यह पुस्तकालय सुरक्षित तो है ही, मगर साथ ही साथ यहां पर उत्तम कोटि की देख-रेख और व्यवस्था भी है है सामान्य व्यक्ति को यहां अन्दर नहीं आने दिया जा।त महाराजा की आज्ञा से ही इस ग्रन्थालय में प्रवेश संभव है है, इसकी सुरक्षा व all'avore
नेपाल के वयोवृद्ध ज्योतिषी और महाराजा के सलाहकार विद्वान मेघ बहादुर थापा का मैं अतिथि था, उसके घर पर ही मुझे दो दिन रहने का अवसर मिला और वहीं पर चर्चा के दौरान इस ग्रन्थालय को देखने की चर्चा चली। मैं कई वर्षों से इस पुस्तकालय को टटोलना चाहता था, परन्तु कोई तरीका बैठ ही नहीं रहा था। मुझे यह ज्ञात था कि इस ग्रन्थालय में प प्राचीन उपनिषद सुरक्षित है, जिनको देखने से तीर्थ यात्रा जैसा फल मिलता है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है मिलत है मिलत है मिलत मिलत मिलत मिलत मिलत मिलत मिलत मिलत मिलतias थापाजी के विशेष प्रयत्नों से दूस दूसरे दिन इस ग्रन nello
वास्तव में ही ग ग QIन थ में उत कोटि के तांत्रिक ग्रन्थ उपलब है और संसार की दुर्लभ तांत्रिक वस्तुये भी यहां परकरक है है यही पर मुझे 'परशुराम कल्प' जैसा आश्चर्यजनक ग्रन्थ देखने का अवसर मिला, मैं पिछले चालीस वर्षों से इस ग्रन्थ को देखने या प्राप्त करने की आशा संजोये हुये था, कई दूसरे ग्रन्थों में 'परशुराम कल्प' के बारे में अत्यन्त श्रद्धा के साथ बताया गया है कि लक्ष्मी प्राप्ति से औ और तंत all'avore
संसार भर में परशुराम कल्प के बारे में जो जिज्ञासा है, उसका कारण इसमें अक्षय पात्र साधना के बारे में विस्तार से और पाणिक रूप व व विव है हैrighe ब में में विस्तार से और पाणिक ूप रूप व रण विव है हैrighe मैं स्वयं इस साधना को समझना चाहता था और संसार के सामने पूर्णता के साथ रखना चाहता था। मेरा यह कार्य ही मेरे पूरे जीवन का आधार था, यदि मैं अपने जीवन मैं इस ग्रन्थ को खोजकर यदि उसका प्रमाणिक प्रकाशन कर सकूं तो यह जीवन का एक अप्रतिम कार्य होगा, ऐसा मैं अपने मन में विचार लिये हुये था।
श्री थापा जी की सहृदयता से और उनके विशेष भाव के फलस्वरूप मुझे इस ग्रन्थालय में परशुराम कल्प ग्रन्थ की हस्तलिखित प्रति देखने का अवसर मिला, जो कि भोज पत्रों पर प्रमाणिकता के साथ अंकित अपने आप में दुर्लभ और अद्वितीय प्रति है। जिसमें अन्य कई तन्त्रों का समावेश तो है ही, पर इसमें अक्षय पात्र साधना का भी महत्वपूर्ण वर्णन है
कहते हैं, कि इस साधना को परशुराम के अलावा कई ऋषियों ने सम्पन्न किया था, स all'avore भगवतपाद शंकराचार्य ने स्वयं एक स्थान पर स्वीकार किया है, कि परशुराम कल्प अपने आप में अद्वितीय ग्रन्थ है, और इसकी अक्षय पात्र साधना तो सम्पूर्ण जीवन की जगमगाहट है जो भौतिकता में पूर्णता चाहते है, जो आश्चर्यजनक रूप से लक्ष्मी की कृपा चाहते हैं, जो अपने जीवन में धन-धान्य ऐश्वर्य और अथाह सम्पत्ति चाहते है, उनके लिये एक मात्र परशुराम कल्प ही सर्वोच्च साधना है जो अपने जीवन में करोड़पति बनना चाहते है, जो भौतिकता की दृष्टि से पूर्णता और पराकाष्ठा चाहते है, जो अपने व्यापार को सम्पूर्ण भारतवर्ष में औ cercando
