सेवा समर्पण और श all'avore
A causa di ciò che è successo, उसे सेवा कहते हैं। जो तुम्हारी मर्जी हो वह करना सेवा नहीं है।
शिष्य को ज्ञान देने से पहले उसका अहं गलाना ईरूर।ई शिष्य का कर्तव्य है कि वह क कारscoय में गुरू का पूरा सहयोग करें।
शिष्य को चाहिए कि वह पाद पद्म न, उसे चाहिए वह विवेकानन्द बने और उसके लिए सर्वोत्तम उपाय है श्रदाधा एवं समर्पण।
ज्ञान के पुंज प प्राप्त करने के लिए जरूरी है कि शिष शिष को कसौटी पर कसा जाये। शिष्य को चाहिए कि वह गुरू की हर कसौटी पर उतरे।
शिष्य पर गुरू का ऋण है क्योंकि गुरू शिष्य को ज्ञान देता है है ज्ञान केवल गुरू की सेवा से प्राप्त हो सकता है।
शिष्य के मानस में, चिंतन में, विचार में, ज्ञान की गरिमा स्थापित गुरू करता है, इसलिए शिष शिषा धरscoम है कि वह गुरू सेवा करे और जरञ ञात करें
शिष्य का लक्ष्ण, शिष्य का चिन्तन, शिष्य का विचार मधुर होना चाहिये हर क all'avore सेवा, समर्पण और श्रद्धा से ही तुम लोहे कुन कुन QI
शिष्य को चाहिये कि गुरू जो भी मंत्र दे, उसे पूर्ण भक all'avore a
गुरू तो हर क्षण ही शिष्य को अपने समकक्ष बनाने क ा प्रयास करते हैं और इसी कारण उन््हें स्वयं सर्व प्रथम शिष्य के अनुरूप स्वरूप धारण करना पड़ता ह ै, परन्तु यह शिष्य की अज्ञानता होती है, जो वह गुर Nel caso in cui ci sia stato un problema, allora लिए ऐसा चिन्तन दुर्भाग्यपुर्ण होता है।
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