इस विचार-विमर्श के क all'avore a के भी निश्चित अर्थ संस्थापित हो चुके है।
यह सत्य है कि विशिष्ट साधनाये विशिष्ट उद्देश्यों की पूर्ति में सह सहायक होती हैं किंतु अन्ततोगत nello
साधनाओं अथवा देवी-देवताओं को उनके विशिष्ट स्वरूप से कुछ अलग हटकर एक सम्पूर्ण दृष्टि से देखने की शैली या तो विकसित नहीं हुई अथवा साधकों के पास जीवन की व्यस्तता में इतना अवकाश नहीं रहा कि वे इस विषय पर चिंतन कर सकें क्योंकि इस तीव्र युग में साधक का ध्यान साधना से भी इस बात पर केन all'avore
यद्यपि ऐसा करने में कोई दोष नहीं है। प्रत्येक साधक से यह अपेक्षा नहीं की जाती है, कि वह पहले किसी साधना अथवा देवी-देवता के स्वरूप क ा तात्विक विवेचन कर ले तब साधना में प्रवृत्त हो किंतु एक सम्पूर्ण दृष्टि की अपेक्षा तो की ही जा सकती है और इसका सर्वाधिक लाभ भी अन्तोगत्वा किस ी साधक को ही तो मिलता है।
साधना एक व्यवसायिक विषय वस्तु नहीं होती कि मुँह मांगा दाम देकर अपनी मनोवांछित वस्तु को प्राप्त कर लिया जाये। किसी भी साधना को पहले अपने रोम -रोम में समाहित करना होता है, तभी उस साधना से संबंधित मंत्र जप सम सम सम क त त त त त त त त त त त त त त त त त त त त त त त त त त त त त त त त त त त त त त त त त त त त त त त त त त त त त त त त त त त त त त त त त त त tiva विवेचन के माध्यम से।
प्रत्येक साधना यद all'avore da इसका भी अर्थ केवल इतना ही है कि साधना कोई भी क्यों न हो, यदि साधक की अंतर्भावना उसमें रच-पच जाती है तो न केवल उसके तात्कालिक उद्देश्यों की पूर्ति संभव होती है वरन् वह उसी साधना के माध्यम से विशिष्ट आध्यात्मिक अनुभूतियों एवं चैतन्यता को प्राप्त करने में भी सक्षम होने लग जाता है।
यह कदापि महत्वपूर्ण नहीं है किस स साधक के इष्ट कौन है, क्योंकि कोई भी देवता न तो छोटे होते है न बड़े बड़े बड़े बड़े बड़े बड़े बड़े बड़े बड़े बड़े बड़े न कोई देवी या देवता न्यून होते औ औ न कोई उच्च, यदि साधक के पास एक सम्पूर्ण दृष्टि हो हो अंतर केवल साधक के लक्ष्यों से पड़ता है, जिस प्रकार से आज भैरव को केवल एक भीषण देव मानने से उनकी छवि जनमानस में प्रायः विकृत देव के रूप में स्थिर हो गई है, किंतु भगवान भैरव का परिचय इस रूप में प्रस्तुत होना एक प्रकार की अपूर्णता ही है।
यह सत्य है, कि जीवन की विषमताओं को समाप्त करने में भगवान भैरव की साधना के समक्ष कोई साधना नहीं प्रतीत होती, शत्रुहंता स्वरूप में उनकी सिद्धि प्राप्त करना वास्तव में जीवन का सौभाग्य ही होता है, श्मशान साधनाओं एवं उग्र साधनाओं में पूर्णता उनकी प्रसन्नता के बिना मिलना कठिन ही नहीं असंभव भी होती है किंतु पश्चात् भी मानों भगवान भैरव का चित्र पूर्ण नहीं होता।
भैरव साधना का एक गोपनीय पक्ष यह भी है, कि जहां व े एक उग्र देव है वहीं अंतर्मन से पूर्ण शांत व चै तन्य देव भी हैं, जिनकी यथेष्ट रूप में उचित साधना विधि से उपासना करने पर यह संभव ही नहीं है कि साध क के जीवन में किसी प्रकार का भौतिक अभाव रह जाये।
इसी तथ्य का और अधिक गूढ़ विवेचन यह है कि जहां ज ीवन में सुख-समृद्धि का आगमन किसी तेजस्वी साधना के माध्यम से संभव होता है वहाँ, वह अन्य साधनाओं क ी अपेक्षा कहीं अधिक स्थायी, आभायुक्त एवं जीवन म ें निश्चित रूप से सुखद परिवर्तनकारी होती है।
'इति भैरवः' (अर्थात् शत all'avore a छवि एक भीषण देव के रूप में ही सुस्थापित हुई।
जब समाज किसी tiva पूर्ति तक केंद्रित रखने के कारण ही होती है।
