निश्चित ही बीजों के साथ की गई मेहनत की फसल कॾट रहनत की फसल कॾट रहहहनत अक्सर फ़ासला इतना हो जाता है कि हम सोचते हैं, बीज तो हमने बोये थे थे अमृत, न मालूम कैसा दुर्भाग्य है फल विष के के उपलब्ध हुये हैं!
लेकिन इस जगत में जो हम बोते हैं उसके अतिरिक्त हमें कुछ भी नहीं मिलता है, न मिलने का कोई उपाय है हम वही पाते हैं जो हम अपने को निर्मित करते हैं। हम वही पाते हैं जिसकी हम तैयारी करते हैं। हम वहीं पहुंचते हैं जहां की हम यात्रा करते हैं। हम वहां नहीं पहुंचते जहां की हमने यात्रा ही न कीी यद्यपि हो सकता है यात nello मैं नदी की तरफ़ नहीं जा रहा हूं। मन में सोचता हूं कि नदी की तरफ़ जा रहा हूं, लेकिन बाजार की तरफ़ जाने वाले रास्ते पर चलूंगा तो कितन कितना ही सोचूं कि मैं मैं नदी त तरफ़ जा रहा हूं, मैं पहुँचुंगा जrigere सोचने से नहीं पहुंचता है आदमी। किन रास्तों पर चलना है उनसे पहुंचता है। मंजिलें मन में तय नहीं होती, रास्ते पर तय होती है
आप कोई भी सपना देखते रहें, अगर बीज आपने नीम बो दिये हैं और सपने में श शायद यह सोच रहे हो कि उससे आपको स्वादिष्ट मधुर फल मिलेगा।।। आपके सपनों से फल नहीं निकलते! फल आपके बोये बीजों से निकलते हैं। इसीलिए आखिर में जब नीम के कड़वे फल हाथ में हैं तो शायद आप दुःखी होते होते, पछताते हैं और सोचते हैं कि मैंने बीज बोये थे अमृत के, फल कड़वे कैसे कैसे? ध्यान रहे, फल ही कसौटी है, परीक्षा है बीज की। फल ही बताता है कि बीज आपने कैसे बोये थे। आपने कल्पना क्या की थी, उससे बीजों कोई प प्रयोजन नहीं है है हम सभी आनंद लेना चाहते हैं जीवन में लेकिन आता कहां है! हम सभी शांति चाहते हैं जीवन, लेकिन मिलती कहां है शांति! हम सभी चाहते हैं कि, महासुख ही बरसे, पर बरसता कभी नहीं नहीं तो इस संबंध में एक बात इस सूत्र में समझ ज जरूरी है कि हमारी चाह से नहीं आते फल, हम जो बोते उससे आते हैं हैं हम चाहते कुछ हैं, बोते कुछ हैं। हम बोते जहर है और चाहते अमृत हैं। इसलिये जब फल आते है तो जहर के ही आते, दुःख और पीड़ा के ही आते हैं, नरक ही फलित होता है हम सब अपने जीवन को देखें तो ख्याल में आ सकता है। जीवन भर चलकर हम सिवाय दुःख के रास्ते पर और कहीं भी नहीं पहुँचते पहुँचते हैं रोज दुःख घना होता चला जाता है। रोज रात कटती नहीं और बड़ी होती चली जाती है। रोज मन पर संताप के कांटे फैलते चले जाते हैं और फूल आनंद के कहीं खिलते हुये म मालूम नहीं पड़ते पैरों में पत्थर बंध जाते हैं दुःख, पैर नृत्य नहीं कर पाते हैं उस खुशी में जिस खुशी की हम तलाश में है। क्योंकि कहीं न कहीं हम, हम ही- क्योंकि और कोई नहीं है- कुछ गलत बो बो लेते हैं उस गलत बोने में ही हम अपने शत्रु सिद्ध होते हैं।
जो हम बोयेंगे वही हमको मिलेगा। जीवन में चारों ओर हमारी ही फैंकी ध ध्वनियां प all'avore थोड़ा समय अवश्य लगता है। ध्वनि टकराती है बाहर की दिशाओं से, और लौट आती है। जब तक लौटती है तब तक हमें ख्याल भी रह जाता कि हमने जो गाली फैंकी थी वही वापस लौट रही है
