा शिष्य को बना सके तब वह गुरू है मगर उससे पहले गुरू अपने आपमें पूर्ण प्राणवान हो, तेजस्विता युक्त हो, उसकी वाणी में गंभीरता हो, शेर की तरह दहाड़ हो, एक क्षमता हो, आँख में ताजगी हो, एक तेजी हो, जिसको देख ले वह सम्मोहित हो। अगर अपने आपमें क्षमता हो तो वह दूसरों को, शिष्यों को ज्ञान दे दे सकत है है की परीक्षा गुरू आप कर भी कैसे सकते, आपके पास कोई कसौटी नहीं कोई म मापदंड नहीं है उनसे बातचीत से, उनके पास बैठकर उनकी ज्ञान की चेतना से, उनके प्रवचन से और उनकी सामीप nello एक एहसास है, एक विश्वास है, अपने आप एक ग गर्व है कि हम उनके शिष शिष्य हैं यह गर्व छोटी चीज नहीं हैं, यह बहुत महान चीज है कि ऐसे व व्यक्तित्व के शिष्य हैं जिनमें हजारों-हजारों पोथियों का ज्ञान है है है है है है है है है है है आप कितने वेद याद करेंगे, कितने पुराण याद करेंगे, कितने शास्त्र याद करेंगे।
याद करने से क्या हो जायेगा आप क्रियमाण नहीं बइय पण इसीलियें ब्रह्मा ने अपने उस श्लोक की चौथी लाइन में कहा है कि यदि व व QIORE हो। ऐसे जीवन की कोई सार्थकता नहीं है। ऐसे जीवन का कोई अर्थ नहीं है। हमने चालीस साल बिता दिये ऐसे जीवन को हुये और हम रोग के अलावा कुछ पैदा ही नहीं कर पाये। चार बच्चे पैदा कर पाये और छः रोग पैदा कर पाये। मुठ्टी भर दवाइयां लेते हैं और जिंदा रहते हैं। और हमने जीवन में किया क्या? हमने स्वयं में ऐसा क्या किया कि दैदीप दैदीप्यमान बन सकें तेजस all'avore a जा नहीं सके तो आप धीरे-धीरे जरा युक्त हो जायेंगे, बूढ़े हो जायेंगे, मृत्यु को प्राप्त हो जायेंगे औरू आपके आपके पास से निकल जायेगा। आज आप मुझे मिलने आये, कल आप अपने घर चले जायेंगे हम बिछुड ज जायेंगे। फिर चार छः महीने बाद मिलेंगे, फिर बातचीत करेंगे और हम फिर बिछुड ज जायेंगे। फिर वह क्षण कब आयेंगा जब मैं आपको दैदीप्यमान बना सकूंगा और आपमें क्षमता आयेगी की दैदीप्यमान बनना है, अद्वितीय बनना है, श्रेष बनना है? फिर वह भावना आपमें आयेगी कब?
मैं आपको चैलेंज के साथ कहता हूँ कि ऐसा हो तब आपका जीवन है नहीं तो जीवन आपक आपका बेकार है, तुच्छ है, व्यर्थ है है और tiva आपके शरीर के अंदर कोई बटन नहीं कोई मशीनरी नहीं है कि बटन दब दबाऊं और आप तेजस्विता युक all'avore साधनाये आप दो सौ साल कर नहीं सकते। अगर मैं आपको अठारह घंटे एक प पर बैठने के लिये कहूं तो आप बैठ नहीं नहीं सकते सकते संभव नहीं है और उसके बाद भी आपका मन कितना शुद्ध है यह भी आवश्यक है क्योंकि अशुद्ध शरीर में शुद्ध मन होगा भी? जब हमारा शरीर दुर्गंध युक्त है तो सुगंध व्याप्त होगी भी कैसे कैसे कैसे कैसे? आपमें सुगंध कहाँ से आयेगी? बदबू में सुगंध प्रवाहित हो भी नहीं सकती केवल तत तत्व में जिंदा रहने से प all'avore अगर वैसा नहीं हो सकता तो जीवन बेकार है। हम रिटायर हो जायेंगे और मर जायेंगे। फिर ज्ञान कहां से प all'avore a फिर शुद्ध मन कहां से पैदा होगा? शुद्ध मंत्र आपको कहां से प्राप्त होगा?
