Per quanto riguarda l'argomento, तुम्हारी नींद को तोड़ देनाा तुम्हें जगा दे, तुम्हारे सपने बिखर जायें, तुम होश से भर जाओं। निश्चित ही काम कठिन है और न केवल कठिन, बल्कि शिष्य को निरन्तर लगेगा कि गुरू विघ्न डाल रहा है है अब तुम्हें कोई साधारण नींद भी उठ उठाता है तब भी तुम्हें लगता है, उठाने-वाला मित्र नहीं शत्रु है। नींद प्यारी है और यह भी हो सकता है कि तुम सुखद सपन सपना देख रहे हो और चाहते थे कि सपना जारी रहे। उठने का मन नहीं होता मन सदा सोने का ही होता है।
मन आलस्य का सूत्र है इसलिये जो तुम तुम्हें झकझोरता है, जगाता है तो वह बुरा मालूम पड़ता है जो तुम्हें सांत्वना देता है, गीत गाता है, सुलाता है, वह तुम्हें भला मालूम पड़ता है जिस सांत्वना की तुम तलाश कर रहे हो, सत्य की नहीं। अगर हजारों, लाखों, करोड़ों लोगों म मांग सांत्वना की है तो कोई न कोई तुम्हें सांत्वना देने र राजी हो जायेगा। तुम्हारी सांत्वना का शोषण करने को न कोई तुम्हें गीत सुनायेगा तुम्हें सुलायेगा जिससे तुम all'avore
ऋषि दुर्वासा का एक वचन है कि लोग हैं कि मैं शांति लाया हूं लेकिन मैं तुमसे कहता हूं, मै तलवार ले कर आया हूं हूं इस वचन के कारण लोगो को बड़ी कठिनाई रही। क्योंकि एक ओर ऋषि दुर्वासा कहते है अगर कोई तुम all'avore a जो तुम्हारा कोई छीन ले, तुम कमीज उसे दे देना और जो तुम्हें मजबूर करे एक मील तक अपना वजन ढोने के, तुम दो मील तक उसके साथ चले जाना। ऐसा शांतिप्रिय व all'avore यह तलवार किस तरह की है? यह तलवार गुरू की तलवार है, इस तलवार का उस तलवार से कोई भी भी संबंध, जो तुमने सैनिक की कमर पर बंधी देखी है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है यह तलवार कोई प्रगट में दिखाई पड़ने वाली तलवीर नं यह तुम्हें मारेगी भी और तुम मरोगे भी नहीं। यह तुम्हें जलायेगी, लेकिन तुम्हारा कचरा ही जलेगा, तुम all'avore
हर गुरू के हाथ में तलवार है और जो गुरू तुम्हें जगाना चाहेगा वह तुम्हें शत्रु जैसा मालूम होगा। Per quanto riguarda l'argomento, बहुत पुरानी है। फिर तुम्हारी नींद सिर्फ नींद नहीं, उस नींद तुम तुम्हारा लोभ, तुम्हारा मोह, तुम्हारा राग, सभी कुछ जुड़ा है है है है है है है है है है है जुड़ जुड़ जुड़ जुड़ जुड़ तुम्हारी आशायें, आकांक्षायें सब उस में संयुक संयुक्त हैं हैं तुम्हारा भविष्य, तुम्हारे स्वर्ग, तुम all'avore a नींद अगर गलत है तो नींद का सारा फैलाव गलत है। इसलिये गुरू तुम्हारी जब नींद छीनेगा तो तुम्हारा संसार ही नहीं छीनत छीनता, तुम all'avore
कृष्ण ने अर्जुन को गीता में कहा है सर्वधरमान् परित्यज्य- तू सब धर्मों को छोड़ कर मेरी शरण में आ जा। ठीक इसी प्रकार गुरू के पास जाना बड़ा साहस है, और गुरू के प पहुंच पहुंच कर टिक जाना सिर्फ थोड़े से लोगों की हिम हिम्मत का काम है लोग जाते हैं, और भागते हैं। जैसे ही नींद पर चोट होती, वैसे ही शु शुरू हो जाती है है जब तक तुम उन्हें फुसलाओ, थपथप Schose जैसे ही तुम उन्हें हिलाओ, वैसे ही बेचैनी तुरू तोाै इसी प्रकार एक बार विश all'avore