इस ग्रन्थ में आगे बताया गया है कि जो अपने जीवन में पूर्ण स्वस्थ, निरोग, सौन्दर्ययुक्त और पराक्रमी बनना चाहते है, जो अपने जीवन में अथाह स्वर्ण भण्डार और धन सम्पत्ति की इच्छा रखते है, जो पूर्ण भोग और ऐश्वर्य में जीवन व्यतीत करना चाहते है , उन्हें परशुराम कल्प का ही सहारा लेना चाहिये क्योंकि परशुराम कल्प में ही अक्षय पात्र साधना दी हुई है और इस अक्षय पात्र साधना के द्वारा ही जीवन की पूर्णता, भौतिकता, संपन्नता, श्रेष्ठता, शतायु जीवन युक्त सर्वकामना पूर्ति में सर्वोच्चता प्राप्त की जा सकती है ।
यद्यपि मैं इस ग्रन्थ से सम्पूर्ण तंत्र साहित्य को तो नहीं लिख लिख सका, परन्तु इतना समय मुझे अवश मिल गय कि मैं इस इस पुस पुस पुस में में हुई हुई अक प Quali और वास्तव में ही यह मेरे जीवन का सौभाग्य है कि मुझे इस साधना की प all'avore
यह साधना वर्ष में केवल एक बार अक्षय तृतीया को ही सम all'avore इस वर्ष परशुराम जयन्ती व अक्षय तृतीया दिनांक 22 अप all'avore यह तीन दिन की साधना है।
इस साधना के लिये साधक को सर्वथा नयी पीली ध धारण करनी चाहिये और पीली धोती कन्धों पर ओढनी चाहिये। इस ग्रन्थ में बताया गया है कि प प्रयोग की हुई धोती का उपयोग नहीं किया जाता।
इसके अलावा त्रिगंध (कुंकुम, केसर, कपूर), चावल, नारियल, पुष्प माला, फल, दूध, दही, घी, शहद, शकč के दूध दूध का बना हुआ प्रसाद, इलायची, जल जल जल जल पीपल पत पत दूध दूधा बना हुआ प्रसाद, इलायची, जल जल जल जलrighe
इस साधना की दो महत्वपूर्ण वस्तुये 'स्वर्ण खप all'avore
22 अप्रैल की रात्रि को (जिस दिन परशुराम जयन्ती युक्त अक्षय तृतीया महापर्व है) साधक पीली धोती पहिन कर कंधों पर पीली धोती डाल कर पीले आसन पर उत्तर की ओर मुंह कर बैठ जाये और सामने पानी का लोटा भरकर के रख दें और फिर लोटे पर त्रिगंध से पांच बिन्दियां लगावें और धोती या कलावा से लौटे का पूजन करें। फिर इस कलश के ऊपर लाल वस्त्र में क कर नारियल रख दें, यह नारियल जटायुक्त होना चाहिये।
इसके बाद इस कलश के जल में निम्न पचास देव वनौषधियों का चावल अर्पित करते हुये आवाह्न करे। देवकानन में उगी हुई वनोषधियों के नµi , 1- हल्दी, 2- तेजपात 3- पीपल, 4- बेल, 5- जयन्ती, 6- पृनि-पर्णी, 7- कामरांगा, 8- गाम्भारी, 9- ताम्बूली, 10- छीलंग, 11- कशेरू, 12- बला, 13-हिजल, 14- तिल पुष्प, 15- अपामारulare, 16- बरगद, 17- गम्भारि, 18- कण्टकारी, 19- कुश, 20- काश, 21- पिप्पली, 22- इद्र जौ, 23- कुटकी, 24- कुकुवलाव ा, 25- वृहती, 26- पारला, 27- तुलसी, 28- अपामारrnoग, 29- इन्दरूता, 30- भांगरा, 31- अपराजिता, 32- ताजमूली, 33- लाजवन्ती, 34- दूब, 35- ध ध ध शतमूल शतमूल शतमूल शतमूल / तrigur रूद्रजटा, 36- भद्र-पर्पटी
इन वनौषधियों को आहवान करने का तरीका यह है कि साधक कलश के जल पर दृष्टि रखता हुआ, प all'avore उद Schose
उस कलश के जल से तीन बार हाथ में लेकर स्वयं पीये और थोड़ा सा जल अपने शरीर पर छिड़के अपने सामने तांबे का कोई पात्र रख कर उसमें पुरूष की आकृति त्रिगंधा से बनावे, यह पुरूष आकृति परशुाम का आहवान है है यह आकृति त्रिगंधा से तिनके की सहायता से या चांदी की सलाका से बना सकते हैं हैं तांबे की थाली नहीं हो तो पीतल की या चांदी का प all'avore
उस पुरूष आकृति के पास में ही अक्षय पात्र और क्षय फल स all'avore