गायत्री मंत्र का उदाहरण है, कहा गया है कि चौबीस अक्षरों की गायत्री मंत all'avore यह गायत्री मंत्र ही आप अधूरा पढ़ रहे हैं। वह पूर्ण मंत्र एक बहुत ही तेजस्वी मंत्र है और उसको आप तभी प्राप¨ ब्रह्मा ने उस श्लोक में बहुत महत्वपूर्ण बात कही ईही ऋगवेद से भी पहले ब्रह्मा ने यही बात कही। उसने कहा कि एक ही क्रिया है। यदि गुरू प्रसन्न हो तो वह हो सकता है।
गुरू प्रसन्न होता आपकी सेवा से, प्रसन्न होता है आपके स Schose जब आपके प्राण मेरे प्राणों से जुड़ जाये, जब आप हर क्षण यह चिंतन करें कि इस व्यक्ति को जिंदा रखना है, जब आप हर क्षण यह चिंतन करें कि मेरा जीवन चाहे बर्बाद हो जाये मगर इस व्यक्ति को स्वस्थ रखना है, जब आप हर क्षण यह चिंतन करें कि यह व्यक्ति तेजस्विता युक्त है, प्राणास्विता युक्त है मेरा शरीर तो छोटा सा शरीर है, हजार-हजार शरीर भी इनके आगे समर्पित हो सकतें हैं, यह व्यक्तित्व जिंदा रहे जब ऐसी भावना आपके अंदर आये तब आप मेरे शिष्य हैं, तब मैं आपका गुरू हूँ।
अन्यथा, मैंने आपको सब कुछ दिया ही दिया है मैं आपसे कुछ प्राप्त नहीं कर पाया, आपके धोती कुर्ते से, आपके हीरे के बटनों से, आपके हीरे की अंगूठियों से मैं प्रसन्न होने वाला नहीं हूँ और न मुझे आवश्यकता है। मैं तो टूक आपको कहता हूँ कि आप मेरे चरणों में पाँच पैसे भी नहीं चढ़ चढ़ायें, कुछ भी नहीं चढ़ाये। मुझे कुछ देने की जरूरत नहीं है आपको। मुझे इस बात की आवश्यकता नहीं है। इस बात की आवश्यकता है कि आप कुछ बनें। बार-बार मेरा जोर इसी बात पर है। यह शरीर सिद all'avore कोई आपको रोशनी नहीं मिल पाएगी। कोई आपको भटकाएगा और आप भटक जायेंगे। कुछ भी करिये फिर आप एक जगह दूस दूसरी जगह, तीसरी जगह भटकेंगे क्योंकि कुतर्क आपको बराबर भटकायेगा। मगर यह जीवन कृष्णमय कैसे बन पायेगा, राममय कैसे बन पायेगा, सुंगधमय कैसे बन पायेगा, प्राणमय कैसे बन पµ ऐसा आपके शरीर में विराट कैसे स्थापित हो पायेगा?
