जो भी जीवित है, वह आशा से जीवित है और जो भी मृत है, वह निराशा से मृत है है यदि हम छोटे बच्चों को देखे, जिन्हें अभी समाज, शिक्षा और सभ्यता ने विकृत नहीं किया है, तो बहुत जीवन जीवन-सूत्र हमें दिखाई पड़ेंगे पड़ेंगे सबसे पहली बात दिखाई पड़ेगी-आशा, दूसरी बात-जिज्ञासा, और तीसरी बात-श्रद्धा। निश्चय ही ये गुण स्वाभाविक हैं। उन्हें अर्जित नहीं करना होता है। हाँ हम चाहे तो उन्हें खो अवश्य सकते है। फिर भी हम उन्हें बिल्कुल ही नहीं खो सकते, क्योंकि जो स्वभाव है वह नष नष नहीं होता और जो स्वभाव नहीं, वह भी केवल वस वस्तर ही बन सकत है, अंतत अंतत कभी कभी कभी कभी कभी अंतत अंतत अंतत अंतत अंतत अंतत अंतत अंतत अंतत अंतत अंतत अंतत अंतत अंतत
इसलिए मैं कहता हूँ कि वस्त्रों को अलग करों और उसे देखो जो तुम स स्वयं हो हो सब वस्त्र बंधन है और निश्चय ही परमात्मा निर्वस।्ा Vuoi sapere cosa vuoi fare? मैं उन tiva उन्हें छोड़ कर तो बहुत से व्यक्ति निर्वस्तर हो जाते है और फिर वही बने रहते है जो वस्त्रों में, कपास में थे थे थे थे थे थे थे थे थे थे थे थे थे थे थे थे थे में में में में में में में में में में में मेंiato में tiva कपास कमजोर धागे नहीं, निषेधा amici उन्हें जो छोड़ता है वही उस निर्दोष नग्नता को उपलब्ध होता है है
Qual è il tuo problema? Qual è il tuo problema? और क्या तुम्हें ज all'avore a निराशा पाप है, क्योंकि जीवन ध धारा में निश्चय ही ऊरbbiamo निराशा प Schose यह शाश्वत नियम है कि जो ऊपर नहीं उठता, वह गिर जाता है और जो आगे नहीं बढ़ता उसको पीछे धकेल दिया जाता है है मैं जब किसी को पतन में जाते देखता हूँ ज जानता हूँ कि उसने पर्वत-शिखरों की ओर उठना बंद कर दिया। पतन की प्रक्रिया विधेयात्मक नहीं हैं घाटियों में जाना, पर्वतों पर न जाने का ही दूसरा पहलू है। वह उसकी ही निषेध छाया है और जब तुम्हारी आंखों में निराशा देखता हूँ तो स्वाभाविक ही है कि मेरा हृदय प्रेम, पीड़ा और करूणा से भर जाता है, क्योकि निराशा मृत्यु की घाटियों में उतरने का प्रारम्भ है।
आशा सूर्यमूखी के फूलों की भांति सूर्य की ओर देखती औ और निराशा? वह अंधकार से एक हो जाती है। जो निराश हो जाता है, वह अंतर्निहित विराट शक्ति के प्रति सो जाता है और उसे विस्मृत कर देता है जो जो है है, और जो वह हो सकत है है बीज जैसे भूल जाए कि उसे क्या होना है और मिट all'avore वह उच्चता की और बढ़ना ही भूल गया और परमात्मा, गुरू को दोषी ठहराने लगा है
यह समाचार उतना दुखद नहीं है जितना कि आशा का मर नाा क्योंकि आशा हो तो परमात्मा को पा लेना कठिन औ और यदि आशा न हो तो परमात्मा के होने कोई भेद नहीं होता। आशा का आकर्षण ही मनुष्य को अज्ञात की यात्रा पर ले जाता है है आशा ही प्रेरणा है जो उसकी सोई हुई शक्तियों को जगाती है और उसकी निष्क्रिय चेतना को सक all'avore a यह भी कि आशा ही समस्त जीवन-आरोहण का मूल प्राण है? पर आशा कहाँ है? मैं तुम्हारे प्राणों में खोजता हूँ वह वहाँ निराशा की राख के सिवाय और कुछ भी नहीं मिलता। Che cosa vuoi fare con te? निश्चय ही तुम्हारा यह जीवन इतना बुझा हुआ है कि मैं इसे जीवन भी कहने में असमर्थ हूँ मुझे आज्ञा दो कि कहू कि म मर गए हो! असल में तुम कभी जीए ही नहीं। तुम्हारा जन्म तो जरूर हुआ था, लेकिन वह जीवन तक नहीं पहुँच सक सका! जन्म ही जीवन नहीं है। जन्म मिलता है, जीवन को पाने के लिये।