विश्वामित्र जैसे तेजस्वी और क्रानारी ऋषि ने इस श्लोक में अपने तथ तथ को स्पष्ट करते हुये स अपने गुरू के सामने पामने प Quali मै यह जानना चाहता हूं कि मेरे जीवन का उद्देश्य, लक्ष्य क्या है? दूसरा, मैं जानना चाहता हूं कि मैं जीवन को किस प्रकार से अग्रसर करूं, किस प्रकार से आगे बढ़ाऊं? तीसरा, यह कि मैं अपने जीवन को किस प्रकार से दिव्यता से ओत-प्रोत कर सकता हूं, अपने आप चेतन चेतनायुक्त बना हूं? और जीवन का वह क्षण कब आयेगा जब गुरू सामने होंगे, जब गुरू प्रवचन कर रहे होंगे, मैं सामने बैठा हुआ होऊंगा वो अमृत बरसाते हुये होंगे और मैं अपने कानों के माध्यम से, नेत्रों के माध्यम से, शरीर के अंग-अंग से, हजार कानों और हजार आंखों से उस अमृत तत्व को समेटतµi मैं केवल उन विधियों उन विचारों, उन चिन्तनों को जानना चाहता हूं हूं
जब विश्वामित्र ने अपने गुरू से पूछा कि मेरे जीवन का उद्देश्य, लक्ष्य क all'avore A causa di questo problema, तीसरा रास्ता हो ही नहीं सकता। जीवन का अगर एक पक्ष योग है, तो भोग भी दूसरा पक्ष है
किसी ने यह प्रश्न किया नहीं, विश्वामित्र ने किया खड़े होकर पूछा कि मेरे जीवन का उद all'avore जो कुछ हम प्राप्त नहीं कर सकें वह भोग है, तृष्णाओं को भोग कह कहा जाता है भोग में tiva भोगी व्यक्ति जीवन में पूर्णता प्राप्त कर ही नहतीा भोगी व्यक्ति के पास पांच हजार रूपये हैं, वो सोचेगा कि दस हजार होने पच्चीस हजार होने चाहिये। जिस व्यक्ति के पास धन पर्याप्त है, उसकी कुछ और तृष्णाये होंगी, और इच्छाये होंगी, पुत्र होगा तो पुत्र की शादी की बात सोचेगा, शादी हो गई तो पौत्र की बात सोचेगा, अपने बुढ़ापे की बात सोचेगा, हर समय चिन्ता में रहेगा, तनाव ग्रस्त ही रहेगा। जो तनाव ग्रस्त जीवन जी सकता है, वह है और यह सारा संसार भोग की चिन चिन¨
लेकिन तुम तो पूर्ण नींद में जीवन व्यतीत करना चाहते हो, पूर्ण योगी और भोगी भी बनना चाहते हो लेकिन से नहीं जगना चाहते। पिछले पच्चीस हजार वर्ष में केवल कुछ ऐसे व्यक्ति हुये जो अपने आप में में नींद ज ज जिन जिन्होंने उनके गुरू ने जगाया जो अपने जीवन में पूर्ण योगी व भोगी बने बने बने बने बने व व व व व व व व
यह नहीं सोचा जाता कि लोग क्या कहेंगे, क्योंकि लोग तो कहेंगे ही ही आप कुछ करोगे तब भी कहेंगे, कुछ नहीं करोगे तब भी कहहगे तुम्हारा समाज तुम्हें रोकेगा ही कुछ कर भी नहीं सकता, प्रशंसा नही कर सकता तुम all'avore समाज का निर्माण ही इसलिये हुआ है। तुमने सुकरात को व्यर्थ ही जहर नहीं पिलाया। जीसस को सूली देनी पड़ी क्योंकि वह तुम्हें सोने नहीं देता। तुम थके-मांदे हो, तुम नींद में उतरना चाहते हो। तुम इतने बेचैन और परेशान हो, तुम चाहते हो दे देर शांति मिल जाये, खो जाओं, बेहोशी आ जाये। ध्यान से भी उसी को खोजते हैं-किसी तरह तुम भूल जाओ कि तुम तुम हो हो
गुरू तुम्हें जगायेगा और याद दिलायेगा कि तुम हो। A causa di ciò che è successo, ho detto che तुमसे सारी मादकता छीन लेगा। तुम्हारा भजन, तुम्हारा कीर्तन, तुम्हारा नाम-स्मरण, तुम्हारे मंत्र, सब छीन लेगा ताकि तुम्हारे प सोने सोने क क कोई भी उप उप न ह ह ज ज।। तुम्हें जागना ही पड़े। Vuoi sapere cosa vuoi fare?