वह नहीं स्थापित हो पायेगा तो मूत मूत्र भरी देह आप मेरी चरणों में चढ़ायेंगे भी क्या? जब आप शरीर में गुलाब का इत all'avore मल मूत्र से भरा हुआ शरीर चढ़ा रहे हैं। गुरू के चरणों में क्या चढ़ाया जा सकता है? क्या है कुछ ऐसा जो चढ़ाया जा सकता है? चढ़ाया जा सकता है सुगंधित कमल, चढ़ाया जा सकता है सुगंधित जीवन, चढ़ाया जा सकता है प्राणस्विता युक्त जीवन और ऐसा जीवन जो जमीन से ऊपर उठकर साधना सम्पन्न कर सके और इसके लिये जो गुरू इतना ज्ञानवान है, उसको ही अपने शरीर में समाहित कर लें तो फिर शरीर अपने आप ही सुगंधित बन जायेगा। फिर दूसरी किसी चीज आवश आवश्यकता है ही, फिर किसी मंत्र की भी आवश्यकता नहीं है है
ब्रह्मा ने कहा है कि आगे की पीढि़यों में व्यक्ति इस बात को समझ नहीं पायेगा और मैं कह रहा हूँ कि ब्रह्मा ने यह कहा तो अपने समय में कहा, मेरे शिष्य इस बात को समझ सकते हैं, इस बात का एहसास कर सकते हैं कि हमें ऐसा घिसा पिटा जीवन जीना ही नहीं हैं। आज मृत्यु आ जाये तो आप मरने को तैयार हैं या फिर उच्च कोटि क क जीवन जीने के लिये तैयार है दोनों में से एक ही होना चाहिये, घिसा पिटा जीवन नहीं चाहिये।
हजारों की भीड़ में आप भी खड़े हैं मे मेरा गुरू बनना ही बेकार है, हजारों की भीड़ में आप अकेले दह दहाड़ते हुए दिखाई दें, आपका वक्षस आपका चेहा, आपकी तेजस तेजसा, एकदम आँखें दिख दिख दें दें आपका वकाषस आपकाथल आपका चेहा, आपकी तेजस तेजसा, तेजस एकदम दिख दिख दिख दें आपक आपकrigo लोग आपको देंखे तो मुड़-मुड़ कर देखें। तो फिर गर्व से मेरा सीना फैलेगा कि मे मेरा शिष्य है अपने आपमें शे शे की तरह व all'avore मैं जो कुछ हूँ वह तो मेरे गुरू की देन है। मुझे भी क्रिया करनी पड़ती है आपके में, माया करनी पड़ती है और प्राण तत्व में भी रहना पड़ता है। मुझे दोनों प्रकार का जीवन जीना पड़ता है और दो जीवन एक साथ जीना बड़ा कठिन है है मगर यह एक दूसरा ही प्रसंग है। जब संन्यास जीवन था तब कोई चिंता थी ही, बस देखा जायेगा, शिष्य है और हम, बाकी कोई परवाह ही नहीं थी थी थी थी थी थी नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं अब गृहस्थ जीवन में है तो गृहस्थ जीवन भी जीना है और सिद all'avore दोनों जीवन में सामंजस्यता लाने में अंदर कितना विलोड़न होगा। आप शायद इसकी कल्पना नहीं कर सकते।
ब्रह्मा ने कहा कि ये शिष्य नहीं समझ पायेंगे, ये लोग नहीं समझ समझ पाएंगे। उनको यह ज्ञान देना ही नहीं है और मैं ह रहा हूँ कि वह ज्ञान काम का भी क all'avore यहां बीच में आकर ज्ञान देना चाहिये यह उनका धर्म है यह उनका कर्तव्य है ऐसे कंदराओं में छिपकर बैठने की जरूरत नहीं है। वह नहीं समझ पाये यह उनका दुर्भाग्य है, वे समझ पाये यह उनका सौभाग्य है