इसलिए जन्म को मृत्यु छीन सकती, लेकिन जीवन को कोई भी मृत्यु छीन नहीं सकती सकती जीवन जन्म नहीं है और इसलिए जीवन मृत्यु भी नहीं है जीवन जन्म के पूर्व है और मृत्यु के भी अतीत है। जो उसे जानता है वही केवल भय और दुखों के ऊपर उई पा।। किन्तु जो निराशा से घिरे है, वे उसे कैसे जानेंगे? वे तो जन्म और मृत्यु के तनाव में ही समाप्त हो जाहता जीवन एक संभावना है और उसे सत्य में परिणित करने के लिए गुरू साधना चाहिए। निराशा में साधना का जन्म नहीं होता, क्योंकि निराशा तो बोझ है और उसमें कभी भी किसी का जन्म नहीं होता। इसीलिए मैंने कहा कि निराशा आत all'avore
A causa di ciò che è successo, ho avuto un problema con te stesso. उसे तुम अपने ही हाथों से ओढ़े बैठे हो। उसे फेंकने के लिए और कुछ भी नहीं करना है सिवाय तुम उसे फेंकने को राजी हो जाओ। तुम्हारे अतिरिक्त और कोई उसके लिए जिम्मेवार नहहै मनुष्य जैसा भाव करता है, वैसा ही हो जाता हैं। उसके ही भाव उसका सृजन करते है। वही अपना भाग्य-विधाता है। स्मरण रहे कि तुम जो भी हो वह तुमने ही अनंत बार चाहा है, विचार और उसकी भावना की है, देखो, स्मृति में खोजो, तो निश्चय ही जो मैं कह रहा हूँ उस सत्य के तुम्हें दर्शन होंगे और जब यह सत्य तुम्हें दिखेगा तो तुम स्वयं के आत्म-परिवर्तन की कुंजी को पा जाओगे। अपने ही tiva वस्त्रों को पहनने में भी जितनी कठिनता होती है भी उन उन्हें उतारने में नहीं होती है, क्योकि वे तो है भी नहीं नहीं सिवाय तुम्हारे ख all'avore हम अपने ही भावों में अपने ही हाथों से हो ज जाते है, अन्यथा वह जो हमारे भीतर है, सदैव स स्वतंत्र है।
क्या निराशा से बड़ी और कोई कैद है ? नहीं ! क्योंकि पत्थरों की दीवारें जो क कर सकती, वह निराशा करती है दीवारों को तोड़ना संभव है, लेकिन निराशा तो मुक्त होने की आकांक्षा को ही खो देती है है निराशा से मजबूत जंजीरे भी नहीं, क्योंकि लोहे की जंजीरे तो मात्र शरीर को ही बांधती हैं, निराशा तो आत्मा को भी बांध लेती है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है tivamente
निराशा की इन जंजीरों को तोड़ दो! उन्हें तोड़ा जा सकता है, इसीलिए ही मैं को कह रहा हूँ हूँ उनकी सत्ता स्वप्न सत्ता मात्र है। उन्हें तोड़ने के संकल्प मात्र से ही वे टूट जीांत जैसे दीये के जलते ही अंधकार टूट जाता है, वैसे संकल संकल्प के जागते ही स स QIO टूट ज ज ज औ और फिर निराशा के खंडित होते ही जो आलोक चेतन चेतना घे घेर है है है है है है ही ही uire
निराशा स्वयं आरोपित दशा है। आशा स्वभाव है, स्वरूप है। निराशा मानसिक आवरण है, आशा आत्मिक आविर्भाव। मैं कह रहा हूँ कि आशा स्वभाव है। क्यों? क्योंकि यदि ऐसा न हो तो जीवन-विकास की ओर सतत् गति और आरोहण की कोई संभावना न रह जाए। बीज अंकुर बनने को तड़पता है, क्योंकि कही प्राणों के किसी अंतरस्थ केंद्र पर आशा का आवास हैं प प्राण अंकुरित होना चाहते है औ औ जो भी भी है वह वह पूiché
