ऐसा व्यक्ति केवल अपने घर परिवार के भरण-पोषण तक ही सीमित नहीं रहता अपितु वंश लिये और समाज के भी बहुत क करने में समर्थ रहता है। अपने लिये तो पशु भी जीते हैं, कीट पतंगे जीवन य यापन करते हैं लेकिन मनुष्य का जीवन इस भांति बिताने के लिए प्राप्त नहीं हुआ है है है है है है है है हुआ हुआ हुआ हुआ हुआ हुआ हुआ हुआ हुआ हुआ हुआ हुआ हुआ हुआ हुआ हुआ हुआ हुआ हुआ हुआ हुआ मनुष्य का जीवन तो बना ही इसलिये है कि वह अपने जीवन में अपने लक्ष्य को प्राप्त करें और जीवन में धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष चतुवर्ग से जीता हुआ हुआ परम तत्त्व को प्राप्त करे।
जिसके जीवन में डर है, भय है, आशंका है व व्यक्ति अपने जीवन में कुछ भी नहीं क कर सकता हैं, जिसने अपने जीवन जीवन में, डर और आशंका को हटा दिया है वही अपन जीवन उत उत रूप से है है।।। को को को कोा हटा दिय है वही वही जीवन उत उत उत ieri ूप है है। जिस प्रकार दीवाली के शुभ अवसर पर लक्ष्मी की साधना का विशेष महत्व है, उसी प्रकार होली तांत्रेक्त साधनाओं के साथ नृसिंह साधना सम्पन्न करने का महान पर्व है, जिससे यह प्रेरणा प्राप्त होती है कि वीर व्यक्ति के लिए संसार में कुछ भी असंभव नहीं है और जिन्होंने भी नृसिंह साधना सम्पन्न की है उनके लिए शमशान साधनायें, वीर साधनाये, वैताल साधनायें, महाविद्या साधनायें सम्पन्न करना अत्यन्त सरल हो जाता है क्योंकि तीव्र साधनायें करने से पहले आत्मबल का जागरण भी आवश्यक है और यह आत्मबल आता है नृसिंह साधना करने से अपने जीवन को नृसिंह बनाने से।
नृसिंह का तात्पर्य है जो नर अर्थात् मनुष्यों A causa di ciò che è successo, il problema è stato raggiunto. बिना रोक-टोक, निर्भय और गर्व से विचरण करता है उस ी प्रकार मनुष्य भी अपने जीवन की बाधाओं पर विजय प्राप्त करता हुआ सिंह के समान जीवन जिये जिसे किसी भी प्रकार की आशंका, डर और भय नहीं हो।
नृसिंह के रूप को समझने से पहले जो पुराणों में अवत अवतार कथा आती है उसे उसे समझनµ भगवान नृसिंह वराह अवतार के रूप में पृथ्वी का उद्धार करने हेतु भगवान वराह ने हिरण्याक्ष का वध किया था, इससे उसके बड़े भाई हिरण्याकश्यप अत्यन्त दुःखी हुआ और उसने अजेय होने का संकल्प लिया, भारी तपस्या कर सारी सिद्धियां प्राप्त कर ली और ब्रह्मा द्वारा उसे सारे वरदान प्राप्त हुए।
जब दैत्यराज हिरणकश्यप तपस्या में थे तो उनकी पत्नी कयादू के गर्भ में प्रहलाद थे देवताओं ने दैत्यों पर आक्रमण किया उस देव देवर्षि नारद ने कयादू को अपने आश्रम में शरण दी और असुर पत्नी कयादू और परहलाद को भक कµ
तपस्या पूर्ण होने पर हिरण्याकश्यप ने सारे लोकों पर अधिकार कर लिया। अपने भाई के वध का बदला ले लिया था और साधना सिद्धि द्वारा यह वरदान उसे प्राप थ कि कोई भी भी मनुष्य, पशु म मार नहीं सकेग सकेगा धा अथव।।। भी भी मनुष मनुष्य, पशु मार नहीं सकेग सकेगrigini, धरती अथवाश इसी हिरण्याकश्यप के चतुर्थ पुत्र प्रहलाद को शिक all'avore a इन दोनों गुरूओं से प्रहलाद ने धर्म, अर्थ, काम की शिक all'avore शिक्षा पूर्ण होने पर पिता ने उससे शिक्षा के बारे में पूछा तो प्रहलाद का उत all'avore