ब्रह्मा ने कहा हम उन मंत्रें के माध्यम से, चेतन A causa di ciò che è successo, di ciò che è successo, di ciò che è successo Nel caso in cui si trattasse di un'impresa, di una persona, di un'altra मान प्रखर और तेजस्वी, हजारों-हजारों सूर्य के सम ान तेजस्विता वाला बना सकते हैं। एक सूर्य नहीं हजार सूर्य के समान बना सकते हैं। सारे शरीर से एक सुगंध प्रवाहित हो। हम चलें और एक मील दूर तक सुगंध प्रवाहित हो, एहस ास हो सके परिवार को, समाज को और हमको खुद को और उसक े लिये क्रिया है अपने आपमें, शरीर में पूर्णता के साथ गुरू को स्थापित कर देना अंदर उतार देना और अ ंदर गुरू तभी उतर सकेगा जब मल मूत्र युक्त नहीं होगा जीवन। पवित्र होने पर ही अंदर उतर सकेगा वह। गंदगी में वह नहीं बैठ सकेगा।
अंदर उतरना गुरू का कर्तव्य है, गुरू का धर्म है। ऐसा होने पर ही जीवन में सिद्धि और सफलता प्राप्त हो सकती है है है ऐसा होने पर ही भूमि से ऊपर उठकर साधनाएं सम्पन्न हो सकती हैं हैं हैं ऐसा होने पर ही अपने आपमें सौंदर्य निखरता है। ऐसा होने पर ही सारे देवी देवता ह Schose मैं स्वयं देवता हूं। मैं देवताओं को प्रणाम करता हूँ इसका मतलब यह नहीं कि मैं एक घटिया व्यक्तित्व हूँ, मैं ओछा व्यक्तित्व नहीं हूँ, उन देवताओं के समक्ष खड़ा रहने वाला व्यक्तित्व हूँ और मैं हूँ यह बहुत बड़ी बात नहीं है आपको भी वैसा उच्चकोटि का व्यक्तित्व बना दूं यह बड़ी बात है और मैं ऐसा ही बनाना चाहता हूँ आपको। यह हो सकता है गुरू रक्त रूपेण स्थापन क्रिया द्वाााा शरीर का कोई भाग नहीं है जहां nessuna मैंन गुरू हृदस्थ धारण प all'avore a एक ही बार में एक ही झटके में सब प प्राप्त हो जाये यह जीवन की श्रेष्ठता है जीवन की पूर्णता है, जीवन उच उच्चता है है है है है है है है है है है है है है है है उच उच उच उच उच उचiato उच उचendere
जो मंत्र इस गुरू रक्त स्थापन क्रिया में गुरू बोलता है या उच्चारण करता है वह फुल स्केच के चौदह पंद्रह पृष्ठों में एक मंत्र आता है और वह कही पुस्तकों में वर्णित नहीं है क्योंकि वह मंत्र ही नहीं है, पूर्ण स्वामी सच्चिदानंद और समस्त योगी, यदि संन्यासियों के साथ हृदय में गुरू तत्व स्थापन की एक उच्च क all'avore a फिर पाँच इंच पांव उठेंगे और धीostra तब आप समझ पायेंगे की यह मंत्र और यह क्रिया कितनी तेजस्वी है है
इसके लिये तीस दिन बहुत होते हैं। इक्कीस बाईस दिन बाद ही लगतµi जाती है और निकल जाये तो समझें कि आप जमीन से ऊपर उत आज के युग में यह सब असंभव लग सकता है। परंतु यह एक प्रमाणिक क्रिया है जिसे आप गुरू के माध्यम से सम्पन्न कर सकते हैं, जिसे आप गुरू से प्राप्त कर अपने जीवन को और की उच्चता श्रेष्ठता ओर अग्रसर कर सकते हैं और गुरू वह है जो आपको हर प्रकार का ज्ञान दे सके, हर क्षेत्र का चिंतन दे सके, हर प all'avore al गुरू तो हर चीज देने में सक्षम है, आवश्यकता इस बात की है कि आप प्राप्त करने के योग योग बन सकें सकें सकें सकें सकें सकें सकें सकें यह गुरू का धर्म है कि वह दे, कुछ छिप छिपाये नहीं, परन्तु यह भी आवश्यक है कि शिष्य उसे प्राप्त कर सकें, आत्मसात कर सके।। सके सके सके
