जो के tiva अतः शिष्य को चाहिये कि वह गुरू तत्व को समझे। उसमें ही जीवन की सार्थकता है।
शिष्य को सदैव गुरू का ध all'avore
शिष्य को चाहिये कि वह प्रसन्न मन श श्रद्धा पूर्वक गुरू को ही, अपना परम लक्ष्य बना ले ले इसी माध्यम से वह सौभाग्यशाली बन सकता है।
जब शिष्य 'स्व' को समाप्त कर देता है तो उसके हृदय गु गुरू ज्ञान का दीपक प all'avore
शिष्य के समस्त प Schose शिष्य को हरदम ऐसा ही चिन्तन करना चाहिये।
जो tiva
गुरू शब्द का उच all'avore
जो सद्गुरू की श्रद्धा पूर्वक आराधना करता है उसने जीवन में भले ही कितने ही पाप किये, धीरे-धीरे वे समाप हो हो जाते हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैंiato
शिष्य के लिये गुरू का nessuna
शिष्य पूरी श्रद्धा से गुरू सेवा में रत रहता है क्योंकि उसी माध्यम से वह आध all'avore
गुरूतत्व विशुद्ध रहस्यमय ज्ञान है। इसे प्राप्त करने के लिये शिष्य का मन पावन और नि र्मल होना चाहिये।
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