जीवन का मर्म है गुरूतत्व का बोध प्राप्त कर लेना! उसी गुरूत्व का जिसका परिचय श्री गुरूदेव से के के बाद ही बोध हो हो सकता है, जीवन को परिपूर Quali है- पौरूष! तीव्रता! Sì! बल और साहस!
यदि वास्तव में हम इस विषम परिस्थिति से उबरना चाहते हैं, तो हमें गुरूओं और ऋषियों के चरणों को पकड़ना होगा, उनके चरणों में स साषांग पendere हमे गुरूः परम tiva
गुरू जीवन का सर्वस्व है, पूर्णत्व का आधार है, श्रेष्ठता का प्रतिरूप है, आकाश से भी अनन्त और पृथ्वी से भी विशाल उनकी महिमा है और जिसके जीवन में गुरू स्थापित हो जाते हैं, जिसके रक्त में कण-कण में गुरू की प्रतिस्थापना हो जाती है, उसका जीवन धन्य हो जाता है, उसे में पूर्णता और सफलता प all'avore
आपको आरती करके, भजन गाकर मानसिक सन QIतुष मिल मिल सकती, लेकिन आपकी जो मूलभूत आवश्यकताये हैं वह पूर्ण हो नहीं सकेंगी सकेंगी सकेंगी सकेंगी सकेंगी सकेंगी सकेंगी सकेंगी सकेंगी सकेंगी सकेंगी सकेंगी सकेंगी उनको पूरा करने के लिए आपको स्वयं साधना के मार्ग पर गतिशील होना पड़ेगा, उस मार्ग पर गतिशील होना पड़ेगाँ आपको अपने प्रयास से आवश आवश आवशाओं कोरा करनrigur
यदि आपके हृदय में प्रेम का संचार हो और फि आप साधना करें, तो आप स अनुभव क कर सकेंगे, कि प्रत साधना आपके लिए सहज सुलभ हो हो गयी है है और साधन में में में आध बन बन बन गई गई गई गई है है है है हो हो गयी गयी गयी है है औens
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