प्रारम्भिक काल में भौतिक प्रगति का आधार था आा௶्ाथक् धीरे-धीरे आवश्यकता का स्थान सुविधा और उपयोग िेे ालेे ा वर्तमान में भोगवाद की परिभाषा मानव जीवन के स्वास्थ्य की भी सुविधा, सम्पन्नता व भोग की प्रवृत्ति के समक्ष विवश कर दिया है और वह स्वास्थ्य की परवाह न करते हुये उपभोग के लिये सतत प्रयत्नशील है। विडम्बना यह है कि मात्र सुविधा एवं उपभोग न नाम पर जीवन एवं स all'avore
यदि पर्यावरण से सम all'avore सुखी एवं स्वस्थ जीवन के लिये पर्यावरण का महत्वपूर्ण स्थान है है पूर्ण स्वास्थ्य जीवन के लिये वायु, जल, काल एवं पंचमहाभूतों के गुणों में कमी होना मानव के लिये, विपदा के समान है है
Di età in età il piede della giustizia declina gradualmente.
E il piede dei modi dell'ente dissolve così il mondo.
सतयुग से लेकर आने वाले युगों में धार्मिक लोगों कमी कमी है है, जिसके कारण पंचमहाभूतों के गुणों में भी कमी आई औ और धीरे-धीरे यह स्थिति विनाशकारी बन है है।।। है है है है है है है ईश्वरीय प all'avore a प्रकृति एवं मनुष्य परस्पर एक-दूसरे के पूरक है। ईश्वर द्वारा प्राप्त प्रकृति प all'avore a
सामान्य रूप से धर्म का सरलतम एवं अन all'avore गीता में स्पष्ट nessuna अपितु, निष्ठा पूर्वक एवं बिना इच्छा के कर्तव्य पालन करने वाला ही योगी और सन्यासी कहलाने योग्य है है
कर्तव्य पालन का सामाजिक स all'avore a कर्तव्य पालन से प्राणियों के हितों रक्षा होती है, समाज में शारीरिक एवं बौद्धिक शक्ति क सदुपयोग होत है, जिससे सभी प्राणियों का सुख सुख-पूरbbiamo और सभी प्राणियों की सामूहिक जीवन शक्ति पर्यावरण के तत्वों के पोषण में सह सहायक होती है
अहिंसा का पालन प्राणियों के जीवन बढ़ बढ़ाने में श all'avore इतिहास के कई उदाहरणों से यह सिद्ध होता है कि सामाजिक दुराचार, असन्तोष, द्वेष आदि भावनाओं क Quali
शास्त्रों ने अधर्म को पर्यावरण-प्रदुषण का मूल कारण माना है अधर्म पर्यावरण को दो प्रकार से प्रभावित करता है, प all'avore प्रत्येक व all'avore सामाजिक व्यवस्था का पालन करना, उस व all'avore a प्रकृति के नियमों का पालन, उसके में अवरोध उत all'avore
धर्म के तीनों घटकों के पालन में विसंगति अध अधर्म कहा गया है है प्रथम एवं द्वितीय प्रकार का अधर्म पर्यावरण को परोक्ष रूप में प्रभावित करता है। जबकि प्रकृति के प्रति अधर्म प all'avore
धर्म पालन की कमी के कारण पंच महाभूतों के गुणों में कमी आती है, जिसके परिणाम स all'avore वन सम्पदाओं का संरक्षण व वृद्धि के अभाव के कारण ही ऋतुओं के निश निश्चित कʻè
वर्तमान में प्रकृति के नियमों की अवमानना हर प्रकार से की जा रही है है जिसके कारण देश में विध विध्वंसकारी परिणाम देखने को है है, केदारनाथ और नेपाल के विनाशकारी प्राकृतिक प्रकोप आज भी हमारे मानस पर भयर भयावह स सiché इसके मूल में पर्यावरण के प all'avore जिसका परिणाम आये दिन हमें बाढ़, सुखा, भूकंप, तूफान के रूप में देखना पड़ता है है
अनेक सामाजिक और प्रशासनिक संगठन पर्यावरण के प्रति जनमानस को जागरूक करने के लिये प्रयत्नशील है, परन्तु जिस रूप में प्रत्येक व्यक्ति को पर्यावरण के प्रति अपने कर्तव्यों का निर्वाह करना चाहिये, वह नहीं हो पा रहा है। इसका सीधा कारण उपयोग करने की प्रवृति ही है, यदि लोग उपयोग को आवश्यकता में परिवर्तन व साथ ही पुनः प्राकृतिक वनस्पति वृद्धि के लिये नियमित क्रियाये करे तो, ऐसी विनाशकारी घटनाओं को कम किया जा सकता है। साथ ही व्यक्ति को धार्मिक होना होगा। क्योंकि जब तक व्यक्ति धार्मिक नहीं होगा सकारात्मक ऊर्जा का विकास और संरक्षण नहीं प पायेगा। वर्तमान की घटनाओं के मूल में धर्म का विकृतस्वर।हरै
जिसके कारण नकारात्मक ऊर्जा का सृजन हुआ, परिणाम स्वरूप सम all'avore a इस हेतु हर वर्ष प्रत्येक व all'avore a और इसे धर्म स्वरूप कर्तव्य मानते हुये करना होगााा
Nidhi Shrimali
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