बुद्ध का एक शिष्य रास्ते से गुजर रहा था। उसके साथ दस-पंद्रह सन्यासी थे। उसके पैर में जोर से पत्थर लग गया, रास्ते पर खून बहने लगा, शिष्य आकाश की तरफ़ हाथ जोड़ कर किसी आनन्द-भाव में लीन हो हो गया। उसके साथी भिक्षु हैरानी में खडे़ रह गयें शिष्य जब अपने ध्यान से वापस लौटा। तब उससे पूछते हैं कि आप क्या कर रहे थे? पैर में चोट लगी, पत्थर लगा, खून बहा और आप कुछ प प्रकार हाथ जोड़े हुये थे जैसे किसी धन धन्यवाद दे रहे हों हों शिष्य ने कहा, बस यह एक मेरा विष का बीज बाकी रह गयााा किसी को कभी पत्थर मारा था, आज उससे छुटकारा हो गयााकिसी को कभी आज नमस्कार करके धन्यवाद दे दिया हूं प्रभु को, कि अब मेरे बोये हुये विष बीज से कुछ भी नहीं बचा, यह आखिरी पफ़सल समाप्त हो गई गई।।। गई गई गई गई गई गई गई गई गई गई गई गई गई गई गई tivamente
लेकिन अगर आप को रास्ते पर चलते वक्त पत्थर पैर में लग जाये तो इसकी बहुत कम संभावना है कि आप ऐसा सोचे कि किसी बोए हुये बीज का फल हो सकता है है है ऐसा नहीं सोच पायेंगे, संभावना यही कि रास्ते पर पड़े हुये पत्थर को भी आप एक गाली जरूर देंगे। पत्थर को भी गाली और कभी ख्याल भी न करेंगे कि पत्थर को दी गई गाली, फिर बीज बो रहे हैं! पत्थर को दी हुई गाली भी बीज बनेगी। सवाल यह नहीं है कि किसको गाली दी। सवाल यह है कि आपने गाली दी, वह वापस लौटेगी।
गांव में एक साधारण ग all'avore a उसी रास्ते से एक ऋषि निकल रहे थे । वह आदमी अपने बैलों को बेहूदी गालियां दे रहा था। बड़े आंतरिक संबंध बना रहा है गालियों से। ऋषि उसे रोकते हैं, पागल, तू यह क्या कर रहा है? वह आदमी कहता है कि र् बैल मुझे गाली वापस तो नहीं लौटा देंगे, मेरा क्या बिगड़ेगा। वह आदमी ठीक कहता है। हमारा गणित बिल्कुल ऐसा ही है। जो आदमी गाली वापस नहीं लौटा सकता उसे गाली देने में हर्ज क्या है? इसलिये अपने से कमजोर को देख कर हम सब गाली देते ंै A causa di ciò, il problema è che non c'è niente da fare. कमजोर दिखा कि हमारा दिल मचलता है कि थोड़ा इसको सेाा
ऋषि ने कहा, बैलों को गाली तू रहा है, अगर वे गाली लौटा सकते तो कम खतरा था, क्योंकि समझौता अभी हो जाता। लेकिन वे गाली नहीं लौटा सकते, लेकिन गाली तो लौेन तू महंगे सौदे में पडे़गा। यह गाली देना छोड़! ऋषि की तरफ़ उस आदमी ने देखा, ऋषि की आंखों को देखा, उनके आनंद को, उनकी शांति को देखा। उसने उनके पैर छुये और कहा कि मैं कसम लेता हूं, इन बैलों को गाली नहीं नहीं दूंग।
ऋषि दूसरे गांव चले गये। दो-चार दिन आदमी ने बड़ी मेहनत से अपने रोका, लेकिन कसमों से दुनिया में कोई रुकावटें नहीं होती रुकावट होती है समझ से! दो-चार दिन में प्रभाव क्षीण हुआ। वह आदमी अपनी जगह वापस लौट आया। उसने कहा, छोड़ो भी, ऐसे तो हम मुसीबत में पड़ जाययेगग बैलगाड़ी से आना मुश्किल हो गया। हिसाब बैलगाड़ी चलाने का रखें कि गाली न देनू ॕा ररली बैलों को जोते की अपने को जोते। बैलों को सम्भालें कि खुद को संभाले यह तो एक मुससऋ यह तो एक मुससी
गाली उसने वापस देनी शुरू कर दी। चार दिन जितनी रोकी थी उतनी एक दिन में निकाल ली। रफ़ा-दफ़ा हुआ, मामला हल्का हुआ, उसका मन शांत हुआ। कोई तीन- चार महीने बाद ऋषि उस गांव में वापस नॿकल ें उनको पता भी नहीं था कि वह आदमी फिर मिल जायेग। रइातसससल वह धुआंधार गालियां दे रहा है बैलों को। ऋषि ने खड़े होकर कहा, यह क्या है मेरे भाई? उसने देखा ऋषि को और जल्दी ही बात बदली। उसने कहा बैलों से, देखो बैल, ये मैने तुम्हे गालियां दी, ऐसी मैं तुम्हे पहले दिया करता था। अब मेरे प्यारे बेटो, जरा तेजी से चलो!