उस प्रतीति से ही पुरानी नींद की दुनिया का अंत, और एक नये जगत क का आरम्भ होता है उस नये जगत का नाम मोक्ष। नींद में देखा गया कोई सपना नहीं, नींद टूट ज जाती है तब जिसकी प्रतीति होती है, उसी का नाम परमात्मा है। नींद में की गई प्रारscoथना नहीं, जब रह जाती तब तुम्हारी जो भावदशा होती है, उसका नाम ही प्र nello थन है है
एक आदमी सांझ को घर लौटा उसकी पत्नी जोर-ieri से रो रही थी आंख से आंसू गिर रहे है, वह आदमी कर चुपचाप अखबार पढ़ने लगा।।।।।।। लग लग लग लग लगrighe उसकी पत्नी ने कहा कम से कम यह तो पूछो मैं क्यों रो रही हूं? उसने कहा यही पूछ-पूछकर मेरा दिवाला निकल गया है। रो रही हो तो कोई न कोई झंझट है, कोई मांग है, यही क कर मेरा दिवाला निकला जा रहा है, क्यों रो रही हो? अब मैने पूछना ही बंद कर दिया है।
हम रो भी रहे हैं, हंस भी रहे है, आवाज भी दे nessuna अकारण तुम तो रास्ते पर किसी को नमस्कार भी नरीं क। अकारण तो तुम मुस्कुराते भी नहीं, आवाज देने का श्रम क्यों उठाओगे? इस संसार में गूंजती आवाजो से गुरू की आवाज मूलतः पृथक् है है वह किसी काम से नहीं बुला रहा है। वह तुम्हें बेकाम बुला रहा है। वह तुम्हें जगाने के लिये बुला रहा है, किसी काम से नहीं बुला रहा।
एक बार सुकरात ने अपने शिष्य श्यामा को आवाज दी शिष्य ने कहा जी! कोई काम है? और उसने प्रतीक्षा की पर सुकरात चुप रहे, कुछ काम नहीं बताया श्यामा बेबूझ हो गया। फिर झपकी ले कर सो गया। थोड़ी देर में फिर सुकरात ने बुलाया श्यामा! उसने फिर नींद से चौंक कर उत्तर दिया जी! सोचा होगा शायद गुरू काम भूल गये थे, अब शायद याद आा! लेकिन सुकरात फिर चुप ही रहे। श्यामा को फिर झपकी लग गई तीसरी बार गुरू ने फिर आवाज दी श्यामा उसने फिर कहा जी!
वह हैरान हुआ मन में। यह गुरू पागल तो नहीं हो गया? बुलाता है, लेकिन बुलाने पर कभी पूर्ण-विराम तो होता नहीं बुलाने के आगे बात चलती है गुरू का बुलाना किसी वासना की पुकार नहीं है, कोई मांग नहीं है है गुरू का बुलाना अपने आप में पूर्ण है। वह tiva उसके बुलाना अगर तुम समझ सको तो ध्यान बन जाये उसकी पुकार तुम्हारे भीतर तंद्रा को तोड़ देना है, श्याम के के एक एक क्षण में विचार भी भी हो ज ज ज है तभी वह कहत है के उस एक एक कccioषण में विच विच भी भी बंद हो हो हो हो है तभी तो वह है जी!