करीब पंद्रह साल पहले मैं हरिद्वार गया था, एक भ भर हरिद्वा रहा था। पत्नी ने कहा कि कल्पवास करते हैं। कल्प वास का अर्थ है कि महीने भर तक गंगाजी के तट पर रहना, गंगाजी के पानी से आटा गूंथना, खुद के हाथ से रोटी बनाना और खाना या पत्नी के हाथ से रोटी बनाना और खाना और वहीं कुटिया बनाकर के रहना तो हमने कहा चलिये कल्पवास कर लेते हैं। वहां पर एक सन्यासी था। साधू, संन्यासी वहाँ बहुत भटकते रहते हैं।
मगर वह लड़का बहुत समझदार था, हट all'avore परिचय हो गया पांच सात दिन और सेवा यह करता कि कभी सब सब्जी लेकर आ जµ हम महीने भर वहां रहे और महीने भर के बाद मैंने ही कहा कि तुम शायद मुझे पहचानते नहीं हो उसने कहा-गुरूजी मैंने आपको पहचानने के बाद ही सेवा शुरू की है, पहले से मुझे मालूम था आप कौन, इसलिये मैं पागल नहीं गय गया-बीता नहीं हूं हूं।। हूं हूं हूं हूं हूं हूं हूं हूं हूं हूं हूं हूं हूं हूं हूं हूं हूं हूं हूं हूं हूं हूं हूं हूं हूं हूं हूं हूं हूं tivamente मैं घुटा हुआ हूँ। वह बिहार का था, कहीं का। मैंने कहा-तुम बिहारी हो। उसने कहा-हंड्रेड परसेंट बिहारी हूँ। तो मैं समझ गया कि ऐसी बात कोई कह ही नहीं सकता। मैंने कहा- चलो कोई बात नहीं, होशियार हो तुम। तुमने सेवा की क्या सिखाऊं तुम्हें। तुम जो भी कहो, मगर एक ही विद्या सिखाऊंगा तुम्हेंंंं
उसने कहा- मैंने तीस दिन सेवा की आप एक ही विद्यि साासातग्यि मैंने कहा- एक ही सिखाऊंगा। उसने कहा- मैं महीने भर बाद आपके घर आकर सीख लूं तो। मैंने कहा- महीने भर बाद आ जाना। उसके बाद तीन चार महीने तक वह आया ही नहीं। मैं भी भूल गया, मैं भी दूसरे कामों में लग गया। एक दिन वो जोधपुर पहुँच गया। मैंने सोचा इसे कहीं देखा है, मैं उसे कुछ भूल सा गथााथ मैंने कहा- मैंने तुम्हें कहीं देखा है, साधू हो तुह? उसने कहा- गुरू जी महीने भर तक मैंने आपकी सेवा की सेवा की त आपने कल्पवास किया था।
मैंने कहा- हाँ, हाँ ठीक बिलकुल सही बात है, बोलो क्या चाहते हो तुम? उसने कहा- गुरूजी कुछ नहीं चाहता हूँ, बहुत मर्द हूँ, ताकतवान हूँ, मगर मैं शमशान जागरण करना चाहता हूँ कि कैसे कैसे नाचते हैं हैं हैं प प कैसे कैसे कैसे कैसे कैसे कैसे कैसे कैसे कैसे कैसे कैसे कैसे कैसे हैं हैं हैं हूँ हूँ कि कैसे कैसे कैसे नाचते हैं हैं हैं प प प कैसे कैसे कैसे कैसे कैसे कैसे कैसे कैसे कैसे कैसे कैसे कैसे कैसे कैसे कैसे कैसे कैसे कैसे कैसे कैसे कैसे कैसे कैसे कैसे कैसे कैसे कैसे कैसे कैसे कैसे कैसे कैसे कैसे कैसे कैसे कैसे कैसे कैसे भूत भूत कैसे कैसे कैसे कैसे कैसे कैसे कैसे कैसे कैसे कैसेQuma बस एक बार पिशाच किसी के पीछे लगा दिया तो रोयेगा। जिंदगी भर। किसी को भूत लगा दिया तो मरेगा। पहले भूत लगा दूंगा, फिर पांच हजार रूपये लेकर थताांतांतां
मैंने कहा- तू मुझसे भी बहुत ऊँचा है, मगर यह विद्या तो मुझे ही नहीं नहीं आती उसने कहा- नहीं गुरू जी आपको आती है। आती है और मुझे सिखानी पड़ेगी। बस भूत लगाऊंगा और पैसे कमाऊंगा और वापस भूत उतार दूंगा, ठीक कर दूंगा। चमत्कार भी हो जाएगा और कमा भी लूंगा। अब मैं वचनबद्ध अलग। हाँ भरू तो खोटा, न कहु तो खोटा। मैंने कहा कल बताऊंगा। उसने कहा- गुरू जी कल आप मना कर देंगे। आप बस बता दीजिये कि कल सिखाऊंगा या महीने भर बाद सिख सिखाऊंगा। आप बता दीजिये मैं यहां बैठा हूँ।
