प्रेम तो एक उत्फुल्ल सुवास है, एक सुगन्ध है, प् रेम तो एक छल-छल बहता हुआ झरना है, जिसके नीचे स्ना न करने से पूरे तन-मन को मस्ती की हिलोर सी आकर के ए क फुहार सी पड़कर के भिगो देती है।
जो निराकार को मानते हैं वे कहते हैं कि एक ज्योत ि है, एक दीपक की लौ है, वह आंख बंद करता है तो चारों ओर लाली सी दिखाई देती है- वह उसी को ध्यान समझ बै ठता है, पर ये भी ध्यान नहीं है।
ध्यान तो बुद्धि से परे हटने की क्रिया है। बुद्धि ही सगुण और निर्गुण में भेद करती है। जहां बुद्धि है, वहीं निराकार या साकार का प all'avore ध्यान तो अन्दर उतरने की क्रिया है।
गुरू तुम्हें मात्र दीक्षा ही नहीं देतµi गुरू तुम्हें एक चिन्गारी देता है, एक क्रान्ति देता है, एक विस्फोट देता है और मृत all'avore
इसके पहले तुम्हारा जो जीवन था, वह हाड़-मांस से बना जीवन था, मल-मूत्र से लिप्त जीवन था, उसमें वासनायें थीं, स्वार्थ था, लालच था, ऐसा कुछ नहीं था जिस पर तुम्हें गर्व हो सके, क्योंकि तुम्हें ज्ञात ही नहीं था कि तुम किस पगडंडी पर चलरहे हो
मैं हर क्षण तुम्हारे साथ हूं, तुम कहीं अकेले नहीं हो, इस वीरान पगडंडी पर तुम्हें अपने-आप को अकेला समझने की जरूरत नहीं है, क्योंकि तुम्हारा हाथ पकड़कर तुम्हें ब्रह्म तक पहुंचाना है, निश्चित रूप से तुम्हें ब्रह्म के दर्शन कराने हैं और इस जीवन में ही tiva
जो भी बनें अद्वितीय बनें, सामान्य जीवन जीना तुम्हारे लिए उचित नहीं नहीं है सामान्य जीवन जीकर तुम खुद का नाम तो डुबोते ही हो, मेरा नाम भी डुबोते हो हो कोई देवता या भगवान पैदा नहीं होते, बनते हैं। जन्म आपके हाथ में नहीं था, लेकिन अगर जन्म लेकर आपको गुरू मिल ज जाये, तो फिर आप अद्वितीय बन सकते हैं- राम बन सकते, कृष्ण बन सकते हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं tivamente
बुद्धि और श्रद्धा में समन्वय होना चाहिये। अति tiva
तुम प्रेषण बनो, मेरे संदेश को एक-दूसरे से, जिससे यह दिव दिव संदेश पू पूरे विश्व में फैल जाए।
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