अपूर्ण को पूर्ण के लिए अभीप्सा आशा के अभाव में कैसे हो सकती है? और पदार्थ की परमात्मा की ओर यात्रा क्या आशा के बिना संभव है? सत्य को पाने को, स्वयं को जानने को स्वरूप में प all'avore a परमात्मा की उपलब्धि के पूर्व यदि तुम्हारे चरण कहीं भी रूकें तो जानना कि निराशा का विष कही कहीं तुम all'avore उससे ही प्रमाद और आलस्य उत्पन्न होता है।
संसार में विश्राम के स्थलों को ही प्रमादवश गंतव्य समझने की भूल हो ज जाती है परमात्मा के पूर्व और परमात्मा के अतिरिक्त और कोई गंतव्य नहीं है है इसे अपनी समग्र आत्मा को कहने दो। कहने दो कि परमात्मा के अतिरिक्त और कोई चरम विश all'avore
परमात्मा के पूर्व जो रूकता है, वह स्वयं का अपमान करता है, क्योंकि वह जो हो सकता था, उसके पूर्व ही ठहर गयर होता हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं संकल्प और साध्य जितना ऊंचा हो, उतनी गहराई तक स्वयं की सोयी शक्तियां जागती हैं साध्य की ऊंचाई ही तुम्हारी शक्ति का परिम है है है आकाश को छूते वृक्षों को देखो! उनकी जड़ें अवश्य ही पाताल को छूती होगी। तुम भी यदि आकाश छूने की आशा और आकांक्षा से आंदोलित हो जाओगे तो निश निश ही जµ
जितनी तुम्हारी अभीप्सा की ऊंचाई होती, उतनी तुम तुम्हारी शक्ति की गहराई भी होती है है क्षुद्र की आकांक्षा चेतना को क्षुद्र बनाती है। तब यदि मांगना ही है तो परमात्मा को मांगो। वह जो अंततः तुम होना चाहोगे, प all'avore क्योंकि प्रथम ही अंततः अंतिम उपलब्धि बनता है। मैं जानता हूँ कि तुम ऐसी परिस्थितियों में निरंतर ही घिरे हो जो प्रतिकूल हैं और परमात्मा की ओर उठने से रोकती है है है लेकिन ध्यान में रखना कि जो परमात्मा की ओर उठे, वे भी कभी ऐसी ही परिस्थितियों से घिरे थे परिस्थितियों का बहाना मत लेना, परिस्थितियां नही, वह बहाना ही असली अवरोध बन जाता है परिस्थितियां कितनी ही प all'avore लेकिन ध्यान में रखना कि जो परमात्मा की ओर उठे, वे भी कभी ऐसी ही परिस्थितियों से घिरे थे
परिस्थितियों का बहाना मत लेना। परिस्थितियां नहीं, वह बहाना ही असली अवरोध हई जसली अवरोध हई जाााा परिस्थितियां कितनी ही प्रतिकूल हो, वे प प्रतिकूल कभी भी नहीं हो सकती हैं कि परमात्मा के मार्ग में बाधा बन जावे! वैसा होना असंभव है। वह तो वैसा ही होगा जैसे की कोई कि अंधेरा इतना घना है कि प्रकाश के जलाने में बाधा बन गया है है
अंधेरा कभी इतना घना नहीं होता और न प परिस्थितियां इतनी प all'avore तुम्हारी निराशा के अतिरिक्त और कोई बाधा नहीं हैं वस्तुतः तुम्हारे अतिरिक्त उसे बहुत मूल्य कभी मत दो आज है और कल नहीं होग होगा। जिसमें पल-पल परिवर्तन है उसका मूल्य ही क्या? परिस्थितियों का प्रवाह तो नदी की भांति है। उसे देखो, उस पर ध्यान दो, जो नदी ध धार में भी अडिग चट्टान की भांति स्थिर है वह कौन है? वह तुम्हारी चेतना है, वह तुम्हारी आत्मा है, वह तुम अपने वास्तविक स्वरूप में स्वयं हो! सब बदल जाता है, बस वही अपरिवर्तित है। उस ध्रुव बिंदु को पकड़ों और उस पर ठहरों।