साधक को चाहिये कि वह पहले से ही चावल मंगा कर उसे साफ कर तैया रखे अक्षय पात्र में साबुत चावल ही भरने चाहिये।। टूटा हुआ चावल नहीं डालना चाहिये। इसके लिये साधक दिन को ही टूटे हुये चावल निकाल कर अच all'avore
साधक ह Schose
अक्षय पात्र का जल से तथा दूध, दही, घी, शहद, शक्कर को परस्पर मिला कर पंचामृत बना कर उससे अक्षय पात्र को बाहर से धोना चाहिये, इसके बाद पुनः स्वच्छ जल से धोकर पौछ कर अपने स्थान पर रखना चाहिये और उस पर त्रिगंधा बिन्दी लगानी चाहिये, इसी प्रकार अक्षय फल पर भी त all'avore a
अक्षय पात्र पर पुष्प चढ़ाने चाहिये, सामने दूध का बना हुआ प्रसाद रखना चाहिये और शुद्ध घृत का दीपक लगा लेना चाहिये। इस दीपक में यदि संभव हो तो एक दो बून्द गुलाब का इत्र भी डाल देना चाहिये। अक्षय पात्र जो कि चावलों से भरा हुआ है, उसके ऊपर चांदी का रूपया (यदि चांदी का रूपया न तो वरogoतम में में प्रचलित रोकड़ा रूपय रूपय रूपय रूपय cercare) रखना च तथ पुष पुष पुष पुष पुष पुष पुष पुष पुष पुष पुष पुष पुष tiva
इस प्रयोग में आगे बताया गया है, कि प प्रकार का पूजन कर फिर साधक त all'avore इस बात का ध्यान रखें, कि माला का प्रयोग पहले अन अन किसी किसी साधना में नहीं किया हुआ हुआ, यह हरे रंग की हकीक हकीक माला होनी चाहिये च।
साधक हकीक माला का जल से और त्रिगंधा से क कर, वही पर बैठे-बैठे 21 माला अक्षय मंत्र जप करें। यह मंत्र अत्यन्त ही तेजस्वी और प्रभावयुक्त है।
साधक साधना स्थल से उठ कर भोजन आदि कर ले, इसी प्रकार दूसरे दिन भी मंत्र जप करे, पर दूसरे दिन परशुराम आकृति का निर्माण या अक्षय पात्र स्थापित आदि करने की जरूरत नहीं है क्योंकि जो पहले दिन अक्षय पात्र स्थापन आदि कर दिया हैं, वह उस स्थान पर ज्यों का त्यों रहेगा। इसमें तीन दिन लगातार दीपक लगा रहना चाहिये, इसे अखण्ड दीप कहते है है
तीसरे दिन अर्थात् दिनांक 24 अप्रैल की रात्रि को भी इसी प्रकार 21 माला मंत्र जप करने के बाद भगवान परशुराम को भक्ति भाव से प्रणाम करें और किसी पीले वस्त्र में रूपये, सोने के टुकड़े और चावलों से भरे हुये अक्षय पात्र के साथ साथ अक्षय फल रख कर उसे कपड़े में लपेट कर गांठ ब Schose
दूसरे दिन यदि संभव हो तो ब्राह्मण को घर बुलर कर भोजन करावे या उसे दान आदि दे कर इस साधना को सम्पन समझे समझे।।। समझे समझे समझे समझे समझे समझे समझे समझे समझे सम समiato परशुराम कल्प के अनुसार इस प्रकार घर में स्थापित किया हुआ अक्षय पात preno
वास्तव में ही अक्षय पात्र साधना जीवन का सौभाग्य है, साधकों को चाहिये कि इस दुर्लभ और अद्वितीय अवसर पर इस साधना को अवश अवश ही सम सम सम करें क क क कrigh पत्रिका पाठकों के हित एवं कल्याण के लिये ही इस गोपनीय और दुर्लभ अक्षय पात्र साधना को पč प किय किय है औ मुझे मुझे विश्वास है कि स स स इससे इससे अवश ल भ होंगे है है औ औ मुझे मुझे विश विशccioव है कि कि कि कि कि कि इससे इससे इससे इससे भ होंगे किय है औ औ औ मुझे मुझे विश विशccioव है कि कि कि कि कि कि कि कि कि कि कि कि कि कि कि कि कि कि कि कि कि कि कि कि कि कि कि कि कि कि कि कि कि कि कि कि कि कि कि कि कि कि कि कि कि कि कि कि कि कि कि कि कि कि स इससे इससे इससे इससे ume
परशुराम कल्प के अनुसार यदि साधक स्वयं इस साधना को या मंत्र प्रयोग को सम all'avore
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