यक्षिणी की रूप राशि किसी भी वर्ग की स all'avore a केवल शारीरिक सौन्दर्य और अत्यन्त आकर्षण ही नहीं यक्षिणी अपने आप में पू पूरrnoणरूप से साधक के से भी सुसज है होती है है है जिससे जिससे अन अन अन्दर एक अतिरिक अपनत अपनत मृदुत शीतलत शीतलत होती होती है है है है जिससे जिससे अन अन अनtopदर एकरिक अपनत अपनत मृदुत शीतलत शीतलत होती होती है है है है जिससे जिससे अन अनtopदर एकरिक अपनत अपनत मृदुत शीतलत होती होती होती है है है जिससे जिससे अन अन अनendere इस साधना के द्वारा वास्तव में साधक को ऐसा सहचर्य और मधुरता मिलती है, जिससे वह साधनाओं में तीव्रता से गतिशील हो हो सकता है।। है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है tiva
तंत्र की उच्चकोटि की साधनायें तो यक्षिणी के सहचर्य के बिना पूर्ण होती ही नहीं नहीं तिब्बत के लामा प्रख्यात तांत्रिक एवं सिद्ध साधक हुये, उसके मूल में यही यक्षिणी साधना ही है, क्योंकि तिब्बत मे लामा संप्रदाय के अन्तर्गत 'तंत्र दीक्षा' केवल मात्र यक्षिणीयों से ही प्राप्त होती थी तथा उनके सहचर्य में रहकर ही कोई साधक तंत्र की साधनायें सम्पन्न कर सकता था।
यक्षिणी साधना को प्रचलित रूप से अलग हटकर समझने से साधक अपने जीवन में बहुत कुछ हासिल कर सकता है, और जीवन के दोनों पक्ष अर्थात् योग व भोग एक साथ प्राप्त कर पाने का अधिकारी बन जाता है, क्योंकि तभी उसके अन्दर उस तंत्रमयता का उद्भव होता है, जो जीवन के दोनों पक्षों को लेकर चलने की स्पष्ट धारणा रखती है है जो दुर्गा सप्तशती जैसे प्रतिष्ठित ग्रंथ में मित में लित
पार्वती ने भगवान शिव से निवेदन किया कि देवताओं के लिये तो सभी प्रकार के सुख स्वर्ग में उपलब्ध हैं अप्सरायें उनकी सेवा में रहती हैं, देवताओं का यौवन हर समय अक्षुण्ण रहता है तथा समस्त इच्छायें पूर्ण होती हैं, लेकिन पृथ्वी पर रहने वाले सभी मनुष्यों की इच्छायें पूर्ण नहीं हो पाती है, वे मानसिक रूप से अपनी अधूरी इच्छाओं के जाल में फंसे रहते हैं। इस पर भगव Schose
metodo di meditazione
नवरात्रि के पंचमी तिथि 17 अप्रेल शनिश्चरीय चिन्तन पर्व पर रात्रि काल में स्नानादि से होकर संकल के के साथ समापू समरण सामगामग को को को जल क करे अपने सामने किसी बाजोट पर लाल tiva
साधना समाप्ति के बाद सम all'avore
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