हिरण्याकश्यप ने अपने पुत्र को ही मार देना चाहा लेकिन भगवत कृप कृपा से प्रहलाद का कुछ नहीं बिगड़ा। मंत्र बल से कृत्या राक्षसी उत all'avore हिरण्याकश्यप को आश्चर्य हुआ कि क क्या शक्ति इस बालक में है जिसके कारण से यह अमर है जबकि अमरता का वरदान तो प प्राप है है उन्होंने अपने पुत्र प्रहलाद को पूछा। प्रहलाद ने उत्तर दिया कि मैं शक शक्ति का साधक हूँ जिसका बल समस्त चराचर जगत में है व्यंग्य से राक्षस ने कहा कि क्या उस खम्ब में ननॗ भ? प्रहलाद ने कहा निश्चय ही।
दैत्यराज ने खम्ब तो तोड़ा और उस खम्ब से एक महान व्यक्ति गर्जना के साथ प all'avore उस आकृति को देखकर दैत्य झपटे लेकिन नृसिंह रूप में उत QIपन भगवान विष्णु ने सबको म मार दिया और हिरण्याकश्यप को लिय लिया। दैत्य ने कहा कि मुझे ब्रह्मा का वरदान है कि मैं दिवस और रात्रि में नहीं मरूंगा, कोई देव, दैत्य, मानव, पशु मुझे नहीं म मार सकेगा। भवन में अथवा भवन के बाहर मेostra भूमि, जल और गगन में भी मेरा वध नहीं हो सकेगा।
भगवान नृसिंह ने कहा कि यह संध्याकाल है। तेरे द्वार की देहली है जो न भवन के भीतर और भवन के बाहर है, मेरे नख शस्त्र नहीं हैं और मेरी जंघा पर तू न भूमि पर है न जल पर और न ही गगन पर और इसके साथ ही अपने तीक्ष्ण नखों से उसके वक्ष को विदीर्ण कर उसका अंत कर दिया। तदोपरांत प्रहलाद का राजतिलक कर उन्हें राजा बनां प्रहलाद के कारण ही देवताओं और दैत्यों में पुनः सन्धि हुई हुई जगत में पुनः भक्ति, साधना, पूजा स्थापित हुई, जब जब पृथ्वी पर अन्याय बढ़ जाते हैं तो भगवµ
नृसिंह साधना क्यों आवश्यक? यह साधना जीवन में चतुर्वग धर्म, अर्थ, काम, मोक all'avore जीवन में वीरता का समावेश होता है और अज्ञात भय की आशंका पूर्ण रूप से दूर हो जाती है जब जीवन में भय नहीं रहता है तो साधक अपनी शक्तियों से पूर्ण रूप से क कारrnoय कर सकता है यह त्रिदिवसीय साधना होली त तांतरेक पαव पर सर सर साधक अवश अवश अवश अवश अवशrigन क के के तrighe
यह साधना 3 दिनों की है। साधक को चाहिये की प्रातः ब all'avore धूप तथा घी का दीपक जलाकर पंचपात्र के जल पवित पवित्रीकरण करके 3 बार आचमन करें।
सामने चौकी पर लाल वस्त्र बिछाकर गुरू पूजन करें। पहले गुरू चित्र को स all'avore a
इसके बाद सामने ताम्र पात्र पर कुकुंम या केशर से षट्कोण बनाकर उस पर 'प all'avore साधना काल में घी का दीपक लगाकर जलते रहना चाहिये। पहले यंत्र को शुद्ध जल से स्नान कराये।
इसके बाद यंत्र को चारों दिशाओं में चार तिलक लगां
इस संक्षिप्त यंत्र पूजन के बाद षट्कोणों में न िम्न सामग्री को स्थापित करें।
सिंह बीज स्थापित करें। इससे किसी भी शत्रु को भयभीत करके परास्त किया जा सकता है तथा विजय सिद्धि का प्रतिक है
किसी भी दुर्दान्त शत all'avore
वीरवटी स्थापित करने का उद्देश्य साधक में वीरता का समावेश हो सके सके
नागचक्र स्थापित इसलिये किया गया है कि शत्रु को वश में करके नाग पाश से बांधा जा सके सके
रूद्र दण्ड की स all'avore
शौरी स्थापना का उद all'avore इसके बाद षट्कोणों में स all'avore तिलक करते समय निम्न मंत्र का उच्चारण करें।
इसके बाद अक्षत को कुकुंम से रंग कर निम्न मंत all'avore इसके बाद गुलाब की पंखुडि़यां यंत्र पर चढ़ाते हुए निम QI
Dopo questo canto i seguenti mantra offrendo uno spicchio ciascuno sullo yantra
यह 3 दिन प्रातःकालीन साधना है। 'रक्ताभ माला' से निम्न मंत्र का 5 माला मंत्र जप करे
इस प्रयोग को फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष के त्रयोदशी से आरम्भ करके पूर्णमासी को पूर्ण करें। इसके बाद उसी दिन सभी सामग्री को लाल वस all'avore
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