अगर श्यामा खोया ही रहे तो पता ही नहीं चलेगा गुरू ने कब बुलाया! पता ही नहीं चलेगा कोई बुला रहा है, या नहीं बुैला रा श्यामा अगर तंद्रा में ही डूबा रहे तो यह आवाज तीर की तरह प्रवेश नहीं करेगी। लेकिन श्यामा चकित जरूर होगा, चिंतित भी होगा। गुरू बुलाता है और चुप हो जाता है। गुरू अक्सर पागल मालूम होगा। तुम पागलो की दुनिया में हो तो उसकी तुम तुम्हें पागल ही लगेगी लगेगी श्यामा भी सोच रहा था। कि गुरू को क्या हो गया है? आवाज देते है और चुप हो जाते है, यह कैसी आवाज? हम समझ पाते हैं
किसी भी चीज को अगर उसमें शृंखला हो। हम उस रास्ते को समझ पाते हैं, जो पहूंच पहूंचाता हो कोई मंजिल मंजिल हो लेकिन रास्ता हो और कहीं नहीं जाता हो तो हम बड़ी विडंबना में पड़ ज जाते हैं हैं श्यामा विडंबना में पड़ गया। इसलिये गुरू ने उसकी भीतरी विडंबना को कर कहा कि श्यामा मुझे तुमसे क्षमा मांगनी चाहिये कʻè कोई वासना, कोई इच्छा का संबंध भी नहीं। मैं तुमसे कुछ चाहता भी नहीं हूं। मेरी कोई मांग भी नहीं। तुम्हारा किसी भांति का कोई शोषण करना है, फिर भी तुम्हें पुकार रहा हूं, फिर भी तुम्हें बुला रहा हूं हूं मुझे तुमसे क्षमा मांगनी चाहिये। श्यामा के चेहरे पर प्रसन्नता आयी कि बात तो ऀीक है बेकार ही बुला रहे हो।
A causa di ciò che è successo, di ciò che è successo. Per quanto riguarda l'argomento, il problema è stato raggiunto. हम तो परमात्मा का भी विचार नही करते है तो सोचते हैं, उसने जगत को किसी काम से बनाया होगा, उसका कोई प्रयोजन होगा। लोग मेरे पास आते है, वे कहते, परमात्मा ने यह सृष्टि किस प्रयोजन से बनायी?
हम अपनी ही प्रतिमा में परमात्मा को सोचते है। हम बिना काम एक कदम नहीं उठायेंगे। हम बिना काम आंख भी नहीं हिलायेंगें। एक भिखारी एक रास्ते के किनारे बैठा और एक राह भटक गये यात्री ने उससे पूछा कि क्या तुम बता सकोगे कि यह रासाता कहां जा रहा है? उस भिखारी ने कहा मैं कई साल से यहां रहा हूं पर रास्ते को कहीं जाते मैंने नहीं देखा। Quindi, लोग इस पर आते-जाते हैं। ठीक इसी तरह तुम हते रहते हो और नींद में आते जाते रहते है, पर तुम वहीं वहीं वहीं रहते हो A causa di ciò che è successo, di ciò che è successo.
लेकिन तुम अपने जीवन में इसी प्रकार काफी यात्र करते हो-कभी इस दिश दिश में, कभी उस दिशा में कभी धन की तरफ, कभी त्याग की तरफ, कभी भोग के लिये लिये लिये लिये लिये लिये लिये लिये लिये लिये लिये लिये के लिये के के के के के के के के के के के के के के के के के के के के के के भोग भोग भोग भोग भोग भोग भोग भोग भोग भोग भोग भोग tiva चाहे भोग हो तो भी तुम दोड़ते ही, चाहे योग तो भी तुम्हारा श्रम जारी रहता है
जिस दिन तुम नींद से जाग जाओगे जिस तुम रास्ते की भांति हो ज जाओगे, जो भी आन आना-जाना नहीं नहीं जिस दिन तुम्हारी वासना गिरे, जिस न योग tiva गुरू ने पुकारा श्यामा और पूर्णविराम हो गया। यह पुकार निष्प्रयोजन है। यह पुकार लीला है। यह पुकार एक खेल है।