बैठा रहा, रात भर बैठा रहा, दूसरे दिन भी बैठ बैठा रहा, शाम को बैठ बैठा रहा। अगले दिन पत्नी ने कहा- यह ब्राह्मण है, संन्यासी है भूखा मर रहा है, कितना पाप लगेगा हमको, सेवा की है, आपने अपने मुंह से से बोला है कि सिखाऊंगा तो तो सिख दीजिये दीजिये इसे इसे मैंने कहा- सिखाना तो ठीक है, मगर इसने दूसा पाइंट एक अलग बताया है कि पहले भूत लगा दूंगा, फिर वह नाचेगा, कूदेगा और मंत्र से उतार दूंगा और दो हजार रूपया खर्चा बतॗ दू दया यह गड़बड़। मैंने उसे बताया कि तू यह नहीं करेगा। पर वह कहता है कि फिर तो सीखना ही बेकार है।
फिर वह पीछे पड़ा रहा तो मैंने उससे कहा- मैं तुझे भूत भूत लगाना भगाना नहीं सिखाऊंगा। बस तुझे जो भूतों का नृत्य देखना है, शमशान जागरण देखना है वह दिखा दूंगा। वह बोला- गुरूजी बस महीने में दो तीन मुझे करने दीजिये उससे मेरा काम चल जायेगा, दो तीन केस में प पार हो जाऊंगा। मैंने कहा- ऐसा कुछ मैं मैं सिखाता मगर तू आया है तो तुझे शमशान जागरण दिखा अवश्य दूंगा। जोधपुर में शमशान है, घर से, करीब सात आठ किलो मीदर र र पहले मैंने सोचा भी कि इसे शमशान ले जाऊंगा नहीं ले जाऊं मगर उसका शरीर बहुत मजबूत था, बहुत ताकतवान थ। एम्बेस्डर गाड़ी थी मेरे पास तो गाड़ी में ले गया उसे शमशान। वहां जो डोम था वह परिचित था कि गुरूजी कभी-कभी शमशान साधना करने आते है है पहले करता था, अब तो छोड दिया, पंद्रह साल हो गए। गाड़ी मैंने पार्क की शमशान के बाहर और उसे कहा चलो अंदर चलो चलो
चले अंदर। वहां मैने एक घेरा बनाया, बीच में बिठµi पर डरने की बात नहीं है। भूत होंगे, प्रेत होंगे, कोई अट्टहास करेंगे, किसी सींग होंगे और तुम ड डर जाओगे तो बहुत मुश all'avore कुछ भी झपट्टा मारे, तुम घबराना नहीं, न मेरा कुि गाा मैंने कहा- बस तू अपना ध्यान रखना। उसने कहा- गुरू जी आप चिंता मत करिये आप चिंता बहुत करते हैं, थोड़ा टेंशन फ्री रहिये गुरू जी
मैंने सोचा चलो ठीक है। उसके चारों तरफ घेरा बना दिया घेरे में मैं बैठ गय गया और उसे भी बैठा दिया दक्षिण दिशा की ओर मुंह करके। उसके बाद मैंने शमशान ज Schose तो ज्योहि शमशान जागरण प all'avore a कर रहा है, किसी के सिंग निकले है, किसी के दांत निकइ मेरा तो रोज का अभ्यास था, संन्यास जीवन में मैं थµ पर उसने तो दो चार मिनट देखा फिर आंखें बंद कर ली। मैंने उधर ध्यान ही नहीं दिया कि मजबूत आदमी, हट्टा कट्टा है, मुझे कोई चिंता की बात ही नहीं है लेकिन तीन मिनट हुए नहीं कि खट्ट-खटebट, खट्ट-खट्ट आवाज होने लगी लगी लगी मैंने सोचा यह आवाज कहां से आ रही है? उधर देखा तो थर-थर कांप रहा है, दांत बज रहे हैं और हा हा हा हा कर रहा है। मैंने सोचा-मर जायेगा यह, एक संन्यासी की हत्या हो जायेगी और बहुत गड़बड़ हो ज जायेगी।