ऋषि ने कहा, तू बैलों को ही धोखा नही दे रहा है, तू मुझे भी धोखा दे रहा है और तू मुझे धोखा दे इससे हर्ज नहीं नहीं है है है है तू तू अपने को धोख धोखा ह रह है है Per quanto riguarda, हो सकता है मैं दुबारा इस गांव फिर कनभी ऊआ मैं मान ही ले रहा हूं कि तू को गालियां नहीं दे रहा था, सिर्फ पुरानी गालियां बैलों य याद दिला रहा था ।ा। ।rigur लेकिन किसलिये याद दिला रहा था? तू मुझे धोखा दे कि तू बैलों को धोखा दे, इसका बहुत अर्थ नहीं है, लेकिन तू अपने को ही धोखा दे रहा है है
जीवन में जब भी हम कुछ बुरा कर cercando हैं तो हम दूस दूसरे के साथ कर रहे हैं, यह भ्रांति है आपकी।। आपकी आपकी आपकी आपकी आपकी आपकी आपकी आपकी आपकी प्राथमिक रूप से हम अपने ही साथ कर रहे हैं। क्योंकि अंतिम फल हमें भोगने हैं। Quando si tratta di un'altra cosa, ci si può fidare di lui. इंच-इंच का हिसाब है। इस जगह में कुछ भी बेहिसाब नहीं जाता है। हम अपने शत्रु हो जोते हैं। हम कुछ ऐसा करते हैं जिससे हम अपने को ही में ड डालते हैं, स्वयं ही दुःख में उतरने की सीढि़यां निर्मित करते हैं हैं
तो ठीक से देख लेना, जो आदमी अपना शत्रु है वही अध अधर्मी है और जो अपना शत्रु है वह किसी का मित्र तो कैसे हो सकेगा? जो अपना भी मित्र नहीं, जो अपने लिये दुःख के आधार बना रहा है, वह सबके लिये दुःख के आधार बना देग। पहला पाप अपने साथ शत्रुता है, फिर उसका फैलाव होहता
फिर अपने निकटतम लोगों के साथ शत्रुता बनती, फिर दूरतम लोगों के स साथ। फिर जहर फैलता चला जाता है, हमें पता भी नहीं चलता। जैसे कि झील में पत्थर फ़ेंक दे! चोट पड़ते ही पत्थर तो नीचे बैठ जाता है क्षण भर में, लेकिन झील की सतह पर उठी हुई लहरें दूर-दूर तक यात्रा पर निकल जाती हैं।।।।। हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं tiva लहरें चलती जाती हैं अनंत तक। ऐसे ही हम जो करते हैं, हम तो करके चूक ज जाते हैं, आपने गाली दे दी, बात खत्म हो गई, फिर आप गीत पढ़ने लगे य य कुछ भी क करने लगे लगे लेकिन उस ग ग ग की की पैद पैद हुईं।।।। कुछ कुछ कुछ भी क करने लगे लगे लेकिन उस उस उस ग ग ग की की पैद पैद हुईं।।।। कुछ कुछ कुछ भी करने लगे लगे लेकिन उस उस उस ग ग ग की की की पैद हुईं।।।। कुछ कुछ कुछ भी क’eria वे न मालूम कितने दूर के छोरों को और जितना अहित उस गाली से होग होग उतने सारे अहित के लिये जिम जिम्मेवार हो गये! आप कहेंगे, कितना अहित हो सकता है एक गाली से? मैं कहता हूं, अकल्पनीय अहित हो सकता है और जितना अहित हो जायेगा उतने के लिये आप जिम्मेवार हो जाएंगे। आपने उठाईं वे लहरें। आपने ही बोया वह बीज। अब वह चल पड़ा। अब वह दूर-दूर तक फैल जायेगा। एक छोटी सी दी हुई गाली से क्या-क्या हो सकता है। अगर आपने अकेले में गाली दी हो और किसी ने न सुनी हो, तब तो शायद आप सोचेंगे कि कुछ भी नहीं होगा इसका परिणाम। लेकिन इस जगह में कोई भी घटना निष्परिणामी नहीं है उसके परिणाम होंगे ही। आप बहुत सूक्ष्म तरंगें पैदा करते हैं च चारों ओर वे तरंगें फैलती हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं फैलती फैलती फैलती उन तरंगों के प्रभ Schose
अभी बहुत कम चलता है सूक्ष्मतम तरंगों पर और ख all'avore हिस्सा है वह ऊपर आ जाता है और जो ठीक हिस्सा है वह नीचे दब ज जाता है दोनों हिस्से आपके भीतर हैं। अगर कुछ अच्छे लोग बैठे हों एक जगह प्रभु का स all'avore a आपका गलत हिस्सा नीचे दब जाता है, आपका श all'avore आपकी संभावनाओं में इतने सूक्ष्मतम अंतर होते कि हिस हिसाब लगाना मुश्किल हो और हम चौबीस घंटे कुछ न क कर रहे हैं हैं