श्यामा के भीतर जगी चिंता को देख कर गुरू ने कहा मैं अकारण ही तुझे जगाता हूं, सोने नहीं देता, तुझे हिलाता हूं, न उठ कर दुकान खोलनी है, न बाजार जाना है, न नौकरी पर जाना है, फिर भी तुझे उठाता हूं। तुझे सोने नहीं देता। उस दिन श्यामा के मन में चिंता कम हुई, गुरू ठीक ही कह रहा है, बैठने भी नहीं देते शांति से अकारण ही श्यामा, श्या लगा लगाये हुये हुये है है सोचने भी नहीं देते शांति से भीतर भी विघ्न खड़ा कर देते है है लेकिन तत्क्षण गुरू ने कहा, मुझे ही तुझसे क्षमा मांगनी चाहिये, तीन बार बुलाना पड़ा क्योंकि एक बार बुलाने से काम न चला, तूने जी कहा जरूर लेकिन करवट ली और तू फिर सो गया दुबारा इसलिये बुलाना पड़ा। वस्तुतः तो तुझे ही क्षमा मांगनी चाहिये क्योंकि तेरी नींद के लिये तू ही जिम्मेवार है तेरे आलस्य के लिये तू ही आधार है। तीसरी बार बुलाना पड़ा फिर भी तू करवट लेता है और सो जाता है है
तीन हजार बार भी बुलाना पड़े तो भी गुरू थकता नहींू जिस दिन तुम जागोगे, उस दिन तुम क्षमा मांगोगे। तुम कहोगे कि एक ही आवाज में जो बात हो जानी चाहिये थी उसके लिये अकारण तुम्हें तीन हजार बार दोहराना पड़ा। बुद्ध से किसी ने पूछा कि मैं पूछता हूं एक बार आप कहते है तीन बार बात क्या है? बुद्ध ने कहा तीन बार में भी कोई सुन तो तो अनूठा है, अद्वितीय है है तीन बार में भी कौन सुनता है? तुम वहां मौजुद भी नहीं हो सुनने को। तुमने प्रश्न पूछा कि तुम सो गये। तुम प्रश्न भी शायद नींद में पूछते हो। ठीक इसी प्रकार जब कभी मैं कुछ स साधना, दीक्षा की क all'avore a तब तुम नींद से जागते हो।
इसलिये सभी पुराने अनुभवियों ने कहा है, गुरू के बिना ज्ञान न होग होगा। गुरू के साथ हो जाये तो अनूठी घटना है। गुरू के बिना तो होगा नहीं। गुरू का इतना ही मतलब है कि कोई तुम्हारे द्वार पर चोट किये ही चल चला जाये। यह चोट विनम्र ही होगी। यह चोट कोई आक्रमक नहीं हो सकती। यह चोट पानी की तरह होगी। जैसे पानी चटटन पर गिरता है। श्यामा यह गुरू की आवाज तो बहुत कठोर नहीं हो सकतीीी गुरू कठोर हो नहीं सकता और गुरू दोहराता रहेगा तुम्हें नींद से जगाता रहेगा। धीमी और मधुर आवाज तुम all'avore
इसलिये हमारे ऋषियों ने कहा है कि गुरू पानी की तरह है, तुम पत्थर की तरह हो लेकिन ध्यान रखना, आखिर में तुम ह हारोगे, तुम all'avore पानी गिरता रहेगा। एक न एक दिन चट्टान टूट जायेगी, रेत हो जायेगी। आज नहीं कल तुम पाओगे कि तुम all'avore गुरू की चोट तो मधुर है लेकिन गहरी है और उस अ अरrnoथ में है-इस अर्थ में नहीं कि मीठी है और तुम्हारी नींद की सहयोगी होगी, मधुर इस क क है है कि उसकी उसकी क से है है। नींद की सहयोगी होगी होगी होगी होगी मधुर इस इस क क है कि कि उसकी उसकी उसकी से है है। इसलिये मैं तुम्हें बुला रहा हूं, वह ज्ञान दें रहा हूं जिससे तुम इस इस जीवन इस नींद sogni श्यामा में इतनी श्रद्धा है कि सुकरात बुलाते तो जी जरूर कहता। कम से कम नाराज नहीं हो रहा है। तुम होते तो शायद नाराज भी हो जाते यह क्या लगा रखै! अगर कुछ कहना है तो कहो, अन्यथा श्यामा, श्यामा बार-बार क्या कर रहे हो? कुछ कहना हो तो कहा दो अन्यथा चुप रहो। तुम्हारे मन में यही आवाज उठी तो फिर श्रद्धा नहहू क्योंकि जब श्रद्धा पूरी हो पुक पुकारने की कोई जरूरत नहीं रह जाती। श्रद्धा पूरी संदेह, लेकिन संदेह पू पूरा नहीं है, नहीं तो तुम सो जाओगे आधे-अधूरे ही