इसके उपरांत भी इस सत्य से तो कोई इनकार नहीं कर सकता कि जीवन में भौतिक लक्ष्यों की प्राप्ति करन Quindi, भौतिक बाधाओं को दूर करना जीवन का प्रथम एवं अत ्यावश्यक सोपान होता है, जिसके अभाव में चित्त मे ं पूर्णता और प्रसन्नता आ ही नहीं सकती।
साधक का चित्त जहां विभिन्न भौतिक बाधाओं की सम ाप्ति से सुस्थिर हो सके वहीं उसके जीवन में एक ते जस्विता का भी समावेश हो सके, इन्हीं क्रियाओं को ध्यान में रखकर 16 नवम्बर 2022 il XNUMX ottobre XNUMX अवसर पर एक विशिष्ट साधना प्रस्तुत की जा रही है।
भगवान शिव की ही भांति भगवान भैरव का स all'avore आवश्यकता है तो केवल इस बात की, कि साधक को भैरव साधना में आने वाले विशिष्ट चरणों का विशेष रूप से ज्ञान हो हो प्रत्येक साधक का एक गूढ़ सूत्र होता है या यूं कह सकते सकते है है PUNTO CHIAVE होता है जिसके अभाव में भले ही कितने ल लµi यह PUNTO CHIAVE प्रत eventuali
काल भैरव का स्वरूप भी त तर्क के आधीन होक होकर भाव के अधीन आने वाला विषय होता है साधक सामान्यतः काल भैरव संज्ञा से किसी आकृति की कल कल्पना कर लेते हैं और यदि तत all'avore उनका ऐसा भाव रखना ही साधक के सर्वाधिक न्यून हो जाता है है
वस्तुतः काल भैरव का अर्थ है, जो काल चक्र में पड़े हुए जीव (साधक) को अपनी चैतन्यता से मुक्त कर श्रेयस्कर मार्ग की ओर प्रपर्तित कर दें और निश्चय ही ऐसे देव का पूजन, साधना अत्यंत आल्हाद के साथ सम्पन्न की जानी चाहिये। यूं इन पंक्तियों में भले ही कितना कुछ कʻè स्थान नहीं देगा, उनसे संबंधित साधना विधि को प्रयोग में पूर्ण एकाग्रता से नहीं लायेगा।
आगे की पंक्तियों में उपरोक्त दिवस की चैतन्यता के अनुरूप साधना विधि प्रस्तुत की जा रही है जो किसी भैरव साधक अथवा गृहस्थ साधक दावा अवशायमेव अवश› इस विधि की विशिष्टता है कि जहां ओ ओ से यह दुर्बलता, हीनता आदि की स स को समाप्त करने की साधना है दूस दूसरी ओर से पू पूiché भौतिक भौतिक समृद समृद समृदायक साधन भी।। इसे सम्पन्न करने के इच्छुक साधक को चाहिये की वह हते रहते काल चक्र मुक्ति भैरव यंत्र व भैरव माला को विशिष्ट दिवस 16 giugno 2022 को या किसी भी शुक्रवार या रविवा रात्रि में दस बजे के आसपास काले वस all'avore दक्षिण दिशा की ओर मुख कर बैठना आवश्यक है। यंत्र व माला का सामान्य पूजन कर एक तेल का बड़ा सा दीपक जलाये और उसकी निम all'avore
इसके पश्चात् अक्षत, कुंकुम, पुष्प व ह हाथ में लेकर दीपक के समक समक्ष छोड़ते हुए निम्न मंत्र उच्चारित करें-
Prendi la lampada, o Signore degli dei, o Signore del portafoglio, o grande signore.
Fammi ciò che desidero e salvami rapidamente dai miei problemi.
Poi inchinati davanti alla lampada cantando:
Bho Batuk! Mam Sammukhobhav, Mam Karya Kuru Kuru
इच्छितं देहि-देहि मम सर्व विघ्नान् नाशय नाशय स्नान् नाशय नाशय स््
अपने मन की इच्छाओं व उनमें आ रही बाधाओं का उच्च ारण कर (अथवा मन ही मन उनका स्मरण कर) साथ ही भगवान भैरव से उनकी पूर्ति की प्रार्थना कर भैरव माला स A partire da 11 माला मंत्र जप सम्पन्न करें। यदि संभव हो तो यह मंत्र दीपक की लौ पर ध्यान करत े हुए ही करे-
Dopo aver cantato il mantra, canta di nuovo il seguente mantra davanti alla lampada.
Ti mando una lampada Salvami dall'oceano della morte Con un fiore senza la lettera del mantra
Vicklenwa पूजितोसिमयादेव तत्क्ष्मस्व मम प्रभो नमः
ध्यान रखें की दीपक को बुझाना नहीं है, अपतिु वह जब तक जले उसे जलने जलने देना है दूसरे दिन सभी साधना सामग्री को नदी में विसर्थित दित दूसरे जीविकोपार्जन के क्षेत्र में आ रही बाधाओं को समाप्त करने के लिये यह एक अनुभव सिद्ध साधना है।