मेनका ने उनकी तपस्या भंग की तो उन्होंने उसे पत्नी बना कर छोड़ा। राजा त्रिशंकु को इन all'avore विद्रोह तो उनके जीवन की धड़कन थी, विद्रोह करना अपने आप में कोई घटिय घटियापन भी नहीं नहीं जिनके जीवन में साहस का, ओज का समुद्र सा लहरा रहा होता है, जिनके पास जीवन की स्पष्ट धारणा होती है, जिनके पास जीवन के सभी पक्षों के प्रति स्पष्ट मत होता है, उस पर चलने के लिये आंखों के सामने मार्ग स्पष्ट होता है, और साथ ही होता है दृढ़ निश्चय, वे ही विद्रोही थेोत जिनके पास तड़प होती है जीवन की विसंगतियों के प्रति और स all'avore
विश्वामित्र ने जीवन में यही किया। उन्होंने कभी भी हाथ नहीं जोड़ा गिड़गिड़ाये नीनीि उन्होंने आँखों में आँखें डालकर प्रत्येक साधना को झपट लेना सिखा। जहां पर परम्परागत मार्गों में सफलता नहीं मिली वहां पर उन्होंने नवीन मार्ग ही ढूंढ लिया और नवीन तंत्र रच डाला। वे ही पहले ऋषि हुये जिन्होंने लक्ष्मी के आगे हाथ नहीं जोड़े। सर्वथा नूतन पद्धति से लक्ष्मी को बाध्य कर दिया कि वह उनके आश्रम में आकर स्थापित हों ऐसे ही अद्भुत ऋषि ब्रह्मर्षि विश्वामित्र ने जीवन की एक और निराली साधना रच डाली जिसका नाम है 'ललिताम्बा साधना' जीवन में हमें किसी के आगे हाथ न जोड़ना पड़े, हमारे मनोवांछित कार्य सम्पन्न होते रहें ऐसी जीवन शैली संभव हो सकती है विश्वामित्र प्रणीत ललिताम्बा साधना से आज के युग में ऐसी ही साधना परम आवश्यक है, क्योंकि इस युग में सज्जनता का कोई विशेष स्थान नहीं रह गया। समाज पग-पग पर पशु तुल्य व्यक्तियों से भर उठा है। जिनसे केवल आंखे ततेर कर ही कार्य लिया जा सकता है, आपकी विनम्रता और आपके प्रेम का उनके समक्ष कोई मूल मूल्य नहीं है है है है है है नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं मूल मूल मूल मूल मूल मूल मूल मूल मूल मूल मूल मूल मूल मूल मूल मूल मूल मूल मूल मूल मूल मूल मूल मूल मूल मूल मूल मूल मूल मूल मूल मूल मूल मूल मूल मूल मूल मूल मूल मूल मूल मूल मूल मूल मूल मूल मूल मूल मूल मूल मूल मूल मूल मूल मूल मूल मूल मूल मूल मूल मूल मूल मूल मूल मूल मूल मूल मूल मूल मूल मूल मूल मूल मूल मूल मूल मूल मूल मूल मूल मूल मूल मूल मूल
महर्षि विश्वामित्र की साधना अपने अन्दर कुछ ऐसी तिक all'avore a महर्षि विश्वामित्र के तेजस्फुलिंग से जो व्यक्ति एक बार संस्पर्शित हो जाये उसके लिए यह भौतिक जगत तो बहुत छोटी सी बात है फिर वह किसी देवी-देवता की साधना में भी यदि प्रवृत हो तो सहज ही साधना व सिद्धि हस्तगत कर ही लेता है।
पांच दिनों की इस तीव्र साधना में साधक तभी प्रवृत्त हो जब वह म मानसिक व शारीरिक रूप से दृढ हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो उसके शरीर के अणु-अणु चैतन्य हो। साधक प्रातः सात बजे के प पास अपने साधना कक्ष में बैठे, जो पहले से ही साफ व धुल हो हो पीले रंग के स्वच्छ वस्त्र पहने औ पीले रंग के आसन पर बैठ ब्रहcolम ाण के तेजस तेजस देव भगव भगवान सूरbbiamo क स स स स। सकते सकते सकते सकते।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। #
भावना रखें कि भगवान सूर्य अपनी तेजस्विता के स ाथ मेरे अन्दर समाहित हो रहे हैं और पूज्य गुरूदे व का स्मरण चिन्तन कर मानसिक रूप से प्रार्थना कर ें कि वे सामर्थ्य दें कि मैं इस साधना के तेज पड़ंा को अपने अन्दर समाहित कर सकूं। आप अपने सामने बिछे लकड़ी के बाजोट पर पुष्प की प ंखुडि़यों से दो आसन बनायें जिसमें से एक पर आप प ूज्य गुरूदेव का आवाहन व स्थापन करें तथा दूसरे प र भाव रखें कि महर्षि विश्वामित्र जी सूक्ष्म रूप में उपस्थित होकर आपको साधना की पूर्णता प्रदान करें।
सामान्यतः साधक का स all'avore इसके लिए उसे एक माध्यम की आवश्यकता होती है उसकी मµi इसी कारणवश प्रत्येक साधना में अलग-अलग के उपकरणों की आवश्यकता पड़ती है जिन्हें हम परिभाषिक शब में 'यंत्र' की संज्ञा देते हैं हैं।।। हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं tivamente
इस साधना में भी सर्वोच्च रूप से ताम्र पत्र का अंकित 'गुरू यंत्र' होना नितान्त आवश्यक है जिस पर आप कुंकुम, अक्षत, पुष्प इत्यादि अर्पित कर अपनी भावनाओं और पूजन को प्रकट कर सकते हैं। दूसरी महत्वपूर्ण सामग्री आवश all'avore a इसके अतिरिक्त इस साधना में मूंगे के तीन की भी आवश QIO पड़ती है है जो कि मंत मंत्र सिद्ध, प all'avore इस साधना में केवल ललिताम्बा माला से मंत मंत्र जप किया जा सकता है है
पांच दिनों की साधना में प्रतिदिन 51 माला मंत all'avore इस मंत्र जप की अवधि में साधक को भीतर कुछ टूटता-फूटता सा लग सकता है, अकड़न या ऐंठन सी संभव हो हो सकती किन किन्तु यह संकेत है आप आप साधना में सही ढंग से आगे आगे आगे आगे आगे आगे आगे हैं नहीं| ।
इस साधना की समाप्ति पर गुरू आरती सम all'avore a इस साधना के उपरान्त व्यक्ति के अन्दर एक तेज पुंज समाहित हो जाता है और वह धीरे-धीरे उसकी वाणी के माध्यम से, उसके चेहरे की गठन के माध्यम से और सम्पूर्ण शरीर से झलकने लगता है। सम्मोहन तो केवल एक विद्या है, सामने वाले को प all'avore a अब आप खुद ही सोचिये कि जिस व्यक्ति के शरीर में से ऐसी ऊर्जा प all'avore a
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