एक बार मुल्ला नसरूदीन को यह भ्रांति हो गयी कि वह म मर गया है है जहर खा लिया था। अब भारत में कोई शुद्ध जहर मिलता है! Per quanto riguarda, मरा भी नहीं। इस जगत में माया हो या न हो, मगर हमारे यहां बड़ी यााे! यहां तो माया ही माया है। दूध में पानी मिलाते थे, अब कलियुग आ गया, पानी में दूध मिल मिलाते हैं जहर में पता नहीं क्या मिलाते है! मुल्ला नसरूदीन जहर खा कर सो गया। सुबह उठा तो अपनी पत्नी से बोला कि नाश्ता मेरे लिये मत बनाना मैं, मर चुका हूं Vuoi sapere cosa fare? जाग गये कि नींद में हो? Vuoi sapere cosa vuoi fare? अगर मैं नहीं मरा तो पांच रूपये बेकार गये। पांच रूपये का जहर खा गया हूं, मर चुका हूं। पहले तो समझी मजाक कर रहा है, लेकिन वह म मान ही, भोजन न क करे, न नहाये वह कहे कि नहाना क्या, जब मर ही गये तो कौन कौन नहाना, किसका नहा, कैसा ना! भोजन न किया, नहाया नहीं, बिस्तर e पर ही पड़ा उठे नहीं। घर के लोग घबड़ा गये, कहा कि कुछ गड़बड़ हो है, दिमाग में खराबी आ गयी है है मनोवैज्ञानिक के पास ले गये। मनोवैज्ञानिक ने भी बहुत समझाया कि भाई तुम जिन्दा हो, भले-चंगे हो हो कुर्सी से उठाकर चलो।
उठकर चला तो कहा देखते हुये नहीं चल रहे हो उसने कहा कि भूत-प्रेत भी चलते हैं हैं देखते नहीं मेरे पैर बिलकुल उलटे हो गये है। जैसे भूत-प्रेतों के होते हैं। मनोवैज्ञानिक ने कहा, यह आदमी ऐसे मानने वाला नहहै दलील पर दलील करे। अब जिंदा आदमी हो और अगर मरने की भ भ्रांति हो जाये, तो दलीलें तो देग देगा ही उस मनोवैज्ञानिक ने कहा एक काम कर यह तू मानता है कि मुर्दा आदमी में से खून नहीं निकल सकता? उसने कहा मानता हूं कि मुर्दे से खून निकल निकल सकता, कभी नहीं निकाल सकता। मनोवैज्ञानिक ने चाकू से उसके हाथ में थोड़ा-सा चीरा मारा, खून की धारा फूट पड़ी Vuoi sapere come fare? बड़े मियां अब क्या कहते हो
मुल्ला नसरूदीन खिलखिलाकर हंसा उसने कहा कि इससे यही सिद्ध होता है कि मुर्दे से भी खून निकल सकता है वह धारण गलत थी। ठीक इसी प्रकार तुम नींद में हो अभी तक जो हो रहा व अच्छा हो रहा है जो होगा व भी भगवान अच्छा ही करेगा। बदल दो अपने सिद्धांत तुम्हें किसी ने चाकू से काट कर दिखाया नहीं
तुम जो चाहो मान लो। सारी बात नींद से जागने की और इसलिये गुरू तुम्हारे जीवन में एक बदल बदलाहट लाना चाहता है। वह कोई नींद में करवट बदलने को नहीं कह रहा। सोने के लिये स्थान बदलना नहीं होता, मन स्थिति बदलनी होती है है और लोग स्थान बदल रहे हैं। कोई चला हिमालय, कोई चला काशी, काबा। स्थान बदल रहे हैं, परिस्थितियां बदल रहे हैं। घर छोड़ दिया, बाजार छोड़ दिया। कहां जाओगे? मन तुम्हारे साथ होगा। इसलिये तुम जहां रहोगे वहीं फिर बाजार बन जायेगा।
ये जो हमारे ऋषि-मुनियों को सतानें जो उर्वशि, मेनका आदि आप्सरायें उतरती है, ये किसी आकाश से उत उतरती। ये ऋषि-मुनि छोड़ आये घ घर की मेनका को, लेकिन मन नहीं छोड़ सकते सकते Vuoi sapere cosa fare? अब ये बैठे है झाड़ के नीचे हिमालय में और मेनका इनके चारों तरफ नाचती है है मेनका को पड़ी है कुछ कि इनके चारों तरफ नाचे कुछ उसे और भी काम होगµi बड़े हाव-भाव दिखाती है, ऋषि-मुनियों को पास पा कर। यह मेनका नहीं है हमारा मन है।