लेकिन तुम तो आंधियों के साथ कांप रहे हो और लहरों के साथ थरथरा रहे हों हों क्या वह शांत और अडिग चट्टान तुम्हें नहीं दिखाई पड़ती है जिस पर तुम खडे़ हो और तुम? उसकी स्मृति को लाओ। उसकी ओर आंखे उठते ही निराशा आशा में परिणत हो जाती है और अंधकार आलोक बन जाता है स्मरण रखना कि जो समग्र हृदय से, आशा और आश्वासन से शक्ति और संकल्प से, प्रेम और प्रार्थना से, स्वयं की सत्ता का द्वार खटखटाता है व कभी भी असफल नहीं लौटता है, क्योंकि प्रभु के मार्ग पर असफलता है ही नहीं। प Schose
वस्तुत प्रभु की उपलब्धि का द्वार कभी बंद ही नहहू हम अपनी ही निराशा में अपनी ही आंख क कर लेते, यह बात दूसरी है निराशा को हटाओं और देखो, वह कौन सामने खड़ा है! क्या यही वह सूर्य नहीं है जिसकी खोज थी ? क्या यही वह प्रिय नहीं है जिसकी प्यास थी ? क्राइस्ट ने कहा है, मांगो और मिलेगा। खटखटाओ और द्वार खुल जाएंगे। वही मैं पुनः कहता हूँ वही क्राइस्ट के कह कहा गया था, वही मेरे बाद भी कहा जाएगा। धन्य हैं वे लोग जो द्वार खटखटाते है! और आश्यर्च है उन लोगों पर जो प्रभु के द्वार पर ही खड़े है और आंख बंद किये औ और रो रहे है!
साधक की यात्रा जिन दो पैरों से होती है, उन दो पैरों की सूचना शांति के आखिरी हिस्से में है है है है है है है है है है है साधक का एक पैर तो है संकल्प और साधक का दूसरा पैर है समर्पण। साधक का संकल्प प्राथमिक है। वह कहाँ जाना चाहता है, क्या होना चाहता है, उसके लिये संकल्प शक्ति का होना जरूरी है। लेकिन यह भी ध्यान रखना है साधक के संकल्प ही कानफी ी ै गुरू के बिना, गुरू के संकल्प के बिना एक इंच यात्रा नहीं होगी, लेकिन गुरू के संकल्प मात्र से ही यात्रा नहीं हो हो सकती।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। उसे गुरू परमशक्ति का सहारा भी लेना होगा। व्यक्ति की शक्ति उतनी कम है, न बराबर कि अगर गुरू का सहारा न मिले तो यात nello नहीं हो सकती सकती सकती सकती सकती सकती सकती सकती सकती सकती सकती सकती सकती सकती सकती सकती सकती सकती सकती
एक ज्ञान है जो भर तो देता है मन बहुत ज जानकारी से, लेकिन हृदय को शून्य नहीं करता। एक ज्ञान है जो मन को भरता नहीं, खाली करता है हृदय को शून शून्य का मंदिर बनाता है एक ज्ञान है, जो सीखने से मिलता है और एक ज्ञान है जो अनसीखपन से से मिलता। जो सीखने से मिले, वह कूड़ा-करकट है। A causa di ciò che è successo, वही मूल्यवान है। सीखने से वही सीखा जा सकता है, जो बाहर से डाला जातै अनसीखने से उनका जन्म होता है, जो तुम्हारे भीतर सदा से छिपा ही है है जीवन मिट्टी का एक दीया है, लेकिन ज्योति उसमें मृणमय नहीं चिन चिन्मय की है है दीया पृथ्वी का, ज्योति आक Schose दीया एक अपूर्व संगम है। इसे ठीक से समझ लेना, क्योंकि तुम भी मिट्टी के ही दीये हो, तुम जीवन की सार्थकता और सत्य से वंचित रह जाओगे। दीया जरूरी है, लेकिन ज्योति के होने लिये जरूरी है, ज्योति के बिना दीये का क्या अर्थ? ज्योति खो जाये, दीये का क्या मूल्य? Vuoi sapere cosa fare?