एक छोटा सा गलत बोला गया शब्द कितनी दूर तक कांटों को बो जायेगा, हमें कुछ पता नहीं है बुद्ध अपने भिक्षुओं से कहते थे की तू घंटे, राह पर कोई देखे, उसकी मंगल की कामना करना। वृक्ष भी मिल जाये तो उसकी मंगल कि कामना करके उसके पास से गुजरना। पहाड़ भी दिख जाये तो मंगल की कामना करके उसके निकट से गुजरना। एक भिक्षु ने पूछा, इससे क्या फ़ायदा? बुद्ध ने कहा, इसके दो फ़ायदे हैं। पहला तो यह कि तुम्हें गाली देने का अवसर न मिलेगाे तुम्हें बुरा ख्याल करने का अवसर न मिलेगा। तुम्हरी शक्ति नियोजित हो जायेगी मंगल दिश दिश औ और दूसरा फ़ायदा यह कि जब तुम किसी के लिये मंगल कि कामना करते हो तो तुम उसके भीतर भी प प्रतिध पैदा करते हो वह भी तुम्हारे लिये मंगल की कामना करता है।
इसलिये भारतवर्ष में राह पर चलते हुये अनजान आदमी को भी राम -राम कहने की प्रक्रिया बनाई थी। उस आदमी को देख कर हमने प्रभु का स्मरण किया। तो ठीक से नमस्कार करना जानते हैं सिर्फ उच्चारण नहीं क करेंगे, वे आदमी में राम की प्रतिमा को देख कर गुजर जर जायेंगे। उन्होंने उस आदमी को देख कर प्रभु का स्मरण किया। उस आदमी की मौजूदगी प्रभु के स्मरण की पैद पैद की गई और हो सकता है वह आदमी शायद राम को मानता भी हो और जा भी भी न हो हो लेकिन लेकिन उत उत उतर में वह भी ieriम उसके भीतर भी कुछ ऊपर आयेगा।
जीवन बहुत छोटी-छोटी घटनाओं से निर्मित होता है। मंगल की कामना या प्रभु का स all'avore जब आप किसी के सामने दोनों हाथ जोड़ कर सिर झुका देते हैं तो आप उसको भी झुकने क क एक अवसर देते हैं और झुकने से बड़ा अवसर इस जगत में दूसरा नहीं है क्योंकि झुका हुआ सिर कुछ बुरा नहीं सोच पाता, झुका हुआ सिर गाली नहीं दे पाता और कभी आपने ख्याल किया हो या न किया हो, लेकिन अब आप ख्याल करना कि जब किसी हो हृदयपूर्वक नमस्कार करके सिर झुकायें और कल all'avore वह आदमी आपके पास से गुजरा तो आपने उसके लिये पारस का काम किया, उसके भीतर कुछ आपने सोना बना दिया और जब आप किसी के लिये पारस का काम करते हैं तो दूसरा भी आपके लिये पारस बन जाता है। हम सम्बन्धों में जीते, हम अपने चारों तरफ़ अगर पारस का काम करते हैं तो यह असंभव है कि बाकी लोग हमारे लिये पारस न हो जायें। वे भी हो जाते हैं।
अपना मित्र वही है जो चारों ओर मंगल का फैलाव करता है, अपने चारों ओर शुभ की कामना करता है, जो अपने चारों ओर नमन से भरा हुआ है, अपने चारों ओर कृतज्ञता का ज्ञापन करता चलता है,और जो व्यक्ति दूसरों के लिये मंगल से भरा हो वह अपने लिये अमंगल से कैसे भर सकता है? जो दूसरों के लिये की क कामना से भरा हो वह अपने लिये दुःख की कामना से नहीं भर सकता। वह अपना मित्र हो जाता है और अपना मित all'avore जो अपना मित्र हो गया वह धार्मिक हो गया। अब वह ऐसा कोई भी काम नहीं कर सकता जिससे स्वयं को दुःख मिले मिले तो अपना हिसाब रख लेना चाहिये कि मैं कौन कौन से से काम करता हूं जिससे मैं ही दुःख पाता हूं दिन में हम हजार काम कर रहे हैं जिनसे हम दुःख पातै हजार बार पा चुके हैं। लेकिन कभी हम ठीक से तर्क नहीं समझ पाते हैं जीवन में इन इन कामों को करके दुःख पाते हैं वही बात जो आपको हजार बार मुश्किल में डाल चुकी, वही व्यवहार जो आपको हजार बार पीड़ा में धक्के दे चुका है, आप फिर भी वहीं क कारते करते है जो आपको आपको है है है है है आप फि फिर भी वहीं क कारते करते है जो आपको आपको है है है। है आप आप फिर भी वहीं क कारते करते है जो आपको आपको है है है। वही सब दोहराए चले जाते है यंत्र की भांति!