गुरू कहते हैं कि तुम जिस की भी आकांक्षा करते हो, अगर तीन सप all'avore दिखाई पड़ने लगेगी। भूखे आदमी को आकाश में चांद नहीं दिखता चपाती तैरती हुई दिखाई पड़ती है है हां प्रेमी को प्रेयसी का मुखड़ा दिखाई पड़ता है। A causa di ciò, è stato detto che è successo. किसी कंजूस से पूछो वह कहेगा कि चांदी की तश्तरी दिखाई पड़ती है है लोगों को अलग-अलग चीजें दिखाई पडे़गी, चांद बेचारे का क्या कसूर? चांद का इसमें कुछ हाथ नहीं। A causa di ciò che è successo, वहीं दिखाई पड़ेगा। तुम्हें नींद में सपने में सब प्रतिबिम्ब ही दिखाई पड़ता है। जब तुम नींद से जागेगो तभी तो उस ध्ययान में जागरर का
एक आश्रम में काफी भिक्षु थे। नियम तो यही है बौद्ध भिक्षुओं का कि सूरज ढलने के एक एक बार वे भोजन कर लें लें लेकिन गुरू के संबंध में एक बड़ी अनूठी बात थी, कि वह सदा सूरज ढल जाने के बाद ही भोजन करता। और नियम तो यह है कि बौद्ध भिक्षु सदा सूरज ढलने से पूर्व सामूहिक रूप से भोजन करें ताकि सब दूस दूसरे को देख सके कौन कौन क्या खा-रहा है? भोजन छिपाकर न किया जाये, एकांत में न किया जाये। लेकिन इनके गुरू की एक नियमित आदत थी वह रात अपने झोपड़ी सब द दरवाजे बंद करके ही वह क करत subito और यह खबर सम्राट तक पहुंच गयी। सम्राट भी भक्त था उसने कहा कि यह अनाचार हो रहा हैर हम अंधों की आंखें क्षुद्र चीजों को ही देख पाती ह। इस गुरू की ज्योति दिखायी नहीं पड़ती। गुरू की महिमा दिखाई नहीं पड़ती। गुरू में जो बुद्धत्व जन्मा है वह दिखायी नहीं पडायी रात भोजन कर रहा है, यह तत तत्काल दिखायी पड़ता है और कमरा बंद क्यों करता है?
सम्राट को भी संदेह हुआ। सम्राट भी शिष्य था। उसने कहा, इसका तो पता लगाना होगा। यह तो भ्रष्टाचार हो रहा है और रात जरूर छिप कर खा रहा है तो कुछ मिष्ठान या पता नहीं जो कि भिक्षु के लिये वर्जित है है Vuoi sapere cosa fare? द्वार बंद करने का सवाल ही क्या है? भिव A causa di ciò che è successo, ho avuto la possibilità di farlo. स्वभावतः हम सबके नियम यही है। Nel caso in cui ci fosse un problema, ci siamo. प्रगट हम उसको करते हैं जो ठीक है। ठीक के लिये छिपाना नहीं पड़ रहा है, गलत लिये छिप छिपाना पड़ रहा है लेकिन गुरूओं के व्यवहार का हमें कुछ भी पता नहीं। यह हमारा व्यवहार है, अज्ञानी का व all'avore ना भी हो ठीक प्रकट करने को भी ऐसा प all'avore किसी को पता न चलने दो, गुप्त रखो तो हम सबकी जिंदगी बड़े अध अध्याय गुप गुप हैं हैं हमारी जीवन की किताब कोई खुली किताब नहीं हो सकती। पर हम सोचते है कि गुरू की किताब तो खुली किताब होगगगग
सम्राट ने कहा पता लगाना पडे़गा रात सम all'avore a कभी-कभी अज्ञानी भी धर्म को बचाने की कोशिश में ताााग उनको हमेशा ही खतरा रहता है। सांझ हुई गुरू आया। अपने वस्त्र में चीवर में छिपा कर भोजन लाया। द्वार बन्द किये। जहां ये छिपे थे, इन्होंने दीवार में एक करवा रखा था ताकि वहां से देख द द्वार बन्द किये। बडे़ हैरान कि गुरू भी अद्भुत था। वह उनकी तरफ पीठ करके बैठ गया, जहां छेद था और उसने बिलकुल छिपा कर अपने पात nello सम्राट ने कहा यह तो बर्दाश्त के बाहर है। यह आदमी तो बहुत ही चालाक है। उनको यह tiva