ज्योति की स्मृति बनी रहे, ज्योति निरंतर आकाश की तरफ़ उठती रहे तो दीया सीढ़ी है और तब तुम दीये धन्यवाद दे सकोगे सकोगे सकोगे सकोगे सकोगे सकोगे सकोगे सकोगे सकोगे सकोगे सकोगे दे दे दे दे जिन्होंने भी आत्मा को जाना, वे शरीर को धन्यवाद देने में समर्थ हो सके सके जिन्होंने आत्मा को नहीं जाना वे या तो शरीर की मान कर चलते रहे, ज्योति दीये का अनुसरण करती रही और निरंतर गहन से गहन अचेतना और मूर्च्छा में गिरते गये या जिन्होंने आत्मा को नहीं जाना, उन्होंने व्यर्थ ही शरीर से, दीये से संघर्ष मोल ले लिया। A causa di ciò che è successo, di ciò che è successo.
जिन्हें तुम सांसारिक कहते हो, वे पहले तरह के लोग हैं, जिनके भीतर का परमात्मा, जिनके बाहर की खोल का अनुसरण कर रहा है, जिन्होंने गाड़ी के पीछे बैल जोत दिये हैं और बैलगाड़ी के साथ घसीट रहे हैं। जिन्होंने क्षुद्र को आगे कर लिया है और विराट को पीछे, उनके जीवन में अगर दुःख ही दुःख हो तो आश्चर्य नहीं नहीं कीचड़ से कमल पैदा होता है। तुम्हारे शरीर के कीचड़ से तुम्हारी आत्मा का कमल पैदा होगा।
कीचड़ से दुश्मनी मत करना, अन्यथा कमल पैदा ही न गहोा कीचड़ और कमल में कितना ही विरोध दिखाई पडे, भीतर गहरा सहयोग है है कीचड़ कितना ही कीचड़ लगे, कहां, संबंध भी नहीं म मालूम पड़ता! कमल सुंदर, अपूर्व सुंदर, अद्वितीय रेशम-सा कोमल! कहां कीचड़ गंदी दुर्गन्ध भरी! कहाँ कमल की सुवास, दोनों में कोई न नाता दिखाई नहीं पड़ता और अगर तुम जानते न हो और कोई कीचड़ का ढे़र लगा दे और कमल के फूलों क का ढे़र और तुमसे कहे कि इन में संबंध दिख दिख पड़त औ uire Che cosa vuoi fare con te? कहा कीचड़, कहां कमल! लेकिन तुम जानते हो, कीचड़ से कमल पैदा होता है। मृण्मय में चिन्मय का जागरण होता है।
कीचड़ से कमल पैदा होता है, इसका अर्थ ही यह हुआ कीचड़ के गह गहरे में कमल छिपा है, अन्यथा पैदा कैसे होगा? इसका अर्थ यही हुआ कि ऊप ऊपर-र से गंदी दिखाई पड़ती है, भीतर तो कमल जैसी ही होगी होगी इसका अर्थ हुआ कि दुर्गन्ध ऊपर का परिचय है, सुगंध भीतर का परिचय है।
एक प्राचीन कथा है। एक बाप अपने तीन बेटों में सम्पत्ति बांटना चाहता था, लेकिन निश्चय न कर पाता था कि कौन योग्य और कौन सुपात्र है है है है है है है है है है है है तीनों ही जुड़वा पैदा हुये थे, इसलिए उम्र से तय न किया जा सकता था। तीनों एक-से बुद्धिमान थे। तो उसने अपने गुरू से सलाह ली। गुरू ने उसे एक गुर बताया।