हम एक क्षण भर अगर रूक के सोचे हमें ज्ञात ही नहीं कि हमें कह कहां पहुंचना है? हमने तो चाँद के चंद टुकड़ो को इकट्ठा करने की क्रिया को ही जीवन म मान लिया। दो-चार मकान बना लेने की जीवन पद्धति को ही जीवन मान लिया है है यह तो जीवन का एक प्रकार है, कि दृष दृष्टि में, चाहे निर्धनता में, चाहे अमीरी में, वैभव में जियें जियें जब तक जीवन के इस मूल चिन्तन को नहीं समझेंगे तक हम सही अर्थों में जीवित भी नहीं हो प पाएंगे, तो फिर जीवन परिभाषा को समझायेगा कौन? Hai bisogno di sapere cosa fare? कौन बतायेगा कि यह जीवन व्यर्थ है? क्या हर समय व्यस्त रहने और तनाव में गुजरने की क्रिया को ही जीवन कहते है? Questa non è chiamata vita nelle scritture. Nelle scritture, questa azione è chiamata morte e noi siamo morti viventi nel vero senso della parola, che camminiamo ma non abbiamo coscienza, mangiamo e beviamo, ma non abbiamo significato, perché non abbiamo mai compreso questi misteri, se questo pensiero non è compreso dal pensiero e non compreso dal pensiero, allora la vita non può essere goduta. La vita è goduta da coloro che capiscono la vita. जो कभी मानसostra जो छोटी-छोटी तलैयांओं के किनारे बैठा रहा हो, वह क्या जाने कि मानसरोवर में क्या आनन्द है, कितनी विस्तृत झील है, कितना निर्मल पानी है है है है है वह वह वह वह वह ही ही म बैठ झील है है है है tiva
मेंढक जब कुएं के किनारे से चलना शुरू क के और पूरा चक्कर लगाकर फिर उसी स all'avore दिया जाये तो उतने अथाह जल देखकर वह आश्चर्य में पड़ जायेगा, अरे! मैंने तो कुछ नहीं देखा था, दुनिया तो कुछ और है, संसार तो कुछ और है, और यदि वह भले से भी उस तालाब का पूरा चक्कर लगा ले और मन में प्रसन्नता व्यक्त कर ले, कि अब मैंने पूरा विश्व देख लिया है, पूरा जीवन देख लिया है, अब इससे बड़ा तालाब, इससे जल राशि, इससे बड़ा जलाशय क्या हो सकता है यह तो बहुत लम्बा-चौड़ा तालाब है और मैंने प्रयत्न करके इसका पूरा एक चक्कर लगाया है, यही तो जीवन है और यदि वह सागर में गिर जाये और सागर के अथाह जल को देखे तो उसे और अधिक आश्चर्यचकित हो जाना पडे़गा कि वह तो एक छोटा सा हिस्सा था, वह जीवन था ही नहीं।
तुम्हारी भी स्थिति उस कुंए के मेंढक त तरह है, तुमने भी एक सीमित दायरे में घूमने क क्रिया को जीवन मान लिया है है है है है है है है है है पत्नी है, एक-दो पुत्र है, थोडा-सा धन है, मकान है, समाज में सम्मान है, सम्पदा है और इसी को तुमने जीवन मान लिया है, क्योंकि इससे बाहर निकलने का तुमको ज्ञान ही नहीं रहा कभी बाहर गये ही नहीं, कभी देखा ही नहीं कि इससे बड़ा भी एक समाज है, स्थान है और जब तुम वहां जाओगे तो तुम जो जीवन जी रहे थे, तुम जिस घेरे में आबद्ध थे, वह एक बहुत छोटा सा हिस्सा है, जिसमें कोई आनन्द नहीं है, वह तो A causa di ciò, il problema è che समाज में जिन्दा रहना तुम्हारी मजबूरी है। परिवार का पालन-पोषण करना तुम्हारी मजबूरी है। समाज सदैव तुम्हारे साथ, या परिवार तुम all'avore