मैंने फटाफट शमशान को बंद किया उसे जगाया। मैंने कहा क्या हुआ अब तो उठ जा। वह चिल्लाया- अरे भूत, अरे भूत, अरे भूत- कह कहा- अरे भाई यहां भूत कुछ नहीं, हो गया सब सब वह बस कांपता रहा और बोलता रहा हर्र, हर्र, हर्र, हर्र— मैंने उसे उठाया, कंधे पर डाला और पीछे कार में ड डाला। डाल कर घर पर लाया, रास्ते भर चिल्लाता रहा- भूत आया, आया, आया हुर्र हुर्र—। मैंने सोचा यह तो हट्टा-कट्टा था, यह क्या गड़बई़ ह? माता जी ने कहा यह क्या लाये। मैंने सिखाया। दो मिनट ही हुये थे, शमशान जागरण आरंभ ही हुआ था उसके पहले इसके दांत ही टूट गये, कांपते हुये
अब उसको हिलाऊं, डुलाऊं, पानी उसके ऊपर डाला, जूता सुंघाया मिर्ची की धूनी दी दी वह उठा और बोला- भूत, भूत, हुर्र, हुर्र— मैंने कहा- यह मर जायेगा, मुश्किल हो जायेगी। मैंने कहा- भूत वूत कुछ नहीं है, यह शमशान नहीं है मेरा घर है, अब चिंता मत कर तेरे लिये दूध लाया हूँ, केसर डाल कर लाया हूँ अब गुरू जी तुझे अपने हाँथो से पिलायेंगे, अपना सौभाग्य देख। कितना तू महान शिष्य मुझे मिला, बहुत कृपा की तूनेत कृपा की तूनेत करीब आधे घंटे, पौने घंटे के बाद उसने आँख खोली- मैं कहां हूँ? कहां हूँ? मैंने कहा तू मेरे घर में हैं। तू मेरे पास बैठा है। वह बोला- भूत आया, भूत आया।
मैंने कहा- भूत वूत कुछ नहीं आया, तू देख, यह मेरी पत्नी बैठी है तू देख देख लें लें पंद्रह बीस मिनट आँखें फाड़-फाड़ कर देखता रहा, बड़ी देर के बाद वह संभला, उसे दूध पिलाया, कंबल ओढ़ाया। वह बोला- यह क्या हुआ?
मैंने कहा- कुछ नहीं हुआ। यह तो शुरूआत हुई थी, अब जब शुरूआत में यह खेल तो अंत कह कहां होगा। उसके बाद छोड़ ही दिया मैंने शमशान जागरण करना खया जागरण करना खया ाखा जैसा कि मैंने कहा कि गुरू तो हर चीज को तैयार बैठा है, आवश्यकता इस बात की है कि आप लेने लिए तैयार है या नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं अगर गुरू दे और आप ले नहीं पाये, आत्मसात नहीं कर पाये, तो सब बेकार है, नगण्य है आप लें और पूरी क्षमता के साथ लें यह आवश्यक है। गुरू तो साधनाओं का भंडार है, साधनाओं का सागर है, आप कितना ले पाये यह आप पर निर्भर है। और गुरू रक्त स्थापन क्रिया एक ऐसी क्रिया है, एक ऐसा चिंतन है, एक ऐसी साधना है जिसके द्वारा शिष्य अपने भीतर का सब मल, मैल, ओछापन, न्यूनता समाप्त करता हुआ पूर्णता की ओर अग्रसर हो सकता है और अगर वह इस तेजस्वी क्रिया को पूर्णता के साथ आत्मसात कर लेता है तो निश्चय ही वह जमीन से पांच छः फूट ऊपर उठकर शून्य में आसन लगा सकता है और ऐसी उच्च स्थिति में सभी साधनाओं में सफलता प्राप्त कर सकता है। क्योंकि मैंने बताया कि जमीन पर बैठकर साधना में पूर्णता प्राप्त हो ही नहीं सकती सकती जमीन से ऊपर उठकर ही सभी सिद all'avore गुरू तो हर क्षण आपके साथ है अगर आपकी श्रद्धा है त वह तो हर क्षण आपको सही मार्ग पर गतिशील करने को तत्पर है और मैं आपको हृदय से आशीर्वाद देता हूँ कि मैं प्रतिक्षण आपके साथ हूँ हर सेकेण्ड आपके साथ हूँ, जीवन के प्रत्येक क्षण का मैं रखवाला हूँ, मैं आपके जीवन की रक्षा करूंगा, उन्नति करूंगा और आप भी जीवन में उच्चता प all'avore a
परम् पूज्य सद्गुरूदेव
Signor Kailash Shrimali
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