गुरू से बढ़कर न शास्त्र है, न तपस्या, न मंत्र और न ही स्वर्गादि लोक गुरू से बढ़कर न देवी, न देव, गुरू से बढ़कर न ही मोक्ष या मंत्र जप जप एक मात्र गुरूदेव ही सर्वश्रेष्ठ है।
Ricordo Parabrahma Guru, adoro Parabrahma Guru, adoro Parabrahma Guru e mi inchino a Parabrahma Shri Guru.
शिष्य को नित्य एक नियमित समय पर नियमित संख्या में गुरू मंत all'avore
शिष्य का धर्म है कि वह व्यर्थ के वाद विवाद या चिंतन में न पड़कर पूर्ण तल्लीन होकर गुरू सेवा करे। मन पर पूर्ण नियंत्रण प all'avore
शिष्य यदि सच्चे हृदय से पुकार करे, तो ऐसा होता ही नहीं कि उसका स्वर गुरूदेव तक न पहुंचे उसकी आवाज गुरू तक पहुंचती ही है। इसमें कभी संदेह नही करना चाहिये।
यह आवश्यक नहीं कि कोई समस्या हो अथवा जीवन में कोई बाधा आई हो, तभी गुरू चरणों मे पहुंच कर प all'avore गुरू के दर्शन मात्र से ही शिष्य का सौभाग्य एवं पुण्य कर्म जाग nello
गुरू की कृपा से ही आत्मा में प all'avore शिष्य वह है, जो गुरू के बताये मार्ग पर चलकर उनसे दीक्षा लेकर अपने जीवन के चारों पुरूषार्थों-धर्म, अर्थ, काम और मोकर को प प पर consumato
शिष्य कैसे सदैव गुरू चरणों में नतमस्तक बन रहे सकता है, इसके लिये पूज पूज्य गुरूदेव द all'avore a नहीं हो सकता।
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