जब डाकू थे 'वाल्मीकि' ऋषि तो ब बाद में उन उन्होंने रामायण की रचना तो बहुत बाद में की, पहले वह भय भयानक ड ड थे थे लुटना, खसोटना, मारनrigere, छीन छीन लेन ही~ एक बार नारद उनके हाथ में पड़ गये, नारद तो वीणा बजाते हुये नारायण-नारायण करते चले जा रहे थे और वाल्मीकि ने उन्हें पकड़ लिया, सुबह से कोई शिकार मिला ही नहीं, बडी मुश्किल से यह आदमी नजर आया, वाल्मीकि ने उनकी वीणा छीन ली।
नारद् ने कहा- अरे! A causa di ciò che è successo, di ciò che è successo. उसने कहा- कोई दूसरा मिला ही नहीं और जब तक मैं लूट- खसोट नहीं कर लूं , तब तक मैं भोजन करता ही नहीं, न कोई कार्य करता हूं, तुम पहले ही व्यक्ति मिले, दोपहर हो गई यह वीणा बेच कर कुछ तो धन मिल ही जायेगा औ cercando उचित तो नहीं मगर यह करूंगा जरूर, क all'avore नारद ने कहा- क्या तुम all'avore वाल्मीकि ने कहा- जरूर यह पाप कर्म है, किसी की हत्या कर देना, किसी को छल से लूट लेनµ अपने परिवार के लिये कर रहा हूं। परिवार मेरा साथ देगा ही।
नारद् ने कहा पहले तुम अपने परिवार वालों से ऋूछ ल् वाल्मीकि ने एक रस्सी से नारद को पेड़ में बांध दिया और घर चले गये गये बूढ़ी मां से पूछा तू मुझे बता, कि मैं छीन छीना-झपटी, लूट-खसोट, हत्यायें कर रहा हूं क्या यह पाप है और क्या तुम भी मेरे पाप में भागीदऋऋननान यह पाप तो है ही। मां ने कहा-बेटा जरूर पाप है। वाल्मीकि ने कहा मैं इससे तुम को रोटी खिला रहा हूं, अन्न दे रहा हूं, आवास दे रहा हूं तुम भी पाप में भ भार हो।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। ।iato मां ने कहा-मैं तो पाप में भागीदार नहीं होती, यह तुम्हारा कर्त्तव्य है कि मµ कहा भी नहीं, मैं इसमें भागीदार नहीं हो सकती।
वाल्मीकि पत्नी के पास गए, पत्नी से कहा-देख, डाकू हुं और सैकड़ों लोंगों की हत्याएं की हैं, लूटा है, खसोटा है, मारा है, औरतों के छीने छीने हैं हैं तुझे है तुझे झपटन झपटन ieri छीनन म scopre है है औरतों के छीने छीने हैं हैं हैं झपटन झपटन झपटन झपटन ieri छीनन मा है tiva लूटना,मारना पाप है। पत्नी ने कहा-निःसन्देह पाप है। वाल्मीकि ने पूछा-यह तुम्हारे लिए कर रहा हूं क्योंकि ऐसा करने पर ही तो मैं तुम्हे अन्न दे सकता हूं, भोजन दे सकता हूं, आवास दे सकता हूं, गहने दे सकता हूं और तुम्हारे लिए ही तो कर रहा हूं, तो तुम भी पाप में भागीदार हो। पत्नी ने कहा- मैं तो पाप में भागीदार हूं हूं, एक पति का कर्तogo ।
वाल्मीकि वापस आ गए, नारद को से खोला और छोड़ दिया, उसी क्षण उन्होंने पाप पूर्ण डाकू का कारscoय छोड़ करके, छीना-झपटी क कार छोड़र ।रदिय Hai bisogno di sapere cosa fare? क्या तुम छीना-झपटी नहीं कर रहे? छल नहीं कर रहे? झूठ, कपट, और असत्य नहीं कर रहे? और यह सब तुम परिवार वालों के कर रहे हो, और तुम्हें यह गलतफहमी है, कि ऐसा करने पर परिवार वाले तुम्हाराथ देंगे देंगे देंगे देंगे देंगे देंगे देंगे में में भागीद होंगे होंगे पाप में भागीदार तो वे नहीं, असत्य और अधर्म के वे भागीदार नहीं बनेंगे बनेंगे तुम्हें अकेले ही यह पाप भोगना पड़ेगा, तुम खुद इसके जिम्मेदार हो हो