उसने बेटों से कहा कि मैं तीर्थयाता पर जा रहा हूँ और बेटों को उसने कुछ बीज दिये फूलों के बीज और कहा कि संभाल कर रखना, जब मैं लौट आऊं तब मैं तुमसे तुमसे व वापसा। पहले बेटे ने सोचा कि इन बीजों को कोई बच्चे उठा लिये, कोई जानवर खा गया, ऐसा सोचकर उसने उन बीजों को तिजोड़ी बंद कर दिया। तिजोड़ी में बंद करके रख दिया और निशि्ंचत हो गया। लोहे की तिजोड़ी चोरों का भी क्या डर! और कौन चोर लोहे की तिजोड़ी तोड़ कर बीज चुराने इये! वह निश्चित रहा। बाप आयेंगे तो, लौटा देंगे।
दूसरे ने सोचा कि तिजोड़ी में रखूं तो बीज सकते हैं और बाप ने ताजा जीवित बीज औ और मैं सड़े लौटाऊं-यह तो लौटाना नहीं हुआ हुआ हुआ हुआ हुआ हुआ हुआ हुआ हुआ हुआ क्या करूं? बीज जीवित कैसे रहें? उसने सोचा बाजार में बेच दूं, तिजोड़ी में रूूपये रये बाप जब वापस आयेंगे, बाजार से बीज खरीद कर लौटा दगेेू
तीसरे ने सोचा कि बीज का अर्थ ही होता है, होनने की वता है बीज का अर्थ ही होता है जो होने तत तत्पर है, जिसके भीतर कुछ होने को मचल रहा है तो उसने बीज दिये हैं, मतलब साफ़ है इन इन्हें उगाना है, जिसने रखा, वह नासमझ है ये तो बढ़नें को राजी थे, ये तो बनने को राजी थे और एक बीज से करोड़ो बीज पैदा होते है पता नहीं, पिताजी कब, तीर्थ लंबा है, यात्रा में वर्षों लगेंगे- उसने बीज बो दिये दिये
तीन वर्षों बाद पिता वापस लौटा । पहले बेटे को उसने कहा। पहले बेटे ने तिजोड़ी की चाबी दे दी। खोली गई तिजोड़ी, सभी बीज सड़ चुके थे, न हवा लगी, न सूरज की रोशनी लगी औ औ किसी ने उन पर ध all'avore बीज कोई लोहे की तिजोड़ीयों में बंद करने को थडही! उन्हें तो खुला आकाश चाहिये, हवा चाहिये, रोशनी चाहिये, पानी चाहिये तो वे जिंद जिंदा रह सकते हैं वे सब सड़ गये थे और जिन बीजों से की अपूर्व सुवास पैदा हो सकती थी, उनकी जगह उस तिजोड़ी सि सिर्फ दुर्गंध निकली-सड़े बीजों की की दुर्गंध!
बाप ने कहा-तुमने संभाला तो, लेकिन संभाल न पाये। तुम मेरी सम्पत्ति के अधिकारी न हो सकोगे। तुम नासमझ हो। जितना मैं तुम्हे दे गया था, उतने भी तुम वापस न कर ।र। ये बीज तो समाप्त हो, इनमें अब एक जीवित जीवित नही है, अब इनको बोओगे तो कुछ भी पैदा न होगा, यह तो राख है और मैं तुम्हें बीज दे गय गया था।। ।rigur बीज थे जीवंत, उनमें संभावना थी बहुत होने, उनकी सारी संभावना खो गई है, सिर्फ राख है, इनसे कुछ नहीं हो सकता। ये मृत्यु हैं।
दूसरे बेटे से कहा। दूसरा बेटा भागा रूपये लेकर, बीज खरीद कर ले आया -ठीक उतने ही ही बीज जितने बाप ने उसे दिया था। बाप ने कहा तुम थोड़े कुशल हो, लेकिन भी क काफी नहीं, क्योंकि जितना दिया था उतना भी लौटाना भी कोई लौटाना है! यह तो जड़बुद्धि वाला व्यक्ति भी कर लेता। इसमें तुमने कुछ बुद्धिमता न दिखाई और बीज का तुम राज न समझे समझे बीज का मतलब ही यह है कि जो ज्यादा हो सकता था। उसे तुमने रोका और ज्यादा न होने दिया। तुम पहले वाले से योग्य हो, लेकिन पर्याप्त नहीं।