सम्राट और उसके साथी छलांग लगा कर खिड़की को तोड़ कर दोनों अंदर पहुंच गये गये गुरू ने अपना चीवर फिर से पात्र पर डाल दिया। सम्राट ने कहा कि हम बिना देखे नहीं कि तुम क्या खा रहे हो? गुरू ने कहा कि नहीं आपके देखने योग्य नही है। तब तो सम्राट और संदिग्ध हो गया। उसने कहा हाथ अलग करो अब हम शिष्य की मर्यादा भी नहीं म मानेंगे। गुरू ने कहा जैसी तुम्हारी मर्जी लेकिन सम्राट की आंखें ऐसी साधारण चीजों पर पड़े यह सही नहीं है है गुरू ने चावर हटा लिया भिक all'avore a
अब सम्राट मुश्किल में पड़ गया। रात सर्द थी लेकिन माथे पर पसीना आ गया। उसने कहा इसको छिपा कर खाने की क्या जरूरत है? Che cosa vuoi fare con te? सही को भी छिपाना पड़ता है। तुम गलत को छिपाते हो यह हममें और तुममें फर्क है। A causa di ciò che ho detto, ho avuto la possibilità di farlo. गुरू हंसने लगा और उसने कहा कि ज जानता था, आज नहीं कल तुम आओगे क क्योंकि तुम सबकी नजरें क्षुद्र पर है। उस विराट घट जो तुम्हें दिखायी नहीं पड़ता लेकिन बस मे मेरी आखिरी सांझ है है इस आश्राम को मैं छोड़ रहा हूं। अब तुम संभालों और जो मर्यादा बनाते हैं वे संभांले मैं तुम्हारी अपेक्षाये पूरी नहीं कर सकता और जब तक मैं तुम्हारी अपेक्षाओं को पूरा करूगा तो तुम तुम्हें कैसे बदलूंग बदलूंगा? कैसे तुम उस नींद से उठोगे यह कह कर गुरू वहां से चल
सिर्फ वहीं गुरू तुम्हें बदल सकता है, जो तुम्हा× जो तुम्हारे पीछे है, वह तुम्हें नहीं सकत सकता, और बड़ा कठिन है उस गुरू के पीछे चलना जो तुम्हारे पीछे नहीं चलता हो अति दूष्कर है।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। है है है दूष दूष दूष दूष दूषiato रास्ता अत्यन्त कंटकाकीर्ण है फिर शिष all'avore इसलिये कभी गुरू को व्यवहार से मत मापना क्योंकि हो सकता है गुरू का व all'avore जिससे तुम उस विराट, उस ब्रह्मा से साक्षात्क्ार से साक्षात्क।र कक और जिस दिन तुम मुझसे जुड़ जाओगे, जिस तुम्हारे मेरे बीच एक सेतु बंध जायेगा, उसी तुम्हारे जीवन में क्रांति शुरू हो जायेगी।। मेरी आंखों के नीचे तुम एक हो जाओगे। गुरू कुछ करेगा नहीं। इसलिये तुम्हें गुरू के पास रहने होगा। तुम्हारा मेरे पास होना काफी है। और मैं तुम्हें बढ Schose
Ogni volta che il Guru ti chiama Shyama, dimentichi il dubbio e lo dici con devozione, e anche se il Guru ti chiama ancora e ancora, devi rispondere ancora e ancora, stai attento ancora e ancora perché il Guru è ferito come l'acqua, la tua roccia come il sonno Se non oggi, domani lo romperà. Raggiungerai l'oceano, quando uscirai dalle tue frustrazioni, il tuo corpo sarà fragrante di una fragranza speciale, i tuoi occhi avranno una nuova sensazione, ci sarà il rossore dell'amore, tutta la tua vita sarà decorata, le tue mani saranno pieno di perle. Ti benedico così.
Sua Santità il Sadhgurudev
Signor Kailash Shrimali
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