Quando vuoi sapere cosa fare, cosa vuoi fare? Che cos'è? Che cos'è? कब तुम्हें समझा सकेंगे? कि यह जीवन नहीं है, जो तुम कर रहे हो। जब तक तुम ऐसा करोगे तब तक जीवन तुम तुम कुछ मिलेगा ही नहीं, तब तक जीवन क क तुम अर्थ समझोगे हीं नहीं, जरूरत तो तुम यह यह है कि कोई कोई ऋषि मिले मिले मिले मिले मिले कोई कोई कोई कोई कोई कोई कोई कोई कोई कोई कोई कोई कोई कोई कोई कोई कोई सब यह यह यह यह यह यह यह यह यह यह यह यह यह tiva युक्त पाप पूर्ण कार्य बेकार है।
जिस रास्ते पर तुम चल रहे हो उस रास्ते से तो शमशान की यात्रा ही हो सकेगी, यह तो कफन ओढ़ कर श्मशान में सोने की साधना है, प्रयोग है, जीवन है, इसमें कुछ पाना है ही नहीं खोना ही खोना है, और तुम प्राप्त नहीं कर रहे हो जो कुछ तुम प्राप्त कर रहे हो यह मकµi नहीं, तुम्हारे साथ उनकी यात्रा नहीं औ और तुम्हारे साथ नहीं है है है है है है है है है वे तुम्हारे सहयोगी नहीं है। साथ तो तुम्हारे जीवन के कर्म चलेंगे, तुम्हारी प all'avore
यदि तुम ऐसा चिन्तन करते हो, यदि तुम्हारे मन में ऐसा विचार है, तो तुम जीवन का पहला सबक सीख सीख हो पहल अध अध व गु की की व की की की की की की की की की की की की की की की की की की की की की की की की की की की की की की की की की की की की की की की की की की की की की की की की की की की की की की tiva , जो तुम्हे समझा सके, कि तुम कुछ कर रहे हो वह तुम खुद कर रहे हो, उसके लिए कोई सहयोगी नहीं है तुम्हारे पाप कार्य में कोई भागीदार नहीं है, तुम जो झूठ और छल कर रहे हो, उसका फल तुम्हे ही भोगना पड़ेगा और जिन्होंने भी अपने जीवन में झूठ,छल, कपट और असत्य का आचरण किया, उनका बुढ़ापा अत्यन्त दुःखदायी अवस्था में व्यतीत हुआ। रोगों से जर्जर, अभावों से, असत्य, परेशान, दुःखी, अतृत्प। जब बेटे उनको पूछते ही नहीं जब बहुएं उनका साथ देती नहीं और समाज उन्हें धिक्कारता है कि इसने जीवन भर छल-कपट किय है है
ऐसा तुम्हारा जीवन किस काम आयेगा, क्या प्रयोजन है इस जीवन क का? क्योंकि इस जीवन को लाश की तरह उठा कर के तुम इस जीवन में कुछ प्राप्त कर ही नहीं सकते और इसीलिये कर सकते कि यह सब जीवन है ही ही नहीं नहीं। नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं ° जो जीवन है, वह तो पत्थरों के ढे़र है, कपट के पत्थर है, असत्य और व्यभिचार के, उनसे प्राप्त होता है दुःख, परेशानियां, अड़चन बाधाएं, रोग, जर्जरता, बुढ़ापा और मृत्यु ये ही तुम्हारे सामने है। दो-चार कदम चलने पर ही इनका सामना करना पड़ेगा, फिर कोई तुम्हारा साथ नहीं देगµ क्योंकि तुमने अपने जीवन में ऐसा मार्ग दर्शक ढूंढा ही नहीं जो तुम्हें ज्ञान दे, झकझोर सके, चेतना दे, दमखम के साथ तुम्हारे साथ खड़ हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो जीवन। ।rigo
किसी आंख, नाक, कान, हाथ, पैर वाले को शिष्य नहीं कइ।त चलने-फिरने वाला व्यक्ति को शिष्य नहीं, शिष्य तो उसे कहते कहते है, जिसमें श्रद्धा और समर्पण, जो इन दोनों से निर्मित होत होत है है वह ञ क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क tiva , वह जीवन के रास्ते पर गतिशील हो सकता है।