तीसरे बेटे से पूछा कि बीज कहाँ हैं? तीसरा बेटा बाप को भवन के ले गय गया जहाँ सारा बगीचा फ़ूलों और बीजों से भरा था। उसके बेटे ने कहा, ये रहे बीज। आप दे गये थे, मैने सोचा इन्हे बचा कर रखने में मौत हो सकती सकती है है इन्हें बाजार में बेचना उचित नहीं क क्योंकि आप सुरक्षित रखने को कहे थे और फिर आपने चाहा था कि बीज वापस लौटाये जायें।। बाजार से तो दूसरे बीज वापस लौटेंगे, वे वहीं होंगे, फिर वे उतने ही ही होंगे आप दे दे गये थे, तो मैंने बीज दिये थे थे अब ये वृक वृक्ष हो गये हैं हैं इनमें इनमें बहुत बहुत बीज हो हो गये बहुत फूल लग गये गये । हजार गुने करके आपको वापस लौटाता हूँ।
स्वभावतः तीसरा बेटा बाप की सम्पत्ति का मालयिक गो परमात्मा ने तुम्हें जितना दिया है कम से कम उतना तो लौटाना। अगर बढ़ा न सको— बढ़ा सको तब तो बहुत अच्छा हैं।
एक अंधेरी रात की भांति है तुम्हारा जीवन, जहाँ सूरज की किरण तो आना असंभव है, मिट्टी के की छोटी सी लौ भी नहीं है है है है है है है है है है है नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं इतना ही होता तब भी ठीक था, निरन्तर अंधेरे में रहने के कारण तुमने अंधेरे को ही प all'avore इतना भी होश बना रहे कि मैं अंधकार में हूँ, तो आदमी खोजता है, तड़पता है प्रकाश के लिए, प्यास जगती है, टटोलता है, गिरता है, उठता है, मार्ग खोजता है, गुरू खोजता है, लेकिन जब कोई अंधकार को ही प्रकाश समझ ले तब सारी यात्रा समाप्त हो जाती है। मृत्यु को ही कोई समझ ले जीवन, तो फिर जीवन का द्वार बंद ही हो हो गया।
जब भी ज्ञान का जन्म होता है, तभी करूणा का जन्म जऋा ा क्यों? क्योंकि अब तक जो जीवन ऊर्जा वासना बन रही थी वह कहां जायेगी? ऊर्जा नष्ट नहीं होती। कभी धन के पीछे दौड़ती थी, पद के पीछे दौड़ती, महत्वाकांक्षाएं थी अनेक-अनेक तरह के भोगों की कामना थी, सारी ऊरscoजा वहाँ संलगान थी।।। थी प्रकाश का जलते, ज all'avore
ऊर्जा क्या होगी? जो ऊर्जा काम वासना बनी थी, जो ऊर्जा क्रोध बनती थी, जो ऊर्जा ईर nello ई बनती, उस ऊर्जा का, उस शुद शुद्ध शक्ति का का होगा? वह सारी शक्ति करूणा बन जाती है। महाकरूणा का जन्म होता है। धन की वासना अकेली नहीं है। पद की वासना भी है। तुम पद पाने के लिये धन का भी त्याग कर देते हो। चुनाव में लगा देते हो सब धन, कि किसी तरह मंत्री य। लेकिन मंत्री की कामना भी पूरी कामना नहीं है। तुम्हारी सभी कामनाएं अधूरी-अधूरी हैं। हजार कामनाये है और सभी में ऊर्जा बंटी है। लेकिन जब सभी कामनाएं शून्य हो जाती हैं, सारी ऊर्जा मुक्त होती है है तुम एक अदम्य ऊर्जा के स्रोत हो जाते हो। एक प्रगाढ़ शक्ति!