मात्र दीक्षा लेने वाले को शिष्य नहीं कहते, सिर मुंडाने को भी शिष्य नहीं कहते, हरिद्वार में स्नान करने वाले को भी शिष्य नहीं कहते और गुरू के पैर दबाने वाले को भी शिष्य नहीं कहते, ये तो सब उपाय सब गलत है, तुम्हे कह सके कि तुम गलत रास्ते पर हो, तुम्हे कह कि यह रास्ता श all'avore ऐसे तो tiva तुम भी उसी तरीके से मृत्यु को प्राप्त हो जाओगे और तुम्हे कोई पूछने वाला नहीं होगा, कोई तुम्हारे लिए विचार करने वाला भी नही होगा, कोई अहसास करने वाला भी नहीं होगा, कि तुमने कितना परिश्रम किया है। इस यात्रा में तुम्हारे अन्दर कई प्रकार की भ्रांतियां आयेगी, क्योंकि तुमने इन भ्रांतियों को ही पाल रखा है, तुमने अपने अन्दर शक,संदेह,कपट,और व्याभिचार को पाल रखा है और वे सब तुम्हारे सामने तन कर खड़े हो जायंगे, तुम्हारे मार्ग को भ्रष्ट करेंगे, तुम all'avore a तुमने अपने जीवन में छल को प्रश्रय दिया है। तुमने अपने जीवन में कपट का साथ दिया है, तो वे समय तुम्हारे सामने खड़े रहेंगे। क्योंकि इससे उनका स्वार्थ सिद्ध होता है।
कायर और बुजदिल हताश हो जाते है, निराश हो जाते है, खोज बंद कर देते है, मगर जो हिम्मती है, दृढ़ निश्चयी है, जो एक क्षण में जल उठने वाले है, जो निश्चय कर लेते है, कि मुझे कुछ करना है, खोज करनी है, मुझे ऐसा घिसा-पिटा जीवन नहीं जीना है, मुझे अपने जीवन में वह सब कुछ प्राप्त करना है, जो जीवन का आनन्द है, जो जीवन का ऐश्वर्य है, जो मृत्यु से अमृत्यु की ओर जाने वाला है, जो आनन्द प्रदान करने वाला है, ऐश्वर्य प all'avore a
जो निश्चय करके यह प्रयत्न करता है, कि गु गुरू को प्राप्त करना ही, वह सन्यासी है, वह योगी है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है दूसरा, जो इन रास्ते पर गतिशील होने क्रिया करता है, वह सही अर्थो में तपस्वी है जंगलों में खाक छानने व Schose जो गुरू की खोज में आगे बढ़ते हैं वे साधु है, जो गुरू को प्राप्त करके ही रहते है, वे शिष्य है और जो प्राप्त कर लेता है, उसे जीवन में एक रास्ता मिल जाता है, उसे जीवन में एक चेतना मिल जाती है, वह निश्चय ही उस जीवन -पथ पर तेजी के साथ अग्रसर हो जाातहर
इस जीवन मार्ग पर केवल शिष्य चल सकता है, साधक तो बहुत छोटी सी सी चीज, शिष्य के सामने साधक की औक औकात नहीं होती होती होती होती होती होती होती होती नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं योगी, तपस्वी उसके सामने कहीं ठहर नहीं पाते उसके सामने कोई औकात नहीं नहीं होती उसके सामने यक्ष, गन्धर्व, किन all'avore a जागने से पहले जागता है, गुरू के सोने के बाद सोता । जो केवल इस बात का चिन्तन करता है कि गुरू की कैसे सेवा की जाए? हम गुरू के किस प्रकार से हाथ पैर बनें, नाक बनें, आंख बनें, सिर बनें, विचार बनें, भावना बनें, धारणा बनें, किस प्रकार से? किस युक्ति से बने? जो केवल इतना ही चिन्तन करता है, वही सही अर्थो में शिष्य कहलाता है और सच्चा शिष्य सही अर्थो में बना हुआ सच्चा शिष्य ही अपने आप उस रास्ते पर खड़ा हो जाता है, जो पूर्णता का रास्ता होता है, जो पवित्रता का रास्ता होता है, जो ब्रह्म तक पहुंचने का रास्ता होता है। इसीलिए शिष्य की समानता तो देवता, यक्ष, गन्धर्व कर ही नहीं सकते, तपस्वी और साधु तो बहुत छोटी ब बात है
Sua Santità il Sadhgurudev
Signor Kailash Shrimali
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