जब भी आनंद का जन्म होता है, समाधि कµi तब तुम्हारा सारा जीवन जो बंधे उन उन्हें मुक्त करने में लग ज जाता है A causa di ciò che è stato fatto, il problema è stato raggiunto. जिनके पैर जाम हो गए हैं, उनके पैरों को फिर जीवन देने में लग जाता है
जीवन बीतता है बूंद-बूंद रिक्त होता है रोज हाथ से जैसे रेत सरकती वैसे पैर के नीचे की भूमि सरकती जाती है है दिखाई नहीं पड़ता क्योंकि देखने के लिये सजगता चाहिये और इतने धीमे-धीमे बीतता है जीवन, कि पता नहीं चलता कि हर घड़ी मौत आ ही रही है है है है है है है है है ही जब भी कोई मरता है तो मन सोचता है, मौत रोज द।सरे कीै A causa di ciò che è successo, ho avuto modo di farlo. लेकिन हर मौत तुम्हारी मौत की खबर लाती है। A causa di ciò che è successo, ho pensato che fosse così.
आखिरी क्षण तक भी होश नहीं आता बेहोशी में, अपने ह हाथ से आदमी अपने को सम समाप्त कर लेता है और जो भी कर रहे हो उसक कोई कोई अत अत अत मूल मूल नहीं नहीं है है है नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं मूल उसकiato कितना ही धन कमाओ, कितना ही पद-प्रतिष्ठा मिले, मौत सब कुछ सापफ़ कर देती है है मौत सब मिटा देती है। तुम्हारे बनाये सब घर, ताश के पत्तों के घर सिद्ध होते हैं औ और तुम्हारे द all'avore सब डूब जाता है।
जिसे यह होश आना शुरू हो गया कि मौत, उसी के जीवन में धर्म की किरण उतरती है मौत का स्मरण धर्म की प्राथमिक भूमिका है। अगर मृत्यु न होती तो संसार में धर्म भी न होता। मृत्यु है और जब तक तुम मृत्यु को झूठलाओगे तब तक तुम्हारे जीवन में धर्म की किरण न उतरेगी। मृत्यु को ठीक से समझो क्योंकि उसके आधार पर ही जीवन में क्रांति होगी होगी तुम्हे अगर पता चल जाये कि आज सांझ ही मर जाना है, तो क्या तुम सोचते हो, तुम्हारे दिन का व्यवहार वही रहेगा जो इस पत न न प ieri? क्या तुम उसी भांति दुकान?
Vuoi sapere cosa fare? क्या उसी भांति व्यवहार करोगे, जैसा कल किया था? क्या पैसे पर तुम्हारी पकड़ वैसे ही, जैसे एक क्षण पहले तक थी? क्या मन में वासना उठेगी, काम जागेगा? Che cosa vuoi fare? किसी का भवन देख कर ईर्ष्या? नहीं सब बदल जाएगा।
अगर मौत का पता चले कि आज ही सांझ हो जाने व Schose मौत का जरा सा भी स all'avore क्योंकि सिवाय दुःख के और तुम्हारे होने से कुछ भी फल नहीं आत आता। A causa di ciò che è successo, केवल दुःख के लगते हैं। फल लगते हैं निश्चित तुम्हारी आशाओं के अनुकूल नही, न तुम्हारे स्वप्नों के अनुसार। फल लगते हैं तुम्हारी आशाओं के विपरीत, तुम्हारे सपनों से बिल बिल्कुल उलटे
शरीok को ही अग अगर देखा तो कीचड़ पर रूक गये और कमल से अपरिचित रह गये गये अगर तुमने शरीर से शत्रुता की और शostra कमल तो पैदा होता है कीचड़ के सहयोग से। इस सहयोग का नाम ही योग की कला है। योग अस्तित्व की दई के बीच एक को खोज लेने की कला है जहाँ दो दिखाई पडें- अत्यंत विपरीत, वहाँ भी एक ही सूत सूत्र को देख लेना, एक के ही जोड़ को देख लेना, वही की परम दृष्टि है।।।।।।।।।।।। है है है है है है है है दृष दृषiato इसलिये में निरंतर कहता हूँ, तुम all'avore तुम्हारे भीतर की कीचड़ तुम्हारा कमल बन जायेगा।
Sua Santità il Sadhgurudev
Il signor Kailash Chandra Shrimali
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